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    कार्तिक माहात्म्य-21 इक्कीसवां अध्याय 

    Kartik Mahatmya Chapter-21 | कार्तिक माहात्म्य-21 -  इक्कीसवां अध्याय

    Kartik Mahatmya

    राजा पृथु ने पूछा, हे नारद जी ! कृपा करके अन्नकूट तथा गोवर्धन का महात्म्य कहिए। तब नारद जी कहने लगे कि कार्तिक सुदी एकम को गोवर्धन पूजा तथा अन्नकूट होता है । इस दिन पृथ्वी पर गोबर को गोवर्धन बनाकर उसका पूजन करे, फिर अन्नकूट बनावे । पहले ब्राह्मणों को भोजन करावे, फिर स्वयं भोजन करे । गौ तथा वृषभ (बैल) का पूजन करे । दिन के तीसरे भाग में मार्गपालिका बांधे । इसी दिन जामात्र (जंवाई) का पूजन भी होता है । पृथु पूछने लगे कि हे नारद जी। सर्वप्रथम यह पूजन किसने किया, यह कहिए । तब नारदजी बोले कि समुद्र मंथन के समय जब लक्ष्मी जी समुद्र से उत्पन्न हुई तब वे विष्णु से ब्याही गयीं । इससे आनन्दित होकर समुद्र ने भगवान की स्तुति की । तब विष्णु ने कहा कि वरदान मांगो । यह सुनकर समुद्र ने कहा कि हे भगवन् ! आप लक्ष्मी जी सहित मेरे यहां निवास करो । तब विष्णु ने कहा ऐसा ही होगा। उसी दिन से दामाद का पूजन आरम्भ हुआ है । जो कोई कार्तिक सुदी एकम को दामाद का पूजन करता है, वह सब पापों से छूट जाता है।

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