Saturday, May 17.

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  "Shri Durga Stuti Chaman Lal Bhardwaj Chaman"

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श्री दुर्गा स्तुति | चमन की | श्री दुर्गा चमन की श्री दुर्गा स्तुति प० नारायणा वासय जी भारद्वाज 

प० चमन लाल भारद्वाज "चमन" जी के पूज्य पिता जी चमन की श्री दुर्गा स्वति 



श्री गणाशा्शिवतये नम 

नमो ब्रातपत्रये नमो गणप ये नम 

प्रथमपतये नमोउस्तुते। 

लम्बोदराये कदन्तराय विध्न 

विनाशिने शिवसुताय नमोनमः। 

पूर्वामन्त्र सरस्वती मनुभजे शुम्भादि दैत्यदिनोमः। 

नदीनां च यथा गगा देवनाग्न यथा हरिः। 

शास्त्रात्रेषु यथा गीता तथेय शक्ति रुतमा। 

अष्टम्मा बुधवारे चमन" दुर्गास्तोत्र विर्निमितम। 

अमृतसरी भवकं नेनापि श्री नारायण सुनूना। 

सर्वरुपमया देवी सर्वदेवीमया जगत। 

श्री दुर्गा सप्तशती (देवी माहात्म्यम्) को सीखने के इच्छुक उपासकों के लिये इस पुस्तक की रचना अत्यन्त सरल भाषा में की ग‌ई है। विस्तृत एकादश न्यास, 700 श्लोकों (बीजाक्षर सहित) के लि‌ए स्वाहा “संकेत” सहित चंडी हवन में प्रयुक्त होने वाले अध्याय विशिष्ट घोषों को भी इस पुस्तक में संकलित किया गया है। यह पुस्तक सभी उपासकों का पारायण-पूजा- हवन-तर्पण-मार्जन-प्रोक्षण इत्यादि में मार्गदर्शन करने के लिए उपयुक्त है। यह पुस्तक श्री भास्करराय मखिन की टीका गुप्तवती पर आधारित है । प्रचलित त्रयंगम विधि के साथ अद्वितीय नवांगम विधि को भी पुस्तक में जोड़ा गया है। पूजा खंड में षोडशोपचार पूजा (श्री सूक्त विधान समेत), चंडी नवावरण पूजा, चंडी त्रिशती, हवन-तर्पण-मार्जन-प्रोक्षणादि को विस्तृत दिशा-निर्देशों के साथ दिया गया है। नव उपासकों का विचारकर न्यास (करन्यास, हृदयन्यास), मनसा पंचोपचार व आवाहन-नैवेद्यादि मुद्रा‌ओं को समुचित दिशा- निर्देशों के साथ चित्रित किया गया है। वरिष्ठ साधकों के लिए अष्टावदन सेवा, आशीर्वाद मंत्र, शांति मंत्र आदि को परिशिष्ट में दिया गया है। श्री जगदंबा का आशीर्वाद स्वरूप यह पुस्तक निश्चय ही नव उपासकों सहित वरिष्ठ साधकों के आध्यात्मिक प्रगति में सहायक सिद्ध होगी।

|| जय चंडी ||

700 श्लोक व श्री चंडी नवाक्षरी मंत्र की व्याख्या श्री भास्करराय मखिन कृत गुप्तवती के अनुसार


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अतोह विश्रवरुपा त्वा नमामि परमेश्वराम्‌। 

सर्व कमना प्रणी करने वाला पाठ 

चमन की श्री वृणी स्तृति 


यह पुस्तक पूरे दो महीने की तपस्या तथा | 

भगवत नाम कीर्तन, दुर्गा यज्ञ, गायत्री मन्त्र । 

के निरन्तर जप ओर दुर्गा मन्दिरों की दिव्य 

मूर्तियो के दर्शन, महात्माओं के आशीर्वाद 

तथा साक्षात्‌ देव कन्याओं की कृपा ओर मो | 

की प्रेरणा से लिखी गई हे | 

ङस पाठ का कोई भी शब्द घटाया या 

बढाया न जाये, इसके हर शब्द “चमन नाम 

इत्यादि का भाव एक दूसरे पर निर्भर हे। 

कोड भी अक्षर बदलकर पटठ़ने से भयानक 

हानि हो सकती हे। नकली पुस्तकों मे अधूरा 

पाठ होने के कारण यर्थाथ फल की प्राप्ति 

नहीं होती। इसीलिये चमन की श्री दुर्गा 

स्तुति असली मांगने की चेष्ठा करे । पुस्तक 

कं पिछले टाईटल पर श्री चमन जी की 

रगदार सुन्दर तस्वीर छी होनी चाहिए। 

इसका पाठ करने से हर प्रकार की कामना 

चमन की | श्री दुर्गा स्तुति पूर्ण होती हे। 

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कृपया “चमन” की असली दुर्गा स्तुति 

लेने से पहले देख ले की पूरी “दुर्गा स्तुति” 4 

से 128 पेज तक दो रगो मे छी होनी चाहिए 

। ओर दुर्गा स्तुति पर (“चमन“ की श्री दुर्गा 

स्तुति का ॥०1०७अ) (स्टीकर) लगा होना 

चाहिए। 

शुद्ध वस्त्र, शुद्ध अवस्था, शुद्ध भावना, 

शुद्ध मन से पाठ करे । पूरे पाठ के लिए सभी 

स्तोत्र पढ़े | 


इस दुर्गा स्तुति के पाठ में वो शक्ति हे, 

अगर श्रद्धा ओर विश्वास से इसका पाठ 

किया जाये तो महामाया जगदम्बा हर 

मनोकामना पूर्ण करती हे! ओर कम से कम 

इकीक्स (२1) दुर्गा स्तुति की किताबों को 

मन्दिर अथवा लोगो मं ्बोटने से पुण्य प्राप्त 

होता हे। क्योकि धारणा हे कि पढ़ने वाले का 

पुण्य किताब बाटने वाले को भी मिलता हे। 


| प्रकाशक : बृज मोहन भारद्वाज पुस्तकालय | 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

निष्काम भाव से रोजाना पटठ़ने वाले यह | 


पाठ करे, दुर्गा कवच, मंगला स्तोत्र, अर्गला | 

स्तोत्र, कीलक स्तोत्र, काली, चण्डी, लक्ष्मी, 


संतोषी मों स्तोत्र, नम्र प्रार्थना, नवदुर्गा स्तोत्र | 


तथा आरती। हर प्रकार की चिन्ता हटाने के | 

लिए प्रथम अध्याय। हर प्रकार के जगडे 


जीतने के लिए दूसरा अध्याय। शत्रु से| 

छुटकारा पाने के लिए तीसरा, भक्ति-शकित्त 

या भगवती के दर्शन पाने के लिए चौथा व 

पाचवा अध्याय। उर, वहम, प्रेत छाया आदि 

हटाने के लिए छटा अध्याय, हर कामना पूरी 

करने के लिए सातवां अध्याय। मिलाप 

वशीकरण के आदठवां गुमशुदा की तलाश, 

हर प्रकार की कामना पुत्रादि प्राप्त करने के 

लिए नवम्‌ तथा दसवां अध्याय। व्यापार, 

सुख सम्पति कं लिए ग्यारहवा। भक्त प्राप्त 

। करने के लिए बारहवा अध्याय। मान तथा | 

| लाभ के लिए तेरहवां अध्याय। सफर पर | 

जाने से पहले दुर्गां कवच श्रद्धा ओर शुद्ध 

| भावना से पढ़ । धन दौलत कारोबार के लिए | 

चण्डी स्तोत्र, कलह कलेश चिन्ता से बचने 

| के लिए महाकाली लक्ष्मी नव दुर्गा स्तोत्र 

पढ़िए यदि सारा पाठ न कर सकं तो दुर्गा 

अष्टनाम ओर नव दुर्गा स्तोत्र पढ़े । पाठ क 

समय गगा जल साथ रखें, शुद्ध आसन बिठा 

कर बेठे, घी की जोत या सुगन्धित धूप 

जलाए, पाठ कं बाद चरणामृत पीले ओर 

अपने मस्तक आखे ओर अगो को स्पर्श करे। 

मगलवार को कन्या पूजन करे। कन्या सात 

वर्ष की आयु से कम होनी चादहिए। 


 बृज भारद्वाज चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


श्री दुर्गा स्तुति पाठ विधिं 


ब्रह्म मुहूर्तं मं उठते समय जय जगदम्बे 

जय जय अम्बे का ग्यारह वार मुंह मे जाप 

करे। शोच आदि से निवृत हो कर स्नान 

करने कं बाद लाल रूमाल कन्ध पर रखकर ¶4 

पाठ करे। 


मोली दाई कलाई पर बाधे या बधवा लें। 


आसन पर चौकड़ी लगा कर (बेठ कर) 

हाथ जोड कर बोलें : 


“पोना वाली माता जी तुहाडी सदा ही जय।“ 

भगवती मा के सामने घी की जोत जला कर 

पांठ प्रारम्भ करे। 


# यहां से पाठ प्रारम्भ करे < 

मिट्टी का तन हुआ पवित्र गगा के अश्नान से। 

अन्तः करण हो जाए पवित्र जगदम्बे के ध्यान से। 

सर्वं मगल मागल्य शिवे सवार्थं साधके । 

शरण्ये त्रियम्बकं गौरी नारायणी नमो स्तुते। 

शक्ति शक्ति वो मुञ्जे करू तुम्हारा ध्यान। 

पाठ निर्विघ्न हो तेरा मेरा हो कल्याण। 

हृदय सिंहासन पर आ बेठो मेरी मात। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

 

