Kartik Mahatmya Chapter-31 | कार्तिक माहात्म्य-31 - इकत्तीसवां अध्याय
ब्रह्माजी कहते हैं कार्तिक शुक्ला एकादशी जिसको हरि प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं, इस एक व्रत के करने से बाजपेय यज्ञों से भी अधिक फल प्राप्त होता है तथा जन्म-जन्मन्तर के पाप नाश हो जाते हैं । जो चार महीने का चर्तुमास व्रत होता है, वह भी इसी दिन समाप्त हो जाता है। इसदिन व्रत रख कर 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस मन्त्र का जाप करे, तत्पश्चात् रात्रि को जागरण करे, तत्पश्चात् रात्रि को जागरण करे तो सब एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है । भीष्म पंचक व्रत कार्तिक शुक्ला एकादशी से आरम्भ करके पूर्णिमा को समाप्त होता है । इस दिन ऋषि व पितरों का तर्पण करना चाहिए ।
भीष्म पंचक में नित्य ही भीष्म पंचक में नित्य ही भीष्मजी का तर्पण करना चाहिए । वसु के अवतार शांतनु के पुत्र, चन्द्र वंश में उत्पन्न वैयाघ्रपद गोत्र, संस्कृत प्रवर वाले, संतित रहित, गंगा के पुत्र, सत्यवती, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म जी का तर्पण करने से सम्पूर्ण वर्ष के पाप नष्ट हो जाते हैं । भीष्म पंचक व्रत करने वाला पूर्णमासी व एकम को ब्राह्मणों को खीर का भोजन करावे तथा दान दक्षिणा देकर उन्हें सन्तुष्ट करे, तत्पश्चात् आप भी भोजन करें।
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