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    कार्तिक माहात्म्य अध्याय 10 

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    राजा पृथु पूछने लगे कि मुने ! आपने कार्तिक मास में विष्णु की पूजा का माहात्म्य कहा| इस मास में किसी और भी देवता का पूजन या व्रत होता  हो तो वह भी कहिए| नारद जी कहने लगे कि आश्विन शुक्ला पूर्णिमासी को ब्रह्मा जी का व्रत होता है| कार्तिक कृष्णा चतुर्थी को गणेश जी  अष्टमी व अमावस को श्री लक्ष्मी जी का व्रत होता है| कार्तिक में जो कुमारी इस व्रत को करती हैं उसको सुयोग्य पति मिलता है| जो विवाहित स्त्री इस व्रत को करती हैं उसका सौभाग्य अटल रहता है| प्रातःकाल स्नान आदि से निवृति होकर चंदनादि से गणेश जी का पूजन करके फिर उत्सव मनाकर भोजन करे| स्त्रियों को अपने सौभाग्य के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए| 
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    नारद जी कहने लगे, हे राजा पृथु! इस व्रत का  इतिहास मैं तुमसे कहता हूँ, सुनो ! भद्रवती नाम की एक पुरी में सुधर्मा नाम का एक राजा था| उसके रविदत्त, सुशर्मा, जय शर्मा और सुशोभन नाम वाले चार पुत्र और वीरमति नाम वाली कन्या थी| उस कन्या वीरमति का विवाह देवव्रत के साथ हो गया| वे दोनों बड़े ही प्रेम के साथ रहते थे| एक दिन अचानक घर में बैठे हुए देवव्रत को साप ने काट लिया, जिसे उसकी मृत्यु हो गई| वीरमति बहुत जोर से रोने और चिल्लाने लगी उसके चारों भाई तथा माता-पिता भी वहां पर आ गए और सारा पुर दुखी रूपी समुद्र में डूब गया| उसी समय दुखों को दूर करने वाले पुलस्त्य ऋषि भी वहां पर आ पहुंचे| राजा ने हाथ जोड़कर कहा की महाराज! कौन से पाप कर्म से मेरी यह कन्या विधवा हुई है? तब पुलस्त्य जी ने कहा की राजन! कार्तिक मास में तुम्हारी ने गणेश चतुर्थी का व्रत नहीं किया था, इसी पाप से यह विधवा हुई है| वह अब भी इस व्रत को करे तो उसका मृतक पति जीवित हो जायेगा| यह कहकर ऋषि तो चले गए और राजा ने अपने जमात्र के मृत शरीर को तेल में डलवा दिया| जब कार्तिक मास आया तो उसकी कन्या ने विधिवत करके उद्यापन में ब्राह्मणों को बहुत सा धन दिया, जिसके प्रभाव से उसका मृतक पति फिर जीवित हो गया| अतः सौभाग्यवती स्त्रियों को अपने सौभाग्य की रक्षा तथा संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत अवश्य करना चाहिए| 

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