सुनो विनय मम दीन की जग जननी वरदात। 

| सुन्दर दीपक घी भरा करू आज तेयार।| 

। ज्ञान उजाला मों करो मेटो मोह अन्धकार । 

चन्द्र सूर्य की रोशनी चमके “चमन अखण्ड | 

 ॥ सब मं व्यापक तेज हे ज्वाला का प्रचण्ड || 

| ज्वाला जग जननी मेरी रक्षा करो हमेश। 

दूर करो मों अम्बिके मेरे सभी कलेश। 

श्रद्धा ओर विश्वास से तेरी जोत जलाऊ। | 

। तेरा ही हे आसरा तेरे ही गुण गाऊ। 

तेरी अद्भुत गाथा को परू म निश्चय धार। 

| साक्षात्‌ दर्शन करू तेरे जगत आधार।, 

मन चचल से पाठ के समय जो ओगुण होय। 

दाती अपनी दया से ध्यान न देना कोय। 

मे अनजान मलिन मन न जानू कोई रीत। 

अट पट वाणी को ही मों समञ्मो मेरी प्रीत। 

| "चमन" के ओगुण बहुत हे करना नहीं ध्यान। 

सिंह वाहिनी मों अम्बिके करो मेरा कल्याण । 

धन्य धन्य मो अम्बिकं शकत्ति शिवा विशाल। 

अग अंग मे रम रही दाती दीन दयाल। 

प्रकाशक : बृज मोहन भारद्वाज पुस्तकालय 

महामाया चमन मन्दिर चिटा कटड़ा अमृतसर। | `षः 


चमन की | श्री दुर्गा स्तुति 

प्रसिद्ध भेट माता जी की 

। मय्या जगदाता दी कह के जय माता दी। | 

तुरया जावीं, देखीं पेड तों न घबरा्वीं । 

8 पहलां दिल अपना साफ बना लै। 

फर भेय्या नू अर्ज सुना ले। | 

मेरी शक्ति वधा ५ मेन्‌ चरणाच ला । 

केहदा जाव. देखी पेडे तो न 6 । मेय्या 

ओखी घाटी ते पेडा अवलडा। 

ओदी श्रद्धा दा फड़ नले त्‌ पलडा। | 

साथी रल जानगे, दु टल _जानगे। 

भेटा गावी, देखी पेड तों न घबरावीं । मय्या 

तेरा हीरा जन्म अनमोला । 

मिलना मुड मुड न मानुष दा चोला। 

धोखा नखा लवीं व दाग न ला लवीं। 

बचदा जावीं, देखी पेड तो न घबरावीं। मय्या 

पहला दर्शन है कोल कन्दोली। 

दूजी देवा ने भरनी हे आओली। 

आद कवारी न्‌ ५.८ जगत महतारी नू। 

सिर ्जुकावीं देखी पडे तो न घवरावीं । मय्या 

"डः ओहदे नाम दा ले के सहारा। 

चन लघ जावेगा पर्वत एह सारा। 

देखीं सुन्दर गुफा, "चमन" जे जे बुला। 

दर्शन पावीं, देखीं पडे तो न घवरावीं । मैय्या 


चमन की ओरी दुर्गा स्तुति 


| सर्व कामना सिद्धी प्राना नित्य पठ्‌ 


भगवती भगवान की भक्ति करो परवान तुम। 

| अम्बे कर दो अमर जिस पे हो जाओ मेहरबान तुम।| 

काली काल के पजे से तुम ही बचाना आन कर । 

गोरी गोदी मे बिठाना अपना बालक जान कर। 

चिन्तपूर्णीं चिन्ता मेरी दूर तुम करती रहो । 

लक्ष्मी लाखों भण्डारे मेरे तुम भरती रहो। 

नेनां देवी नैनो की शक्ति को देना तुम बढ़ा। 

वेष्णों मों विषय विकारो से भी लेना तुम बचा। 

मगला मगल सदा करना भवन दरवार मं। 

चण्डिका चढ्ती रहे मेरी कला ससार मं। 

भद्रकाली भद्र पुरुषों से मिलाना तुम सदा। 

ज्वाला जलना ईर्ष्या वश यह मिटाना कर कृपा । 

चामुण्डा तुम “चमन पे अपनी दया दृष्टि करो । 

माता मान इज्जत व सुख सम्पत्ति से भण्डारे भरो। 


चमन की दुर्गा स्तुति 


| श्री गणशाय नमः ।। 

श्री दगी खुतिं प्राना | 

“चमन” मत समञ्मो लियाकत का यह होता मान हे। | 

लाज अपने नाम की वह रख रहा भगवान हे। 

जय गणेश जय गणपति पार्वती सुकुमार । 

विघ्न हरण मंगल करण ऋद्धि सिद्धि दातार। 

कवियो के मानुष विमल ५ शोभा सुखद ललाम। 

चमन करे तब चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम। 

| जय्‌ बजरंगी पवन सुत जय जय श्री हनुमान। 

आदि शक्ति के पुत्र हो करो मेरा कल्याण। 


व॒ दुर्गा का पाठ यह लिखना चाहे दास । 

अपनी कृपा से करो पूर्णं मेरी आस । 


त्रुटियों मुञ्च मे है कई बखशना बखशनहार। 

 भे बालक नादान हू तेरे ही आधार। 

बल बुद्धि विद्या देहो करो शुद्ध मन भाओ। 

शक्ति भक्ति पाऊ मे दया दष्टि दरसाओ। 

आदि शक्ति कें चरणों मे करता रहू प्रणाम। 

सफल होए जीवन मेरा जपता रह श्री राम। 

गोरी पुत्र गणेश को सच्चे मन से ध्याङऊ। | 

शारदा माता से "चमन" लिखने का वर पाऊं। 

नव दुर्गा के आसरे मन मे हर्ष समाये। 

महाकाली जी कर कृपा सभी विकार मिटाये। 

चण्डी खड्ग उठाये कर करे शत्र का नास। 

काम क्रोध मोह लोभ का रहे न मन म वास। 

लक्ष्म, १ गोरी, धात्री, भरे मेरे भण्डार। 

लिखू मे दुर्गा पाठ को दिल मे निश्चय धार। 

अम्बा जगदम्बा के जो मन्दिर माहीं जाए। 

पढ़े पाठ यह प्रम से या पड़ के ही सुनाए। 

एक आध अक्षर पढ़े जिसके कानों माहि। | 

उसकी सब मनोकामना पूरी ही हो जाहि। 


दुर्गा स्तुति 

माता उसके शीश पर धरे कृपा का हाथ।| 

 एसे अपने भक्त के रहे सदा ही साथ।। 

संस्कृत के श्लोकों की महिमा अति अपार। 

 टीका केसे कर सके उसका “चमन गंवार। 

रमो के चरणों मे धरा सीसर जभी घबराए।। 

जग जननी की कृपा से भाव गये कुछ आए। 

उन भावों के आसरे टूटे फटे वैन। 


गुरुदेव की दया से लिख कर पाऊं चैन।। 

भाषा दुर्गा पाठ की सहज समञ्ञ आ जाए। 

पठकर इसको जीव यह मन वांछिति फल पाए। 

महामाया के आसरे किये जाओ गुणगान। 

पूरी सब आशा तेरी करेगे श्री भगवान। 

निश्चय करके पाठ को करेगा जो प्राणी। 

वह ही पायेगा “चमन आशा मन मानी। 


भगवती कं सुन्दर भजनो ओर विचित्र 

इतिहासो को पढना हो तो “चमन की 

वरदाती मों पुस्तक अवश्य मंगवाए। 

काशक : बृज मोहन भारद्वाज पुस्तकालय 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

नित्य पठे ; श्री दगी कठतच 

ऋषि मारकडे ने पूछा जभी। 

दया करके ब्रह्मा जी बोले तभी। 

8ि कि जो गुप्त मन्त्र हे संसार मं। 

है सब शक्तियों जिसके अधिकार मे। 

हर इक का जो कर सकता उपकार हे। 

जिसे जपने से बेडा ही पार हे। 

पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का। 

जो हर काम पूरा करे सवाली का। 

सुनो मारकडे भ समञ्माता हू। 

मे नव दुर्गा के नाम बतलाता ह| 

 कवच की मे सुन्दर चोपाई बना। 

जो अत्यन्त है गुप्त देऊँ बता। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

नव दुर्गां का कवच यह पढे जो मन चित लाये।| 

उस पे किसी प्रकार का कभी कष्ट न अये।। 

कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की । 

पहली शेलपुत्री कहलावे, दूसरी ब्रह्मचारणी मन भावे | 

तीसरी चन्द्रघटा शुभनाम, चौथी कुष्मांडा सुख धाम || 

पाचवी देवी अस्कन्धमाता, छटी कात्यायनी विख्याता। 

सातवीं काल रात्रि महामाया, आठवी महा गोरी जगजाया 

नोवी सिद्धि दात्री जग जाने, नव दुर्गा के नाम बखाने। | 

महा संकट मे वन मे रण मं, रोग कोई उपले निज तनमे । 

महा विपत्ति मे व्योहार मे, मान चाहे जो राज दरवार मे| 

शक्ति कवच को सुने सुनाये, मनोकामना सिद्धि नरपाये 

चामुण्डा हे प्रेत पर वैष्णवी गरुड़ असवार | 

बेल चढ़ी महेश्वरी, हाथ लिये हथियार। 

हंस सवारी वाराही की मोर चढ़ी दुर्गा कोमारी। 

लक्ष्मी देवी कमल आसीना, ब्रहमी हंस चढ़ी ले वीणा। 

इश्वरी सदा वैल असवारी, भक्तन की करती रखवारी । 

रखचेक्र शक्ति त्रिशूला, हल मसूल कर कमल के फूला। 

दत्य नाश करने के कारण, रूप अनेकं कीने है धारण। 

बार बार चरणन सिर नाऊं, जगदम्बे कं गुण को गाऊ। 

कष्ट निवारण बलशाली मौ. दुष्ट संघारण महाकाली मां। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

| कोटि कोटि माता प्रणाम, पूर्णं कीजो मेरे काम। 

| दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ।| 

"चमन" की रक्षा को सदा सिह चढ़ी मां आओ। 

कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की। 

अग्नि से अग्नि देवता, पूर्वं दिशा मे एेन्द्री।। 

दक्षिण मे वाराही मेरी, नैऋत्य मे खडग धारणी । 

वायु मं मौ मृगवाहिनी, पश्चिम मे देवी वारुणी। 

उत्तर मे मौ कोमारी जी, ईशान म शूलधारी जी। ¦ 

ब्रह्माणी माता अर्श पर, मो वैष्णवी इस फर्श पर। 

चामुण्डा दस दिशाओं मं हर कष्ट तुम मेरा हरो। 

ससार म माता मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। 

सन्मुख मेरे देवी जया, पाठे हो माता विजया। 

अजिता खडी वाये मेरे, अपराजिता दाये मेरे। 

उद्योतिनी मो शिखा की, ममो उमा देवी सिर की ही। 

माला धारी ललाट की, ओर भृक्टी की मौ यशस्वनी। 

भृकुटी कं मध्य त्रिनेत्रा, यम घण्टा दोनों नासिका। 

काली कापोलों की कर्ण, मूलो की माता शंकरी। 

नासिका मं अश अपना ममौ सुगन्धा तुम धरो। 

ससार मे माता मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। 

ऊपर व नीचे होठों की मौ चर्चका अमृतकली। 


चमन की  दुर्गा सतुति 

जीभा की माता सरस्वती, दातो की कोमारी सती। 


इस कठ की मो चण्डिका ओर चित्रघण्टा घण्टी की। 

कामाक्षी मो ठोडी की, मं मगला इस वाणी की। | 

ग्रीवा की भद्रकाली मो, रक्षा करे बलशाली मां। ॥ 


। दोनों भुजाओं की मेरे रक्षा करे धनु धारणी। | 

दो हाथों के सब अगो की रक्षा करे जगतारणी। 

शलेश्वरी, कूलेश्वरी, महादेवी, शोक विनाशनी। 


। छाती स्तनो ओर कन्धो की रक्षा करे जगवासिनी | । 

हृदय उदर ओर नाभिके कटि भाग के सब अगो की। 

गुहमेश्वरी मां पूतना, जग जननी श्यामा रग की। | 

क जघाओं की करे रक्षा वोह विन्ध्य वासिनी। 

'टखनो व पौव की करे रक्षा वो शिव की दासिनी। 


दोहा। रक्त मास ओर हड्डियों से जो बना शरीर । 

आतो ओर पित वास में भरा अग्न ओर नीर । 


बल बुद्धि अहकार ओर प्राण अपान समान । 

पत, रज, तम के गुणो मे फसी हे यह जान। 

धार अनेकों रुप ही रक्षा करियो आन। 

तेरी कृपा से ही मों “चमन" का हे कल्याण। 

आयु यश ओर कीर्ति धन सम्पत्ति परिवार । 

ब्रह्माणी ओर लक्ष्मी पार्वती जगतार। 


विद्या दे मो सरस्वती सब सुखो की मूल। 

। दुष्टो से रक्षा करो हाथ लिये त्रिशूल। 

भेरवी मेरी भार्या की रक्षा करो हमेश। 

मान राज दरबार मे देवे सदा नरेश। 


श्री दुर्गा स्तुति 

यात्रा मं दुःख कोडं न मेरे सिर पर आये। । 

कवच तुम्हारा हर जगह मेरी करे सहाये । 

ए जग जननी कर दया इतना दो वरदान। 

लिखा तुम्हाराकवच यह पढ़े जो निश्चय मान। | 

मनवाक्ित फल पाए वह मगल मोद बसाए। 

कवच तुम्हारा पढ़ते ही नवनिधि घर आये। 

ब्रह्मा जी बोले सुनो मारकन्डे, 

यह दुर्गा कवच भने तुमको सुनाया। 

रहा आज तक था गुप्त भेद सारा 

जगत की भलाई को मेने बताया। 

सभी शक्त्यां जग की करके एकत्रित, 

हे मिटटी की देह को इसे जो पहनाया । 

"चमन जिसने श्रद्धा से इस को पढ़ा जो, 

सुना तो भी मुंह मागा वरदान पाया। 

जो संसार मे अपने मंगल को चाहे, 

तो हरदम यही कवच गाता चला जा। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

वियावान जगल, दिशाओं दशो मे, 


तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा। | 

तूजलमे, तू थल मे, तू अग्नि पवन मे, 


कवच पहन कर मुस्कराता चला जा। 

निडर हो विचर मन जहो तेरा चाहे, 


"चमन कदम आगे बढाता चला जा। 

तेरा मान धन धाम इससे बदेगा, 


त्‌ श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाये। 

यही मन्त्र, यन्त्र यही तन्त्र तेरा, 


यही तेरे सिर से है संकट हटाये। 

यही भूत ओर प्रेत कं भय का नाशक, 


यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढाये। 

इसे नित्य प्रति “चमन श्रद्धा से पढ़ कर। 

जो चाहे तो मुंह मांगा वरदान पाये। 

इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पडे । 


कृपा से आदि भवानी की बल ओर बुद्धि बढे। 

श्रद्धा से जपता रहे जगदम्बे का नाम। 

सुख भोगे संसार मे अन्त मुक्ति सुखधाम। 

कृपा करो मातेश्वरी, बालक “चमन नादान । 

तेरे दर पर आ गिरा, करो मेय्या कल्याण। 


चमन की ओरी दुर्गा स्तुति 


वर मागू वरदायनी निर्मल बुद्धि दो। 

मगला स्तोत्र पदू सिद्ध कामना हो। 

ऋषियो के यह वाक्य हे सच्चे सहित प्रमाण । 

श्रद्धा भाव से जो पढ़ सुने हो जाये कल्याण । 

जय मों मंगला भद्रकाली महारानी |


जयन्ती महा चण्डी दुर्गा भवानी। 

मधु केटभ तुम ने थे संहार दीने। 

भेय्या चण्ड ओर मुण्ड भी मार दीने। 


दया करके मेरे भी संकट मिटाना। 

मुञ्चे रूप जय तेज ओर यश दिलाना। 

जभी रक्तबीज ने प्रलय मचाई। 

डरे देव देने लगे तब दुहाई। 


चमन की शरी दुर्गा स्वति 

तो मों मगला चण्डी बन कर तू आई । 

पिया खून उसका अलख ही मिटाई | 

तू ही शत्रुओं की मिटाती निशा हो। 

पुकारे जहां पर्हुच जाती वर्ह हो| 

 दया करके मेरी भी आशा पुजाना। । 

मुञ्चे रूप जय तेज ओर यश दिलाना। 

सभी रोग चिन्ता मिटाती हो अम्बे। | 

सभी मुशिकिलो को हटाती हो अम्बे। 

तू ही दासो का दाती कल्याण करती। 

तू ही लक्ष्मी बन के भण्डार भरती। 

जनय शिवा ओर इन्द्राणी परमेश्वरी त्‌। 

"चमन अपने दासों की मातेश्वरी त्‌। 

जगत जननी मेरी भी बिगड़ी बनाना। 

मुञ्ये रूप जय तेज ओर यश दिलाना। 

जो भक्ति व श्रद्धा से गुण तेरे गाये। 

जो विश्वास से अम्बे तुञ्च को ध्याये। 

पड़े दुर्गा स्तुति तेरी महिमा जाने। 

सुने पाठ भैय्या तेरी शक्ति माने। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

