Kartik Mahatmya Chapter-24 | कार्तिक माहात्म्य-24 - चौबीसवां अध्याय
ऋषि पूछने लगे-हे सूतजी ! बड़े आश्चर्य की त है कि अदिति अग्नि में नहीं जली । तब तजी ने कहा, इसमें आश्चर्य की कोई बात हाँ । जिस भगवान के स्मरण मात्र से सब संकट हो जाते हैं, उनका ध्यान करने वाले भक्त को न कष्ट दे सकता है । जब अग्नि शान्त हो गई तब चक्र सुदर्शन धारण करने वाले भगवान विष स्वयं अदिति के सामने प्रगट हो गए और कहने लगा कि हे देवमाता ! तुम्हारे इस कठिन तप से हम अत्यन्त प्रसन्न हैं, इसलिए वरदान मांगो, तुम्हारा कल्याण होगा । तब अदिति ने हाथ जोड़का भगवान की स्तुति की, हे भगवान ! आप मेरे पुत्री की रक्षा कीजिए । हे भगवान ! आप अन्तर्यामी है. सभी कुछ जानते हैं अतएव मेरे पुत्रों को अकंटव राज्य दीजिए । अदिति के ऐसे प्रेम भरे वचनों को सुनकर भगवान कहने लगे कि हे देवमाता ! हा ही तुम्हारे यहां जन्म लेकर तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करेंगे । कुछ समय बाद अदित ने शंख, चक्र, गदा, पद्म तथा कमण्डल धारण किये हुए हजारों सूर्य के समान तेज वाले, कमन नयन पीताम्बर धारी, मुनियों द्वारा स्तुति किये गए, दैत्य
के नाशकर्ता, भक्तों के प्रिय वामन भगवान पु रूप में देखा । तब कश्यप आदि ऋषि भगवान न स्तुति करने लगे । जो कोई वामन भगवान " स्त्रोत का नित्य पाठ करता है वह सदैव निरो रहकर सर्व सम्पदा प्राप्त करता है । तब वाम भगवान बोले-हे पिताजी ! हम प्रसन्न हैं, आप कल्याण हो, आपके समस्त मनोरथ पूर्ण हों । हमने दो बार आपके घर जन्म लिया है और आगे भी आते रहेंगे । इतना कहकर भगवान ने बाल रूपधारण कर लिया। उधर राजा बलि ने शुक्राचार्य को अपना आचार्य बनाकर बड़ा भारी यज्ञ प्रारम्भ किया जिसमें लक्ष्मी जी सहित हवि ग्रहण करने के लिए भगवान विष्णु का आवाहन किया । उसी समय भगवान विष्णु ब्रह्मचारी के रूप में वहां पर आ गए । भगवान के इस रूप को देखकर ऋषि लोग ज्ञान दृष्टि से उनकी पहचान _गए । उन्हें देख श्री शुक्राचार्य ने राजा बलि को एकांत में बुलाकर समझाया ।
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