उसे पुत्र पौत्र आदि धन धाम देना। 

गृहस्थी के घर मे सुख आराम देना। | 

चढ़ी सिह पर अपना दर्शन दिखाना। 


मुञ्चे रूप जय तेज ओर यश दिलाना। 

यह स्तोत्र पढ़ कर जो सिर को ज्युकाए | 

सुने पाठ अम्बे तेरा नाम गाए 


उसे मेय्या चरणो मे अपने लगाना। 

| अवश्य उसकी आशाए सारी पुजाना। 

"चमन को तो पूरा हे विश्वास दाती। 

हि रग रग में मेरी तेरा वास दाती। 

तभी तो कहू शक्ति अमृत पिलाना। 


मुञ्चे रूप जय तेज ओर यश दिलाना। 


नोट : हर मंगलवार को प्रातः श्री दुर्गा 

स्तुति का पाठ करे सभी नवरात्रों मे इस 

पाठ का विशेष महत्व हे। 


श्री दुर्गा स्तुति 

श्रीं अर्गला रुतोज नमख्क्र 

नमस्कार देवी जयन्ती महारानी । 

श्री मंगला काली दुर्गां भवानी। 

कृपालनी ओर भद्रकाली क्षमा मो 


शिवा दात्री श्री स्वाहा रमा मोँ। 

नमस्कार चामुण्डे जग तारिणी को। 

नमस्कार मधुकैटभ संहारिणी को | 

नमस्कार ब्रह्मा को वर देने वाली। 

ओ ८: कं सकट को हर लेने वाली। 


तू संसार में भक्तों को यश दिलाये| नज 


तरू दुष्टों कं पजे से सब को बचाये। ~ 

तेरे चरण पूजू तेरा नाम गाऊ। 

तेरे दिव्य दर्शन को हृदय से चाहू। 


मेरे नैनो की मेय्या शक्ति बढ़ा दे। 

मेरे रोग संकट कृपा कर मिटा दे। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

तेरी शक्ति से मे विजय पाता जाऊ। 

| तेरे नाम के यश को फेलाता जाऊ। 

मेरी आन रखना मेरी शान रखना। 

मेरी मेय्या बेटे का तुम ध्यान रखना। 

बनाना मेरे भाग्य दुःख दूर करना। 

कष्मी मेरे भण्डार भरना। 

न निरआस दर से मुञ्ये तुम लोटाना। 

सदा वैरियो से मुञ्चे तुम बचाना। 

तो तेरा बल हे विश्वास तेरा। 

चरणों नमस्कार मेरा। 

नमस्कार परमेश्वरी इन्द्राणी 

नमस्कार जगदम्बे जग की महारानी | 

मेरा घर गृहस्थी स्वर्गं सम बनाना। 

मुञ्जे नेक संतान शक्ति दिलाना। 

सदा मेरे परिवार की रक्षा करना। 

न अपराधो को मेरे दिल माहि धरना। 

नमस्कार ओर कोटि प्रणाम मेरा। 

सदा ही में जपता रहू नाम तेरा। 

जो स्तोत्र को प्रेम से पढ रहा हो| 

जो हर वक्त स्तुति तेरी कर रहा हो| ॐ 

उसे क्या कमी हे जमाने में माता। 

भरे सम्पति कुल खजाने मे माता। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

जिसे तेरी कपा का अनुभव हुआ हे । | 

वही जीव दुनिया मे उज्जवल हुआ हे। 

जगत जननी मेय्या का वरदान पाओ। 

"चमन' प्रेम से पाठ दुर्गा का गाओ। 

सुख सम्पति सब को मिले रहे क्लेश न लेश | 

रोह, प्रेम से निश्चय धार कर पढ़े जो पाठ हमेश। 

संस्कृत कं श्लोकों मे गूढ हे रस लवलीन | 

| ऋषि वाक्यो के भावों को समञ्च केसे दीन ।  

अति कृपा भगवान की “चमन जभी हो जाए। 

पढ़े पाठ मनोकामना पूर्ण सब हो जाए। 


कीलक स्तोज | 

किकी निवासी, शिव सहज उदासी। 

कीलक मत्र मँ सिद्धि जानी, कलियुग उल्ट भाव अनुमानी। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


कील दियो सब यन्त्र मन्त्र, तत्रनी शक्ति कीन परतन्त्र । 

तेही शकर स्तोत्र चडिका, रखियो गुप्त काहू से न कहा। 

फलदायक स्तोत्र भवानी, कीलक मन्त्र पढ़े नर ज्ञानी। 

नित्य पाठ करे प्रम सहित जो, जग मे विचरे कष्ट रहित वो। 

ताके मन मं भय कही नाही, सिधु आकाश त्रिलोकी माहि। 

दोहा] जन्म जन्म कं पाप यह भरम करे पल माहि। 

दुर्गा पाठ से सुख मिले इसमे संशय नाहि। 

जीवत मनवाछित फल पाए। अत समय फिर स्वर्ग सिधाए। 

देवी पूजन करे जो नारी, रहे सुहागिन सदा सुखारी। 

सुतवित्त सम्पत्ति सगरी पावे, दुर्गा पाठ जो प्रेम से गावे। 

शक्ति बल से रहे अरोगा, जो विधि देवे अस संयोगा। 

अष्टभुजी दुर्गा जगतारिणी, भक्तो के सब कष्ट निवारनी । 

पाठ से गुण पावे गुणहीना, पाठ से सुख पावे अति दीना। 

पाठ से भाग लाभ यश लेही, पाठ से शक्ति सब कुष देही। 

अशुद्ध अवसथा मं न पडियो, अपने सग अनर्थ न करियो। 

शुद्ध वस्त्र ओरशुद्ध नीत कर, भगवती के मन्दिरमे जापढ्‌ । 

प्रम से वन्दना करे मात की, हो जाय शुद्ध महा पात की। 

नवरात्र घी जोत जला के, विनय सुनाये शीश ञ्ुका के। 

जगदाता जग जननी जानी, मन की कामना कहे बखानी । 


दुर्गा स्तोत्र प्रेम से पटे सहित आनन्द। 

भाग्य उदय हो “चमन कं चमके मुख सम चन्द | 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


ल्वह्मपिं श्रीं चमन लाल जीं भारवाज (चमन 

 विनप्न प्राधना ॐ 


मुञ्च पर दया करो जग जननी, सब अपराधक्षमा कर दो। 

शारदा माता बुद्धि दो, मो लक्ष्मी भण्डारे भर दो। 

आवाहन विसर्जन पूजा, कुष भी करना जानू न। 

कर्म काण्ड भव्ति कं मन्त्र क्या हे यह पहचानू न। 

भं अपराधो सहित भवानी शरण तुम्हारी आया हू । 

अज्ञानी बालक को बख्शो दाती तेरा जाया हू। 

प्रगट गुप्त जो ओगन हो गये उन पर ध्यान न धरना मो | 

पाठ "चमन मे करू तुम्हारा, आशा पूर्णं करना मा। 


श्री दुर्गा स्तुति 


काव्य विशारद श्री चमन लाल जी भारद्वाज "चमन" अमृतसरी 

पहला अध्याय 

वन्दो गौरी गणपति शंकर ओर हनुमान । 

राम नाम प्रभाव सेहे सब का कल्याण। 

गुरुदेव के चरणों की रज मस्तक पे लगाऊ | 

शारदा माता की कृपा लेखनी का वर पाऊ। 

नमो “नारायण दास जी विप्रन कृल श्रगार। 

पूज्य पिता की कृपा से उपजे शुद्ध विचार । 

वन्द्‌ सन्त समाज को वदू भगतन भेख। 

जिनकी सगत से हए उल्टे सीधे लेख। 

आदि शक्ति की वन्दना करके शीश नवाऊ। 

सप्तशति कं पाठ की भाषा सरल बनाऊ। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


क्षमा करे विद्वान सब जान मुञ्े अन्जान। 

चरणो की रज चाहता बालक “चमन' नादान || 

घर घर दुर्गा पाठ का हो जाये प्रचार। 

आदि शक्ति की भक्ति से होगा बेडा पार। 

कलियुग कपट कियो निज डरा, कर्मो के वश कष्ट घनेरा। | 

चिन्ता अग्न मं निस दिन जरही। 

परभु का सिम॒रण कबहु न करही। 

यह स्तुति लिखी तिनके कारण। 

क्तेः दुःख 1 ओर कष्ट निवारण। 

ऋषि करे बखाना। 

सन लावे निज ध्याना। 

श नामक मनवतर मे। 

सुरथ नामी राजा जग भर मे। 


राज करत जब पड़ी लडाई, युद्ध मे मरी सभी कटकाई। 

राजा प्राण लिए तब भागा, राज कोष परिवार त्यागा। 

सचिवन बाटयो सभी खजाना, राजन मर्म यह बन मे जाना। 

सुनी खवर अति भयो उदासा, राज पाठ से हआ निराशा। 

¶टकत आयो इकबन माहि, मेधा मुनी के आश्रम जाहि। 

मेधा मुनि का आश्रम था कल्याण निवास। 

रहने लगा सुरथ वर्ह बन संतन का दास। | 

इक दिन आया राजा को अपने राज्य का ध्यान । 

चुपके आश्रम से निकल पर्हुवा बन मे आन। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

मन मे शोक अति उपजाये, निज नेन से नीर बहाये। 

पुरममता अति दुःख लागा, अपने आपको जान अभागा। । 

मन मे राजन करे विचारा, कर्मन वश पायो दुःख भारा। 

रहे न नौकर आज्ञाकारी, गई राजधानी भी सारी। 

विधनामोहे भयो विपरीता, निश दिन रहू विपन भयभीता | । 

देव करोगे कबहु सहाई, काटो मोरि विपदा सिर आई। 

सोचत सोच रहयो भुंआला, आयो वेश्य एकतेहि काला। 

तिनराजा को कीन प्रणामा, वेश्य समाधि कहयो निज नामा। | 

राजा कहे समाधि से कारण दो बतलाये। 

दुखी हए मन मलिन से क्यो इस वन मे आए। 

आह भरी उस वैश्य ने बोला हो बेचेन। 

सुमिरन कर निज दुःख का भर आये जल नैन। 

वेश्य कष्ट मन का कह डाला, पुत्रो ने हे घर से निकाला। 

छीन लियो धन सम्पत्ति मेरी, मोरी जान विपत ने घेरी। । 

घर से धक्कं खा वन आया, नारी ने भी दगा कमाया। 

सम्बन्धी स्वजन सब त्यागे, दुख पावेगे जीव अभागे। 

फिर भी मन मे धीर न आवे, ममतावश हर दम कल्पावे। 

दोहा] मेरे रिश्तेदारो ने किया नीचो का काम। 

फिर भी उनके बिना न आये मुञ्चे आराम। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

सुरथ ने कहा मेरा भी ख्याल एेसा। 

तुम्हारा हुआ ममतावश हाल जेसा। | 

चले दोनो दुखिया मुनि आश्रम आए। 

चरण सिर निवा कर वचन ये सुनाए। 

ऋषिराज कर कृपा बतलाडइये गा। 

हमे भेद जीवन का समद्याडइये गा। 

जिन्होने हमारा निरादर किया हे।। 

हमे हर जगह ही बेआदर किया हे | | 

लिया छीन धन ओर सर्वस्व हे जो, 

किया खाने तक से भी बेबस हे जो। 

ये मन फिर भी क्यों उनको अपनाता हे । 

उन्हीं कें लिए क्यों यह घबराता हे। 

हमारा यह मोह तो छुडा दीजिये गा | 

हमे अपने चरणों लगा लीजिये गा। 

बिनती उनकी मान कर, मेधा ऋषि सुजान । 

उनके धीरज के लिए कहे यह आत्म ज्ञान। 

यह मोह ममता अति दुखदाई, सदा रहे जीवो मं समाई। 

पशु पक्षी नर देव गन्धर्वा, ममतावश पावे दुख सर्वा। 

गृह सम्बन्धी पुत्र ओर नारी, सब ने ममता इूठी डारी। 

यद्यपि ज्ूठ मगर न छूटे, इसी के कारण कर्म हे फूटे। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

ममतावश विडी चोग चुगावे, भूखी रहे बच्चो को खिलावे। 

ममता ने बोधे सब प्राणी, ब्राह्मण डोम ये राजा रानी।| 


ममता नै जग को बौराया, हर प्राणी का ज्ञान भुलाया।| 

ज्ञान बिना हर जीव दुःखारी, आये सर पर विपता भारी। 


तुमको ज्ञान यथार्थ नाही, तभी तो दुख मानो मनमाही। | 

दोहा ] पुत्र करे मों बाप को लाख बार धिक्कार। 

मात पिता छोड नही फिर भी इूठा प्यार। 


योगनिद्रा इसी तो ममता का है नाम।। 

जीवों को कर रखा हे इसी ने बे आराम। 

भगवान विष्णु की शक्ति यह, भक्तो की खातिर भक्ति यह । 

महामाया नाम धराया हे, भगवती का रूप बनाया हे। 

ज्ञानियो कं मन को हरती हे, प्राणियों को बेबस करती हे। 

यह शक्ति मन भरमाती हे, यह ममता मं फसाती हे। 

यह जिस पर कृपा करती हे, उसक दुःखो को हरती हे। 

जिसको देती वरदान हे यह, उसका करती कल्याणहे यह। 

यही ही विद्या कहलाती हे, अविद्या भी बन जाती हे। 

संसार को तारने वाली हे, यह ही दुर्गा महाकाली हे। 

सम्पूर्ण जग की मालिक हे, यह कल सृष्टि की पालक हे। 

दोहा ] ऋषि से प्रष्ठा राजा ने कारण तो बतलाओ। 

भगवती की उत्पति का भेद हमे समञ्माओ। 


श्री दुर्गा स्तुति 


मुनि मेधा बोले सुनो ध्यान से। जनल 

मग्नं निद्रा मे विष्णु भगवान थे ष्नङन” ` | 

थे आराम से शेष शेय्या पे वो। | 

असुर मधु-कैटभ वहां प्रगटे दो। 

श्रवन मेल से र की लेकर जन्म। 

लगे ब्रह्मा क वो करने खत्म। 

उन्हें देख ब्रह्मा जी घबरा गये। 

लखी निद्रा प्रभु की तो चकरा गये। 

तभी मग्न मन ब्रह्मा स्तुति करीं | जवल 

कि इस योग निद्रा को त्यागो हरी।| 

कहा शक्ति निद्रा तू बन भगवती। 

तू स्वाहा तू अम्बे तू सुख सम्पति। 

त्‌ सावित्री सध्या विश्व आधार तू। 

उत्पति पालनं व सहार त्‌। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

तेरी रचना से ही यह संसार है। ननन 

किसी ने न पाया तेरा पार हे। 

ॐ गदा शख चक्र पदम हाथ ले। 

तू भक्तो का अपने सदा साथ द| 

महामाया तब चरण ध्याऊ, तुमरी कृपा अभय पद पाऊ। 

ब्रह्मा विष्णु शिव उपजाए, धारण विविध शरीर कर आये। 

तुमरी स्तुति की न जाए, कोड न पार तुम्हारा पाए 

मधु केटभ मोहे मारन आए, तुम बिन शक्ति कोन बचाए। 

प्रभु के नेत्र से हट जाओ, शेष शेय्या से इन्हं जगाओ। 

असुरो पर मोह ममता डालो, शरणागत को देवी बचा लो। 

सुन स्तुति प्रगटी महामाया, प्रभु आखो से निकली छाया। 

तामसी देवी नाम धराया, ब्रह्मा खातिर प्रभु जगाया 

योग निद्रा के हटते ही प्रभु उघाडे नैन। 

मधु केटभ को देखकर बोले क्रोधित वेन। 

ब्रह्मा मेरा अश हे मार सके न कोय। 

मुञ्च से बल अजमाने को लड़ देखो तुम दोये। 

परभु गदा लेकर उठे करने दैत्य संहार। 

पराक्रमी योद्धा लड़ वर्ष वो पांच हजार। 

तभी देवी महामाया ने देत्यो के मन भरमाए। 

बलवानो कं हदय मं दिया अभिमान जगाए। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

अभिमानी कहने लगे सुन विष्णु धर ध्यान । 

युद्ध से हम प्रसन्न हे मागो कुछ वरदान। 

थे कोतक कर रहे बोले इतना हां | 

मेरे हाथों से मरो वचन मुञ्चे यह दो। 

वचन वध्य वह राक्षस जल को देख अपार। 

काल से बचने कं लिए कहते शब्द उच्चार | 

जल ही जल चहू ओर हे ब्रह्मा कमल बिराज । 

मारना चाहते हो हमं तो सुनिए महाराज । | 

वध कीजो उस जगह पे जल न जहौ दिखाये। 

प्रभु ने इतना सुनते ही जोघ पे लिया लिटाये। 

चक्र सुदर्शन से दिए दोनों के सिर काट। 

खुले नैन रहे दोनों कं देखत प्रभु की बाट। 

ब्रह्मा जी की स्तुति सुन प्रगटी महामाया | 

पाठ पटे जो प्रेम से उसकी करे सहाय । 

शक्ति के प्रभाव का पहला यह अध्याय। 

चमन“ पाठ कारण लिखा सहजे शब्द बनाय । 

श्रद्धा भवितत से करो शक्ति का गुणगान। 

ऋद्धि सिद्धि नव निधि दे करे दाती कल्याण। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


दूसरा अध्याय 

दुर्गां पाठ का दूसरा शुरु करू अध्याय ज 

जिसके सुनने पढ़ने से सब संकट मिट जाय। 

मेधा ऋषि बोले तभी, सुन राजन धर ध्यान। 

भगवती देवी की कथा करे सब का कल्याण। 

देव असुर भयो युद्ध अपारा, महिषासुर दैतन सरदारा। 

योद्धा बली इन्द्र से भिडयो, लडयो वर्ष शतरणते न फिरयो | 

देव सेना तब भागी भाई, महिषासुर इन्द्रासन पाई। 

देव ब्रह्मा सब करे पुकारा, असुर राज लियो छीन हमारा। 

ब्रह्मा देवन संग पधार, आए विष्णु शंकर दारे। 

कही कथा भर नेनन नीरा, प्रभु देत असुर बहु पीरा। 

सुन शकर विष्णु अकुलाए, भवे तनी मन क्रोध बढ़ाए। 

नेन भये त्रिदेव कं लाला, मुखन ते निकलयो तेज विशाला। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

दोहा] तव त्रिदेव के अगो से निकला तेज अपार। 

जिनकी ज्वाला से हुआ उज्जवल सब ससार।| 

सभी तेज इक जा मिल जाई, अतुल तेज बल परयो लखाई। 

ताही तेज सो प्रगटी नारी, देख देव सब भयो सुखारी। 

शिव के तेज ने मुख उपजायो, धर्म तेज ने केश बनायों | | 

विष्णु तेज से बनी भुजाए, कुच म चन्दा तेज समाए। 

नासिका तेज कुबेर बनाई, अग्नि तेज त्रिनेत्र समाई। | 

ब्रह्म तेज प्रकाश फलाए, रवि तेज ने हाथ वनाए।| 

तेज प्रजापति दात उपजाए, श्रवण तेज वायु से पाए। 

सब देवन जब तेज मिलाया, शिवा ने दुर्गा नाम धराया। 

दोहा| अट्टहास कर गजी जब दुर्गा आध भवानी 

सब देवन ने शक्ति यह माता करके मानी। 

शम्भु ने त्रिशूल, चक्र विष्णु ने दीना 

अग्नि से शक्ति ओर शख वर्ण से तीना। 

धनुष बाण, तरकश, वायु ने भेट चढ़ाया। 

सागर नै रत्नों कामां को हार पहनाया। 

सूर्य ने सब रोम किए रोशन माता के। 

वजे दिया इन्द्र ने हाथ मे जगदाता के। 

वि रएेरावत ने गले की घण्टी ही दे डारी। 

सिह हिमालय ने दीना करने को सवारी। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


काल ने अपना खडग दिया फिर शीश निवाई। 

ब्रह्मा जी ने दिया कमण्डल भेट चढ़ाई 

विश्वकर्मा ने अद्भुत इक फरसा दे दिना। 

शेषनाग ने छत्र माता की भेटा कीना। 

वस्त्र आभूषण नाना भाति देवन पहनाए। 

रत्न जडित मेय्य कं सिर पर मुकुट सुहाए। 

दोहा] आदि भवानी ने सुनी देवन विनय पुकार । 

असुरो के सहार को हई सिह सवार। 

रण चण्डी ज्वाला बनी हाथ लिए हथियार । 

सब देवो ने मिल तभी कीनी जे जे कार। 

चली सिंह चढ़ दुर्गा भवानी, देव सेन को साथ लिये। 

सब हथियार सजाए रण कें अति भयानक रूप किये। 

महिषासुर राक्षस ने जब यह समाचार उनका पाया। 

लेकर असुरो की सेना जल्दी रण भूमि मे आया। 

दोनो दल जब हुए सामने रण भूमि मे लड़ने लगे। 

क्रोधित हो रण चण्डी चली लाशों पर लाशे पड़ने लगे। 

भगवती का यह रूप देख असुरो कं दिल थे कोप रहे। 

लडने से घवराते थे, कुछ भाग गये कुष्ठ होप रहे। 

असुर के साथ करोड़ो हाथी घोडे सेना मे अये। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

देख के दल महिषासुर का व्याकुल हो देवता घबराए। 

रण चण्डी ने दशो दिशाओं मं वोह हाथ फलाए थ। 

युद्ध भूमि म॑ लाखो दत्यो के सिर काट गिराये थ। 

देवी सेना भाग उदी रह गर्ह अकेली दुर्गा ही। 

महिषासुर सेना कं सहित ललकारता आगे बड़ा तभी॥ 

उस दुर्गा अष्टभुजी मों ने रण भूमि में लम्बे सास लिए 

श्वास श्वास मे अम्बा जी ने लाखों ही गण प्रकट किए 

बलशाली गण बढ़े वो आगे सजे सभी हथियारों से। 

गुज उठा आकाश तभी माताके नजै ने कारों से। 

पृथ्वी पर असुरो के लहू की लाल नदी वह बहती थी। 

बच नहीं सकता देत्य कोई ललकार के देवी कहती थी। 

लकड़ी के दरों को अनि जैसे भस्म बनाती हे। 

वेसे ही शक्ति की शक्ति दैत्य मिटाती जाती ह। 

सिह चढ़ी दुर्गा ने पल मे दैत्यं का संहार किया। 

पुष्प देवां ने बरसाए माता कानजै जै कार किया। 

'चमन" जो श्रद्धा प्रम से दुर्गा पाठ को पढ़ता जाएगा। 

दुःखों से वह रहेगा बचता मनवांछित फल पायेगा। 

हआ समाप्त दूसरा दुर्गा पाठ अध्याय। 

 चमन" भवानी की दया, सुख सम्पति घर आए 


तीसरा अध्याय 

चक्षुर ने निज सेना का सुना जभी संहार । 

क्रोधित होकर लड़ने को आप हुआ तेयार। 

ऋषि मेधा ने राजा से फिर कहा। 

सुनो तृतीय अध्याय की अब कथा। 

महा योद्धा चक्षुर था अभिमान मे। 

गर्जता हआ आया मेदान मे। 

वह सेनापति असुरो का वीर था। न 

चलाता महा शक्ति पर तीर था। ८ 

मगर दुर्गां ने तीर काटे सभी। 

कई तीर देवी चलाए तभी। 

जभी तीर तीरो से टकराते थे। 

तो दिल शूरवीरों के घवबराते थे। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

तभी शक्ति ने अपनी शक्ति चला। 

वह रथ असुर का टकड़ टकडे किया । | 

असुर देख बल मों का घबरा गया। 

खडग हाथ ले लडने को आ गया। 

किया वार गर्दन पे जब शेर की। 

बड़े वेग से खडग मारी तभी। 

भुजा शक्ति पर मारा तलवार को। 

वह तलवार टकडे गईं लाख हो। 

असुर ने चलाई जो त्रिशुल भी। 

लगी माता के तन को वह फूल सी। 

लगा कापने देख देवी का बल। 

मगर क्रोध से चेन पाया न पल। 

असुर हाथी पर माता थी शेर पर। 

लाई मोत थी दैत्य को घेर कर। 

उछल सिंह हाथी पे ही जा चढ़ा. 

वह माता का सिह दैत्य से जा लडा।

जभी लडते लड़ते गिरे पृथ्वी पर। 

बढी भद्रकाली तभी क्रोध कर। 

असुर दल का सेना पति मार कर। 

चली काली के रूप को धार कर। 

गर्जती खड्ग को चलाती हई। 

वह दुष्टो के दल को मिटाती हुरई। | 

पवन रूप हलचल मचाती हई । 

असुर दल जमीं पर सुलाती हुई । 

लह की वह नदियों बहाती हुई । 

नए रूप अपने दिखाली हई । 

महाकाली ने असुरो की जब सेना दी मार। 

महिषासुर आया वरहो रूप भसे का धार। | 

सवेया : गर्ज उसकी सुनकर लगे भागने गण। 

कई भागतो को असुर ने सहारा। 

खुरो से दबाकर कई पीस ङाले। ॐ 

लपेट अपनी पूछ मे कईयो को मारा। 

जमीं आसमां को गर्ज से हिलाया। 

पहाड़ों को सीगो से उसने उखाडा। 

श्वासो से बेहोश लाखो ही कीने। 

लगे करने देवी के गण हा हा कारा। 

विकल अपनी सेना को दुर्गा ने देखा। 

चढ़ी सिंह पर मार किलकार आई। 

लिए शख चक्र गदा पदम हाथो । 

वह त्रिशूल परसा ले तलवार आई । 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


किया रूप शक्ति ने चण्डी का धारण | 

 वह दैत्यो का करने थी संहार आई ।  

लिए बाध भसे को निज पाश में अट। 

असुर ने वो भसे की देह पलटाई। | 

बना शेर सन्मुख लगा गरजने वँ | | 

तो चण्डी ने हाथों मे परसा उठाया । 

लगी काटने दैत्य के सिर को दुर्गा 

तो तज सिंह का रूप नर बन के आया। | 

जो नररूपकीमां ले गर्दन उडाई | 

तो गज रूप धारण किया विल बिलाया। | 

लगा खेचने शेर को सूंड से जव। 

तो दुर्गा ने सूंड को काट गिराया। 

कपट माया कर दैत्य ने रूप बदला। 

लगा भसा बन के उपद्रव मचानें। 

तभी क्रोधित होकर जगत मात चण्डी | 

लगी नेत्रं से अग्नि बरसानें। 

धमकते हुए मुख से प्रगदी ज्वाला। 

लगी अब असुर को डिकाने लगाने । 

उछ्ल भसे की पीठ पर जा चढ़ी वह। 

लगी पवो से उसकी देह को दवाने। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


दिया काट सरभेसे काखडग से जब। 

तो आधा ही तन असुर का बाहर आया। | 

तो त्रिशूल जगदम्बे ने हाथ लेकर। 

महा दुष्ट का शीश धड़ से उडाया। 

चली क्रोध से मेय्या ललकारती तब । 

किया पल मं देत्यो का सारा सफाया। 

चमन“ पुष्प देवों ने मिल कर गिराए 

अप्सराओं व गन्धर्वो ने राग गाया। 

तृतीय अध्याय मे हे महिषासुर सहार । 

"चमन" पढ़ जो प्रेम से मिटते कष्ट अपार । 


चोथा  अध्याय 


आदिशक्ति ने जब किया महिषासुर का नाश। 

सभी देवता आ गये तब माता के पास। 

मुख प्रसन्न से माता के चरणों मे शीश ञ्मुकाये। 

करने लगे वह स्तुति मीठे वेन सुनाये।| 

हम तेरे ही गुण गाते हे, चरणो मे शीश ज्जुकाते हे। | 

तेरे जे कार मनाते हं, जे जे अम्बे जे जगदम्बे । 

जे दुर्गा आदि भवानी की, जे जे शक्ति महारानी की । | 

जे अभयदान वरदानी की, जै अष्टभुजी कल्याणी की । 

तुम महा तेज शक्ति शाली । 

8 तुम ही हो अद्भुत बलवाली। 

तू रण चण्डी त्‌ महाकाली। 

तुम दासो की हो रखवाली-हम तेरे ही गुण गाते हे। 

तुम दुर्गा बन कर तारती हों। 

चण्डी बन दुष्ट संहारती हो । 

काली रण मे ललकारती हो। 

शक्ति तुम बिगड़ी संवारती हो-हम तेरे ही गुण गाते हे । 

हर दिल मे वास तुम्हारा हे। 

तेरा ही जगत पसारा हे। 

तुमने ही अपनी शकित्ति से। 

"जवान देत्य को मारा है-हम तेरे ही गुण गाते हे । 

ब्रह्मा विष्णु महादेव बड़ । 

तेरे दर पर कर जोड़ खडे। 

चमन की । _ ओरी दुर्गा सतुति 


वर पाने को चरणों मं पड़ं। 

शक्ति पा जा देत्यो से लडे-हम तेरे ही गुण गाते हे। 

हर विद्या का हे ज्ञान तुञ्धे। 

अपनी शक्ति पर मान तुञ्ज । 

हर इक की हे पहचान तुञ्जे । 

हर दास का माता ध्यान तुञ्च-हम तेरे ही हर गुण गाते हे । 

ब्रह्मा जब दर पर आते हे। 

वेदो का पाठ सुनाते हे। 

विष्णु जी चंवर ्युलाते हे। 

शिव शम्भु नाद बजाते हे-हम तेरे ही गुण गाते हे। 

तू भद्रकाली हे कहलाई। 

त्‌ पार्वती बन कर आई।

दुनियां के पालन करने को। 

तू आदि शक्ति हे महामाई-हम तेरे ही गुण गाते ह। 

भूखों को अन्न खिलाये तू। 

भक्तों के कष्ट मिटाये तू। 

दयावान दाती मेरी। 

हर मन की आस पुजाये तू-हम तेरे ही गृण गाते ह । 

निर्धन के त्‌ भण्डार भरे। 

त्‌ पतितां का उद्धार करे। 


चमन की ओ दुर्गा स्तुति 

तू अपनी भक्ति दे करके। 

भव सागर से भी पार करे-हम तेरे ही गुण गाते हे | | 

हे त्रिलोकी मे वास तेरा 

धि हर जीव हे मेय्या दास तेरा। 

गुण गाता जमीं आकाश तेरा। । 

हमको भी हे विश्वास तेरा-हम तेरे ही गुण गाते हे। 

दुनियां के कष्ट मिटा माता। 

हर इक की आस पुजा माता। 

हम ओर नही कुछ चाहते हे । 

बस अपना दास बना माता-हम तेरे ही गुण गाते हे । 

त्र्‌ दया करे तो मान भी हो। 

दुनिया की कुछ पहचान भी हो । 

भक्ति से पेदा ज्ञान भी हो। 

तू कृपा करे कल्याण भी हो-हम तेरे ही गुण गाते हे | | 

देवो ने प्रेम पुकार करी। 

मो अम्बे ट प्रसन्न हुड 

दर्शन देकर जग की जननी। 

तब मधुर वाणी से कहने लगी । 

मागो वरदान जो मन भाए। 


चमन की | श्री दुर्गा स्तुति 

देवो ने कहा तब हषयि। 

जब भी हम प्रेम से याद करे। 

मां देना दर्शन दिखलाये-हम तेरे ही गुण गाते हे। 

तब भद्रकाली यह बोल उढठी। 

तुम करोगे याद मुञ्चे जब ही। 

मे संकट दूर करूं तब ही। 

इतना कह अर्न्तध्यान हई । 

तब “चमन! खुशी हो सबने कहा। 

जय जगतारणी भवाणी मोँ-हम तेरे ही गुण गाते हे । 

वेदो ने पार न पाया हे। 

केसी शक्ति महामाया हे। 

लिखते लिखते यह दुर्गा पाठ। 

मेरा भी मन हर्षाया हे। 

नादान "चमन" पे दया करो। 

शारदा माता सिर हाथ धरो। 

जो पाठ प्रेम से पढ़ जाये। 

मुंह मागा माता वर पाये।  

सुख सम्पति उसकं घर आये। 

हर समय तुम्हारे गुण गाये। | 

उसकं दुःख दर्द मिटा देना। 


चमन की | श्री दुर्गा स्तुति 

दर्शन अपना दिखला देना-हम तेरे ही गुण गाते हे। 

जेकार स्तोत्र यह पढ़े जो मन चित लाये। 

भगवती माता उसकं सब देगी कष्ट मिटाए। 

माता के मन्दिरमे जा सात बार पढ़े जोए। 

शक्ति के वरदान से सिद्ध कामना होए। । 

चमन“ निरन्तर जो पड़े पाठ एक ही बार। 

सदा भवानी सुख दे भरती रहे भण्डार। 

इस स्तोत्र को प्रेम से जो भी पढ़े सुनाए। 

हर सकट मे भगवती होवे आन सहाए। 

मान इज्जत सुख सम्पति मिले "चमन" भरपूर। 

दुर्गा पाठी से कभी रहे न भेय्या दूर। 

"चमन" की रक्षा सदा ही करो जगत महारानी | 

जगदम्बे महाकालिका चण्डी आदि भवानी। 

सूचना : “चमन की श्री दुर्गा स्तुति का 

पाठ सब मनोकामना पूर्णं करता हे। इसकं 

साथ ही “वरदाती मौ ओर सकट मोचन 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


पाचवा  अधयाय 

ऋषि राज कहने लगे, सुन 

दुर्गा पाठ का कहता हू. पाचवा मे अध्याय। 

एक समय शुम्भ निशुम्भ दो हए दैत्य बलवान। 

जिनके भय से कोपता था यह सारा जहान। 

इन्द्र आदि को जीत कर लिया सिहासन छीन। 

खोकर ताज ओर तख्त को हए देवता दीन। 

देव लोक को छोडकर भागे जान बचाये। 

जगल जगल फिर रहे संकट से घवराये। 

तभी याद आया उन्हे देवी का वरदान। 

याद करोगे जब मुञ्चे करूंगी मे कल्याण। 

तभी देवताओं ने स्तुति करी | 

खड हो गये हाथ जोड़े सभी।

चमन की आरी दुर्गा स्तुति 

लगे कहने एे मेय्या उपकार कर| 

त्‌ आ जल्दी दैत्यो का संहार कर। | 

्‌ प्रकृति महा देवी भद्रा हे तू।| 

तू ही गौरी दात्री वरूद्रादहेत्‌। 

तू हे चन्द्र॒ रूपा तू सुखदायनी। 

त्‌ लक्ष्मी सिद्धि हे सिंहवाहिनी । 

भक्तो 


हे बेअन्त रूप ओर करई नाम हेँ। 

तेरा नाम जपते सुबह शाम हे, 

की कीर्तिं तू सत्कार हे। 

विष्णु की माया तू संसार हे। श्रुः | 

ही अपने दासों की रखवार हे। 

तुञ्ये मो करोड़ों नमस्कार दहे। 

नमस्कार हे मो नमस्कार 

त्‌ हर प्राणी मे चेतन आधार हे। ध 

तू ही बुद्धि मन तू ही अहकार हे। 

तू ही निद्रा बन देती दीदार हे। 

तुञ्े मा करोड़ों नमस्कार हे। 

नमस्कार हे मो नमस्कार दहे। 

च ही छाया बनके हे छाई हई । 

या रूप सब में समाई हुई। 

तेरी शक्ति का सब मे विस्तार हे। 

हि ऋ श्री दुर्गा स्तुति 

तुञ्े मों करोड़ों नमस्कार हे। 

नमस्कार हे मों नमस्कार हे। 

हे तृष्णा तू ही क्षमा रूप हे। | 

यह ज्योति तुम्हारा ही स्वरूप हे। 

तेरो लज्जा से जग शर्मसार हे। 

तुद मों करोड़ों नमस्कार हे। | 

नमस्कार ह मों नमस्कार _ हे। 

त्‌ ही शान्ति बनके धीरज धरावे। 

त्‌ ही श्रद्धा बनके यह भव्ति बढ़ावे।| 

तू ही कान्ति तू ही चमत्कार हे। 

तुञ्े मों करोड़ों नमस्कार है| ष्णः 

नमस्कार है मो नमस्कार दहैँ। 

तू ही लक्ष्मी बन कं भण्डार भरती। 

त्‌ ही वृति बनके कल्याण करती। 

तेरा स्मृति रूप अवतार ह। 

तुञ्े मों करोडो नमस्कार हे। 

नमस्कार है मौ नमस्कार हे। 

तू ही तुष्टी बनी तन में विख्यात हे। 

तू हर प्राणी की तात ओर मात हे। 

` दया बन समाई तू दातार हे। 

तुञ्े मो करोड़ों नमस्कार हे। 

नमस्कार है मौ नमस्कार हे। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

तू ही भ्रान्ति भ्रम उपजा रही। 

अधिष्ठात्री तू ही कहला रही। 

तू चेतन निराकार साकार हे। 

तुञ्े मौ करोड़ों नमस्कार दहेँ। 

 नमस्कार हे मो नमस्कार हें। 

त्‌ ही शक्ति हे ज्वाला प्रचण्ड हे। 

तुञ्े पूजता सारा ब्रह्मण्ड दहे। 

तू ही ऋद्धि सिद्धि का भण्डार हे। 

तुञ्े मों करोड़ों नमस्कार दहे। 

नमस्कार है मा नमस्कार हे। 

मुञ्चे एेसा भक्ति का वरदान दो। 

चमन" का भी उद्धार कल्याण हो| नल 

तू दुखिया अनाथां की गमखार हे। 

तुञ्े मां करोड़ों नमस्कार हें। 

नमस्कार हे मों नमस्कार दहे। 

नमस्कार स्तोत्र को जो पदढे। 

भवानी सभी कष्ट उसके हरे। 

चमन. हर जगह वह मददगार दे। 

तुञ्ये मो करोड़ों नमस्कार हे। 

नमस्कार रहै मा नमस्कार हे। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

राजा से बोले ऋषि सुन देवन की पुकार। 

जगदम्बे आई वहां रुप पार्वती धार। | 

गगा-जल मे जब किया भगवती ने स्नान। 

देवो से कहने लगी किसका करते हो ध्यान । 

इतना कहते ही शिवा हई प्रकट तत्काल। | 

पार्वती के अश से धारा रुप विशाल। 

शिवा ने कहा मुञ्ज को हँ ध्या रहे। 

यह सब स्तुति मेरी ही गा रहे। 

हे शुम्भ ओर निशुम्भ के डराये हुए। 

शरण मे हमारी है आए हए। 

शिवा अंश से बन गई अम्बिका। 

जो बाकी रही वह बनी कालिका। 

धरे शेल पुत्री ने यह दोनों रूप। 

बनी एक सुन्दर बनी एक कुरूप। 

महाकाली जग में विचरने लगी। षव 

ओर अम्बे हिमालय पर रहने लगी। 

तभी चण्ड ओर मुण्ड आये वह । 

विचरती पहाड़ों मे अम्बे जहा। |

अति रूप सुन्दर न देखा गया। 

निरख रूप मोह दिल मे पेदा हुंआ। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

कहा जा के फिर शुम्भ महाराज जी। 

कि देखी हे इक सुन्दरी आज ही। 

चढ़ी सिह पर सेर करती हई । 

वह हर मन में ममता को भरती हई । 

चलो आखो से देख लो भाल लो। 

रत्न हे त्रिलोकी का संभाल लो। 

सभी सुख चाहे घर मे मौजूद हे। 

मगर सुन्दरी बिन वो बेसूद हे। | 

वह बलवान राजा हे किस काम का। 

न पाया जो साथी यह आराम का। 

करो उससे शादी तो जानेंगे हम। 

महलो मे लाओ तो मानेगे हम। 

यह सुनकर वचन शुम्भ का दिल बढ़ा | 

महा असुर सुग्रीव से यूं कहा। 

जाओ देवी से जाके जल्दी कहो । 

कि पत्नी बनो महलों मे आ रहो । 

तभी दूत प्रणाम करके चला। 

हिमालय पे जा भगवती से कहा। 

मुञ्जे भेजा हे असुर महाराज ने। 

अति योद्धा दुनिया के सरताज ने। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

वह कहता हे दुनिर्यो का मालिक हू मे। 

इस त्रिलोकी का प्रतिपालक हू मे। 

रतन हे सभी मेरे अधिकार मे। 

मे ही शक्तिशाली हू संसार मे। 

सभी देवता सिर दकाय मुञ्चे। 

सभी विपता अपनी सुनाये मुञ्चे। 

अति सुन्दर तुम स्त्री रत्न हो। 

हो क्यो नष्ट करती सुन्दरताई को। | 

बनो मेरी रानी तो सुख पाओगी। 

न भटकोगी बन मे न दुःख पाओगी। 

जवानी में जीना वो किस काम का। 

मिला न विषय सुख जो आराम का। 

जो पत्नी बनोगी तो अपनाऊगा | ण्न 

मे जान अपनी कूर्बान कर जाऊगा। 

दोहा] दूत की बातों पर दिया देवी ने न ध्यान। 

कहा डाट कर सुन अरे मूर्ख खोल के कान। 

सुना मेने वह दैत्य बलवान हे। 

वह दुनिर्यो मे शहजोर धनवान हे। 

सभी देवता हे उस से हारे हए। 

छुपे फिरते हे उर के मारे हुए। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

यह माना कि रत्नों का मालिक हे वो। 

सुना यह भी सृष्टि का पालक हे वो। 

मगर मेने भी एक प्रण ठाना हे। 

तभी न असुर का हुक्म माना हे। 

जिसे जग मं बलवान पाऊगी मे। 

उसे कन्त अपना बनाऊमी में| 

जो हे शुम्भ ताकत के अभिमान मे। 

तो भेजो उसे आये मेदान मे। 

दोहा| कहा दूत ने सुन्दरी न कर यूं अभिमान। 

शुम्भ निशुम्भ हे दोनों ही, योद्धा अति बलवान । 

उन से लडकर आज तक जीत सका न कोय। 

तू इठे अभिमान मे काहे जीवन खोय। 

अम्बा बोली दूत से बन्द करो उपदेश। 

जाओ शुम्भ निशुम्भ को दो मेरा सन्देश। 

“चमन कहे दत्य जो, वह फिर कहना आए। 

युद्ध की प्रतिज्ञा मेरी, देना सब समद्ाए। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

छटा अध्याय 


नव दुर्गा के पाठ का छठा हे यह अध्याय। 

जिसके पटने सुनने ये जीव मुक्त हो जाय। 

8 ऋषिराज कहने लगे सुन राजन मन लाय। 

दूत ने आकर शुम्भ को दिया हाल बतलाय। 

सुनकर सब वृतात को हुआ क्रोध से लाल |

धूम-लोचन सेनापति बुला लिया तत्काल । 

आज्ञा दी उस असुर ने सेना लेकर जाओ। 

कंशो से तुम पकड़ कर, उस देवी को लाओ। 

पाकर आज्ञा शुम्भ की चला दैत्य बलवान। 

सेना साठ हजार ले जल्दी पर्चा आन। 

देखा हिमालय शिखर पर वैदी जगत-आधार। 

क्रोध मे तब सेनापति बोला यूं ललकार। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

चलो खुशी से आप ही मम स्वामी के पास। 

नहीं तो गौरव का तेरे कर दूंगा म नाश। 

सुने भवानी ने वचन बोली तज अभिमान। 

देख तो सेनापति कितना हे बलवान। 

मे अबला तव हाथ से केसे जान बचाऊ। 

बिना युद्ध पर किस तरह साथ तुम्हारे जाऊ। 

लड़ने को आगे बढ़ा सुन कर वचन दलेर। 

दुर्गा ने हकार से किया भस्म का ढेर।| 

सेना तब आगे बढ़ी चले तीर पर तीर। 

कट कट कर गिरने लगे सिर से जुदा शरीर । 

मों ने तीखे बाणों की वो वर्षा बरसाई। 

दत्यो की सेना सभी गिरी भूमि पे आई। 

सिह ने भी कर गर्जना लाखो दिए संहार । 

सीने देत्यो के दिये निज पजो से फाड। 

लाशों के थे लग रहे रण भूमि मे ढेर। 

चहू तरफा था फिर रहा जगदम्बा का शेर। 

धूम्रलोचन ओर सेना के मरने का सुन हाल ।

देत्य राज की क्रोध से हो गई ओंखे लाल । 

चण्ड मुण्ड तब दैत्यों से बोला यूं ललकार। 

सेना लेकर साथ तुम जाओ हो होशियार। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

मारो जाकर सिंह को देवी लाओ साथ। 

जीती गर न आए तो करना उसका घात। 

देखूगों उस अम्बे को कितनी बलवाली। | 

जिसने मेरी सेना यह मार सभी डाली। 

आज्ञा पाकर शुम्भ की चले देत्य बलवीर। 

'चमन" इन्हे ले जा रही मरने को तकदीर | 


सतवां अध्याय 

चण्ड मूड चतुरगणी सेना को ले साथ। 

अस्त्र शरत्र ले देवी से चले करने दो हाथ। 

गये हिमालय पर जभी दर्शन सब ने पाए। 

सिंह चढ़ी मों अम्बिका खडी वहो मुस्कराए। 

लिये तीर तलवार दैत्य माता पे धाए | 

दुष्टो ने शस्त्र देवी पे कई बरसाए।


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

क्रोध से अम्बा की ओंखो से भरी जो लाली। 

निकली दुर्गा के मुख से तब ही महाकाली । 

खाल लपेटी चीते की गल मुडन माला। 

लिए हाथमे खप्पर ओर इक खडग विशाला । 

लपलप करती लाल जुवा मुंह से थी निकाली । | 

अति भयानक रूप से फिरती थी महाकाली । 

अट्टहास कर गजी तब देत्यो मं धाई। 

मार धाड करकं कीनी असुरो की सफाई | 

पकड पकड़ बलवान देत्य सब मुंह मे डाले। 

पोवों नीचे पीस दिए लाखों मतवाले। 

रुण्डो की माला मे काली शीश परोये। 

कड्यो ने तो प्राण ही उर के मारे खोये। 

चण्ड मुण्ड यह नाश देख आगे बढ़ आये। 

महाकाली ने तब अपने कड रग दिखाये। 

खड्ग से ही कई असुरो के टुकड़े कर दीने | 

खप्पर भर भर कर लहू लगी देत्यो का पीने। 

दोहा ] चण्ड मुण्ड का खडग से लीना शीश उतार। 

आ गई पास भवानी के मार एक किलकार। 

कहा काली ने दुर्गा से किये देत्य संहार | 

शुम्भ निशुम्भ को अपने ही हाथों देना मार । 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

तब अम्बे कहने लगी सुन काली मम बात। 

आज से चामुण्डा तेरा नाम हुआ विख्यात। 

चण्ड मुण्ड को मार कर आईं हो तुम आप। 

आज से घर घर होवेगा नाम तेरे का जाप। 

वि जो श्रद्धा विश्वास से सप्तम पढ़े अध्याय। 

महाकाली की कृपा से सकट सब मिट जाय। 

नव दुर्गा का पाठ यह “चमन करे कल्याण । 

पठने वाला पाएगा मुह मागा वरदान। 


आठवां अध्याय 

जब कर दिया चण्ड मुण्ड का नाश। 

सुनकर सेना का मरण हुआ निशुम्भ उदास। 

तभी क्रोध करके बढा आप आगे। 

इक्ट्ठे किए दैत्य जो रण से भागे।

चमन की  दुर्गा स्तुति 

कूलो की कुलं असुरो की ली बुलाई । 

दिया हुक्म अपना उन्हें तब सुनाई । । 

चलो युद्ध भूमि मे सेना सजा के। 

फिरो देवियो का निशा तुम मिटा के। 

अधायुध ओर शुम्भ थे देत्य योद्धा। 

भरा उनकं दिल मे भयंकर क्रोधा। 

असुर रक्तबीच को ले साथ धाए। 

चले काल के मुंह में सेना सजाए। 

मुनि बोले राजा वह शुम्भ अभिमानी । 

चला आप भी हाथ मे धनुष तानी। 

जो देवी ने देखा नई सेना आई | 

धनुष की तभी डोरी मँ ने चढ्ाई। 

वह टकार सुन गजा आकाश सारा। 

महाकाली ने साथ किलकार मारा। 

किया सिह ने भी शब्द फिर भयकर। 

आए देवता ब्रह्मा विष्णु व शकर। 

हर इक अश से रुप देवी ने धारा। 

वह निज नाम से नाम उनका पुकारा। 

बनी ब्रह्मा के अंश देवी ब्रह्माणी । 

चढ़ी हंस माला कमण्डल निशानी । 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

 चढ़ी बेल त्रिशूल हाथों मे लाई। 

शिवा गणक््ति शकर की जग मे कहलाई | 

वह अम्बा बनी स्वामी कार्तिक की अशी । 

चढ़ी गरुड आई जो थी विष्णु वशी । | 

वाराह अश से रुप वाराही आई । 

वह नरसिह ने नरसिही कहलाई | 

एेरावत चढ़ी इन्द्र की शक्ति आई | 

महादेव जी तब यह आज्ञा सुनाई ।

सभी मिल के दैत्यो का सहार कर दो। 

सभी अपने अशो का विस्तार करदो 

इतना कहते ही हुआ भारी शब्द अपार। 

प्रगटी देवी चण्डिका रुप भयानक धार। 

घोर शब्द से गर्ज कर कहा शकर से जाओ। 

बनो दूत, सन्देश यह दैत्यों को पहुचाओ। 

जीवत रहना चाहते हे तो जा बसे पाताल । 

उन्द्र को त्रिलोक कादे वह राज्य संभाल। 

नहीं तो आये युद्ध मे तज जीवन की आस। 

इनके रक्त से बुञ्ेगी महाकाली की प्यास। 

शिव को दूत बनाने से शिवदूती हुआ नाम। 

इसी चण्डी महामाया ने किया घोर संग्राम। 

चमन की | श्री दुर्गा स्तुति 


देत्यो ने शिव शम्भुं की मानी एक न बात। 

चले युद्ध करने सभी लेकर सेना साथ। 

आसुरी सेना ने तभी ली सब शवितिर्यो घेर । 

 चले तीर तलवार तब हुई युद्ध की छेड। 

देत्यो पर सब देविर्यो करने लगी प्रहार। | 

छिन्न भर मे होने लगा असुर सेना संहार । 

दशो दिशाओं म मचा भयानक हा हा कार। 

नव दुर्गा का छा रहा था वर्ह तेज अपार । | 

सुन काली की गर्जना हुए व्याकुल वीर । 

चण्डी ने त्रिशूल से दिए कलेजे चीर । 

शिवदूती ने कर लिए भक्षण कई शरीर । 

अम्बा की तलवार ने कीने देत्य अधीर। 

यह सग्राम देख गया दैत्य खीज। 

तभी युद्ध॒करने बढ़ा रक्तवीज। 

गदा जाते ही मारी बलशाली ने। 

चलाए करई बाण तब काली ने। 

लगे तीर सीने से वापस फिरे। 

रक्तबीज के रक्त कतरे गिरे। 

रुधिर दैत्य का जब जमीं पर बहा। 

हए प्रगट फिर दैत्य भी लाखहा। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

फिर उनके रक्त कतरे जितने गिरे। 

उन्हीं से कई दत्य पेदा इहए। 

यह बढ़ती हुई सेना देखी जभी। 

तो घवरा गये देवता भी सभी। 

विकल हो गई जब सभी शक्तियों । 

तो चण्डी ने महा कालिका से कहा । 

करो अपनी जीभा का विस्तार तुम। 

फेलाओ यह मुंह अपना इक बार तुम। | 

मेरे शस्त्रो से लहु जो गिरे -नण्नन 

वह धरती के बदले जुवां पर पडे। 

लहू दैत्यो का सब पिए जाओ तुम। 

ये लाशे भी भक्षण किये जाओ तुम। 

न इसका जो गिरने लह्‌ पाएगा। 

तो मारा असुर निश्चय ही जाएगा। 

दोहा] इतना सुन महाकाली ने किया भयानक वेश। 

गर्ज से घबराकर हुआ व्याकुल दैत्य नरेश। 

रक्तबीज ने तब किया चण्डी पर प्रहार। 

रोक लिया त्रिशूल से जगदम्बे ने वार। 

तभी क्रोध मे चण्डिका आगे बढ़ कर आई । 

अपनी खडग से देत्य की गर्दन काट गिराई। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


शीश कटा तो लहू गिरा चामुण्डा गई पी। 

 रक्तबीज कं रक्त से सके न निश्चर जी। । 

महाकाली मह खोल कं धाई, दत्य के रुधिर से प्यास वुद्याई। 

धरती पे लहू गिरने न पाया, खप्पर भर पी गई महामाया। 

भयोनाश तब रक्तबीज (५ नाची तब प्रसन्न हो कालका। 

असुर सेना सब दीन संहारी, युद्ध म भयो कुलाहल भारी। 

देवता गण तब अति हषयि, धरयो शीश शक्ति पद आये। 

कर जोड़ सब व्रिनय सुना, महामाया की स्तुति गाये । । 

चण्डिका तब दीनो वरदाना, सब देवन का कियो कल्याणा। 

खुशी से नृत्य किया शक्ति ने, वर यह "चमन" दिया शक्ति ने। 

| जो यह पाठ पढ़ या सुनाये, मनवांछित फल मुञ्च से पाये। 

उसके शत्रु नाश करूगी, पूरी उसकी आस करूमी। 

मा सम पुत्र को म पालूंगी, सभी भण्डारे भर डलूगी। 

दोहा | तीन काल है सत्य यह शक्ति का वरदान। 

नव दुर्गा के पाठ से हे सब का कल्याण । 

भक्ति शवित्ति मुक्ति का हे यही भण्डार। 

इसी के आसरे ए चमन“ हो भवसागर पार। 

नवरात्र मे जो पढ़े देवी के मन्दिर जाए। 

कहे मारकडे ऋषि मन वांछित फल पाए। 

वरदाती वरदायनी सब की आस पुजाए। 

प्रम सहित महामाया की जो भी स्तुति गाए। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


सिंह सवारी मेय्या की मन मन्दिर जब आए। 

| किसी भी सकट मे पड़ा भक्त नहीं घबराए। ¦ 

किसी जगह भी शुद्ध हो पढ़े या पाठ सुनाए। | 

"चमन" भवानी की कृपा उस पर ही हो जाए। 

नव दुर्गा के पाठ का आठवा यह अध्याय।। 

निश दिन पढ़ जो प्रेम से शत्रु नाश हो जाय। 


नवा अध्याय 9 

राजा बोला एे ऋषि महिमा सुनी अपार। 

रक्तबीज को युद्ध मे चण्डी दिया संहार। 

कहो ऋषिवर अब मुञ्धे शुम्भ निशुम्भ का हाल । 

जगदम्बे के हाथो से आया केसे काल। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


ऋषिराज कहने लगे राजन सुन मन लाय। 

दुर्गा पाठ का कहता हू अब मे नवम्‌ अध्याय । 

रक्तबीज को जब शक्ति ने रण मे मारा। 

चला युद्ध करने निशुम्भ ले कटक अपारा। 

चारों ओर से देत्यों ने शक्ति को घेरा। 

तभी चढ़ा महाकाली को भी क्रोध घनेरा | 

महा पराक्रमी शुम्भ लिये सेना को आया। | 

गदा उठा कर महा चण्डी को मारन धाया। | 

देवी ओर देत्यो के तीर लगे फिर चलने। 

बडे बडे बलवान लगे मिटटी मं मिलने। 

रण मे लगी चमकाने वो तीखी तलवारे। 

चारो तरफ लगी होने भयंकर ललकारे । 

दत्य लगा रण भूमि मे माया दिखलाने | 

एक से लगा अनेक वह अपने रुप बनाने। 

चण्डी काली अम्बा ने त्रिशूल चलाए 

क्षण भर मे वह योद्धा सारे मार गिराए। 

शुम्भ ने अपनी गदा घुमा देवी पर डाली। 

काली ने तीखी त्रिशूल से काट वह डाली | 

सिह चढी अम्बा ने कर प्रलय दिखलाई | 

चण्डी के खण्डने हा हा कार मचाई 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


भर भर खप्पर देत्यो का लह पी गई काली। 

पृथ्वी ओर आकाश मं छाई खून की लाली । 

अष्टभुजी ने शुम्भ के सीने मारा भाला। 

देत्य को मूर्छित करके उसे पुथ्वी पर डाला। 

शुम्भ गिरा तो चला निशुम्भ भरा मन क्रोधा। 

अटठहासं कर गरजा वह बलशाली योद्धा । 

अष्टभुजी ने देत्य की मारा छाती तीर। 

हआ प्रगट फिर दूसरा छाती से बलबीर । 

बढ़ा वह दुर्गा की तरफ हाथ लिये हथियार । 

खडग लिए चण्डी बढ़ी किया देत्य सहार । 

शिवदूती ने खा लिए सेना के सब वीर |  

कोमारी छोडे तभी धनुष से लाखो तीर । 

ब्रह्माणी ने मन्त्र पढ फेका उन पर नीर। 

भस्म हई सेना सभी देवन बाधा धीर । 

सेना सहित निशुम्भ का हआ रण मे सहार। 

त्रिलोकी मे मच गया मो का जय जय कार। 

चमन" नवम्‌ अध्याय की कथा करी सुखसार । 

पाठ मात्र से ही मिटे भीष्म कष्ट अपार। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


दसवाँ  अथ्याय 


| दोहा] ऋषिराज कहने लगे मारा गया निशुम्भ। 

क्रोध भरा अभिमान से बोला भाई शुम्भ। 

अरी चतुर दुर्गा तुञ्े लाज जरा न आषए। 

करती हे अभिमान त्‌ बल ओरो का पाए। 

जगदाती बोली तभी दुष्ट तेरा अभिमान। | 

मेरी शक्ति को भला सकं कां पहचान । 


मेरा दही त्रिलोक मं हे सारा विस्तार । नण 

मेने ही उपजाया हे यह सारा संसार । 

चण्डी, काली, एन्द्री, सब ही मेरा रुप। 

एकह मै ही अम्बिका मेरे सभी सवरूप। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

मे ही अपने रुपो मे इक जान हू। 

अकंली महा शक्ति बलवान हू 

चढ़ी सिह पर दाती ललकारती। 

भयानक अति रुप भी धारती। 

बढ़ा शुम्भ अगे गर्जता हआ। 

गदा को घुमाता तर्जता हुआ। 

तमाशा लगे देखने देवता। 

अकेला असुर राज था लड़ रहा।, 

अकली थी दुर्गा इधर लड़ रही। 

वह हर वार पर आगे थी बढ रहीं। 

असुर ने चलाए हजारों ही तीर। 

जरा भी हई नवह मेय्या अधीर। 

तभी शुम्भ ने हाथ मुगदर उठाया ।

असुर माया कर दुर्गां पर वह चलाया। 

तो चक्र से काटा भवानी ने वो। 

गिरा धरती पर हो के वह टुकड़ दो। 

उड़ा शुम्भ आकाश मे आ गया। 

वह ऊपर से प्रहार करने लगा। 

तभी की भवानी ने ऊपर निगाह। 

तो मस्तक का नेत्र वहीं खुल गया। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


हई ज्वाला उत्पन्न बनी चण्डी वो। 

उडी वायुं मे देख पाखण्डी को। 

फिर आकाश में युद्ध भयंकर ह॒आ। | 

 वहा चण्डी से शुम्भ लडता रहा। 

दोहा मारा रण चण्डी ने तब थग्पड एक महान ।  

हुआ मूर्छित धरती पे गिरा शुम्भ बलवान | 

जल्दी उठकर हो खडा किया घोर संग्राम । 

देत्य के उस पराक्रम से कापि देव तमाम। | 

बढ़ा क्रोध मं अपना मुंह खोल कर। 

गर्जं कर भयानक शब्द बोल कर। 

लगा कहने कच्चा चवा जाऊगा। 

निशा आज तेरा मिटा जाऊगा। 

क्या सन्मुख मेरे तेरी ओकात हे | 

तरस करता हू नारी की जात हे। 

मगर तूने सेना मिटाई मेरी। | 

अग्न क्रोध तूने बढ़ाई मेरी। 

मेरे हाथों से बचने न पाओगी। 

मेरे ्पोौवों के नीचे पिस जाओगी। 

यह कहता हआ दैत्य आगे बढ़ा । 

भवानी को यह देख गुस्सा चढा। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

 

चलाया वो त्रिशूल ललकार कर। 

 गिरा कट क सिर दैत्य का धरती पर। 

किया दुष्ट असुरों का मो ने सहार। | 

सभी देवताओं ने किया जय जय कार। 

खुशी से वे गन्धर्व गाने लगे। 

नृत्य करके मों को रिद्याने लगे। 

"चमन" चरणो मे सिर मुकाते रहे। 

क्वे वरदान भेय्या से पाते रहें। 

यही पाठ हे दसवें अध्याय का 

जो प्रीति से पढ़ श्रद्धा से गाएगा। 

वह जगदम्बे की भक्ति पा जाएगा। 

शरण मे जो मेय्या की आ जाएगा। 

दोहा | आध भवानी की कृपा, मनो कामना पाए। 

"चमन" जो दुर्गा पाठ को पड़ सुने ओर गाए। 

कलिकाल विकराल मे जो चाहो कल्याण। 

आद्य शक्ति जगजननी का करो प्रेम से ध्यान। 

श्री दुर्गा स्तुति का करो पाठ "चमन दिन रेन। ५ 

कृपा से आद भवानी की मिलेगा सच्चा चेन । 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


गयरवा  अध्याय 11 

ऋषिराज कहने लगे सुनो ए पृथ्वी नरेश। 

महा असुर सहार से मिट गए सभी क्लेश । | 

इन्द्र आदि सभी देवता टली मुसीबत जान। 

हाथ जोड़कर अम्बे का करने लगे गुणगान । 

त्‌ रखवाली मों शरणागत की करे। 

त्‌ भक्तो कं संकट भवानी हरे। 

त्‌ विश्वेश्वरी बन के हे पालती। 

शिवा बन कं दुःख सिर से हे टालती। 

त्‌ काली बचाए महाकाल से। 

त्‌ चण्डी करे रक्षा जंजाल से। 

तू ब्रह्माणी बन रोग देवे मिटा। 

त्‌ तेजोमयी तेज देती बढ़ा। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

त्‌ ममो बनके करती हमे प्यार हे। 

तु जगदम्बे बन भरती भण्डार हे। | 

प्रि कृपा से तेरी मिलते आराम हे। | 

हे माता तुम्हं लाखों प्रणाम हे। 

त्‌ त्रिनेत्र वाली तू नारायणी। 

त्‌ अम्बे महाकाली जगतारणी। 

गुणों से हे पूर्णं मिटाती है दुःख। 

तू दासों को अपने पहुचाती हे सुख। 

चढ़ी हस वीणा बजाती हे तू 

तभी तो ब्रह्माणी कहलाती हे त्‌। 

वाराही का रुप तुमने बनाया। 

बनी वैष्णवी ओर सुदर्शन चलाया। | 

तू नरसिंह बन दैत्य संहारती। 

तू ही वेदवाणी तू ही समृति। 

कई रुप तेरे करई नाम ह। 

हे माता तुम्हं लाखो प्रणाम हे। 

तू ही लक्ष्मी श्रद्धा लज्जा कहावे। 

त्‌ काली बनी रुप चण्डी बनावे। 

तू मेघा सरस्वती तू शक्ति निद्रा। 

तू सर्वेश्वरी दुर्गा तू मात इच््र। 

तू ही नेना देवी तू ही मात ज्वाला। 

तू ही चिन्तपूणीं तू ही देवी बाला। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

चमक दामिनी मे हे शक्ति तुम्हारी। 

तू ही पर्वतो वाली माता महतारी। | 

तू ही अष्टभुजी माता दुर्गा भवानी। 

तेरी माया मेय्या किसी ने न जानी । 

तेरे नाम नव दुर्गा सुखधाम हे।| 

हे माता तुम्हे लाखों प्रणाम हे। 

तुम्हारा ही यश वेदों ने गाया हे। 

तुञ्चे भक्तो ने भक्ति से पाया हे। 

तेरा नाम लेने से टलती बलाए। 

तेरे नाम दासों के संकट मिटाए। 

तू महामाया हे पापों को हरने वाली ।

तू उद्धार पतितो का है करने वाली। 

ठौहा } स्तुति देवो की सुनी माता हुई कृपाल । 

हो प्रसन्न कहने लगी दाती दीन दयाल । 

सदा दासों का करती कल्याण हू। 

भे खुश हो के देती यह वरदान हू 

जभी पेदा होंगे असुर पृथ्वी पर। 

तभी उनको मारुगी मे आन कर। 

मे दुष्टों के लह का लगाऊगी भोग। 

 तभी रक्तदन्ता करेगे यह लोग। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

बिना गर्भ अवतार धारुगी मे! 

तो शत आक्षी बन निहारुगी मे। 

विना वर्षा के अन्न उपजाऊगी। 

अपार अपनी शक्ति मे दिखलाऊगी । 

हिमालय गुफा मे मेरा वास होगा। 

यह ससार सारा मेरा दास होगा। 

मे कलियुग मं लाखों फिरु रुप धारी |

मेरी योगनि्यो वबनेगीं विमारी। 

जो दुष्टो के रक्तो को पिया करेगी । 

वह कर्मो का भुगतान किया करेगी । 

"चमन" जो सच्चे प्रेम से शरण हमारी आए। 

उसकं सारे कष्ट मे दूगी आप मिटाए 

प्रम से दुर्गा पाठ को करेगा जो प्राणी। 

उसकी रक्षा सदा ही करेगी महारानी। 

बढ़ेगा चोदह भवन मे उस प्राणी का मान। 

चमन" जो दुर्गां पाठ की शक्ति जाय जान । 

एकादश अध्याय मं रततुति देवन कीन। 

अष्टभुजी मो दुर्गा ने सब विपता हर लीन। 

भाव सहित इसको पढ़ो जो चाहे कल्याण। 

मुंह मागा देती "चमन" हे दाती वरदान। | 


दुर्गा बारहवां अध्याय 

 दादश अध्यायमं हेमो का आशीर्वाद 

सुनो राजा तुम मन लगा देवी देव संवाद । 

धि महालक्ष्मी बोली तभी करे जो मेरा ध्यान। 

निशदिन मेरे नामों का जो करता हे गान। 

बाधाए उसकी सभी करती हू मे दूर। शल 

उसके ग्रह सुख सम्पति भरती हू भरपूर। 

अष्टमी, नवमी चतुदर्श, करकं एकाग्रचित। 

मन क्रम वाणी से करे पाठ जो मेरा नित। 

उसके पाप व पापों से क हुए क्लेश। 

दुःख दरिद्रता सभी मे करती दूर हमेश। 

प्रियजनों से होगा न उसका कभी वियोग। 

उसके हर इक काम मं दूगी मे सहयोग। | 

शत्रु, डाक्‌, राजा ओर शस्त्र से बच जाये । 

जल मं वह डबे नहीं न ही अग्नि जलाये। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

भक्ति पूर्वक पाठ जो पढ़े या सुने सुनाए। 

महामारी बिमारी का कष्ट न कोई आए। । 

जिस घर मं होता रहे मेरे पाठ का जाप। 

उस घर की रक्षा करु मेट सभी संताप। 

 ज्ञान चाहे अज्ञान से जपे जो मेरा नाम। 

हो प्रसन्न उस जीव के करु मे पूरे काम। 

नवरात्रो मे जो पढ़ पाठ मेरा मन लाए। 

विना यत्न कीने सभी मनवांछित फल पाए। 

पुत्र पौत्र धन धाम से करु उसे सम्पन्न। 

सरल भाषा का पाठ जो पदे लगा कर मन। 

बुरे स्वप्न ग्रह दशा से दूगी उसे वचा|

पड़ेगा दुर्गा पाठ जो श्रद्धा प्रेम बढ़ा। 

भूत प्रेत पिशाचनी उसके निकट न आए। 

अपने दृढ़ विश्वास से पाठ जो मेरा गाए। 

निर्जनवन सिह व्याघ से जान वचाऊ आन । 

राज्य आज्ञा से भी न होने दू नुकसान। 

भवर से भी बाहर करु लम्बी भुजा पसार। 

"चमन" जो दुर्गा पाठ पढ़ करेगा प्रेम पुकार । 

संसारी विपतियां देती हू मे टाल। 

जिसको दुर्गा पाठ का रहता सदा ख्याल। 

मे ही ऋद्धि सिद्धि हू महाकाली विक्राल। 

मे ही भगवती चण्डिका शक्ति शिवा विशाल । 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

भेरो हनुमत मुख्य गण हे मेरे बलवान। 

दुर्गा पाठी पे सदा करते कृपा महान। 

इतना कह कर देवी तो हो गई अर्न्तध्यान। 

सभी देवता प्रेम से करने लगे गुणगान। 

पूजन करे भवानी व मुह मागा फल पाए। 

"चमन" जो दुर्गा पाठ को नित श्रद्धा से गाए। 

वरदाती का हर समय खुला रहे भण्डार। 

इच्छित फल पाए "चमन" जो भी करे पुकार। | 

इक्कीस दिन इस पाठ को कर ले नियम बनाए। 

हो विश्वास अटल तो वाक्य सिद्ध हो जाए। 

पन्द्रह दिन इस पाठ मे लग जाए जो ध्यान । | 

आने वाली बात को आप ही जाए जान। 

नो दिन श्रद्धा से करे नव ध का पाठ। 

नवनिधि सुख सम्पति रहे त शाही ठाठ। 

सात दिनो के पाठ से बलबुद्धि बढ़ जाए। 

तीन दिनो का पाठ ही सारे पाप मिटाए। 

मगल के दिन माता के मन्दिर करे ध्यान | 

"चमन" जेसी मन भावना वैसा हो कृल्याण। ` 

शुद्धि ओर सच्चाई हो मन मे कपट न अए। 

तज कर सभी अभिमान न किसी का मन कल्पाए। 

सब का ही कल्याण जो मागेगा दिनि रेन। 

काल कर्म को परख कर करे कष्ट को सहन 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

रखे दर्शन के लिए निश दिन प्यासे नेन। 

भाग्यशाली इस पाठ से पाए सच्चा चेन। | 

दादश यह अध्याय हे मुक्ति का दातार। 

"चमन" जीव हो कर निडर उतरे भव से पार। 

ऋषिराज कहने लगे मन मे अति हर्षाए। 

तुम्हे महात्म देवी का मेने दिया सुनाए। 

आदि भवानी का बड़ा हे जग म प्रभाओ। 

तुम भी मिल कर वैश्य से देवी के गुण गाओ। ( 

शरण मे पड़ो तुम भी जगदम्बे की। 

करो श्रद्धा से भक्ति मों अम्बे की। 

यह मोह ममता सारी मिटा देवेगी। 

सभी आस तुम्हारी पुजा देवेगी। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

तुञ्े ज्ञान भक्ति से भर देवेगी। 

तेरे काम पूरे यह कर देवेगी। ^ 

सभी. आसरे _ छोड गुण गाडइयों | | 

तभवानी की ही शरण में आइयो। 

स्वर्ग मुक्ति भक्ति को पाओगे तुम। 

जो जगदम्बे को ही ध्याओगे तुम। 

दोहा चले राजा ओर वेश्य यह सुनकर सब उपदेश । 

अराधना करने लगे बन मे सहं कलेश। | 

मारकड बोले तभी सुरथ कियो तप घोर। 

राज तपस्या का मचा चह ओर से शोर। | 

नदी किनारे वेश्य ने डरा लिया लगा। | 

पूजने लगे मिट्टी की प्रतिमा शक्त्ति बना। 

कुछ दिन खा फल फूल को किया तभी निराहार । 

पूजा करते ही तीनों वर्ष गुजार। 

हवन कुड मं लहू को डाला काट शरीर।॥ 

रह शक्ति के ध्यान मे हो कर अति गभीर। 

इई चण्डी प्रसन्न दर्शन दिखाया | 

महा दुर्गा ने वचन मुह से सुनाया। 

भै प्रसन्न हू मागो वरदान कोई। 

जो मांगोगे पाओगे तुम मुञ्च से सोई। 

कहा राजा ने मुद को तो राज चाहिए। 

मुञ्चे अपना वही तर्त ताज चादहिए। 


चमन की ____ आ दुर्गा स्तुति 

मुञ्चे जीतने . कोई शत्रु न पाए। 

कोड वैरी मां मेरे सन्मुख न आए। 

कहा वेश्य ने मुञ्च को तो ज्ञान चाहिए। 

मुदे इस इ कल्याण चाहिए। 

जगद तभी राजन भोगो राज।

श कुछ दिन ठहर कं पहनोगे अपना ही तुम ताज। 

सूर्य से लेकर जन्म स्वर्णिक होगा तब नाम। 

राज करोगे ४ कल्प भर, ए राजन सुखधाम। 

वैश्य तुम्हे मं देती हू ज्ञान का वह भण्डार। 

जिसके पाने से ही तुम होगे भव से पार। 

 इतना कहकर भगवती हो गई अरन्तध्यान। 

दोनो भक्तो का किया दाती ने कल्याण। 

नव दुर्गा के पाठ का तेरहवां यह अध्याय। 

जगदम्बे की कृपा से भाषा लिखा बनाय। 

माता की अद्भुत कथा “चमन” जो पढ़ पढ़ाय। 

सिंह वाहिनी दुर्गा से मन वाछठिति फल पाए। 

ब्रह्मा विष्णुशिव सभी १५.७५ काध्यान। नः 

शक्ति से शक्ति काये मांगे सब वरदान ।

अम्बे आध भवानी का यश गावे संसार । 

अष्टभुजी मो अम्बिके भरती सदा भण्डार । 

दुर्गा सतुति पाठ से पूजे सब की आस। 

सप्तशती का टीका जो पढ़े मान विश्वास । 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

अग सग दाती फिरे रक्षा करे हमेश। 

दुर्गा स्तुति पढ़ने से मिटते “चमन क्लेश। | 

जय चण्डी अम्बे महारानी । जय वरदाती जय कल्याणी। 

सिंह वाहिनी खडग धारनी । जय दुर्गा जय दत्य सहारनी। 

दक्ष सुता जय उमा भवानी। शकर प्रियदाती सुखदानी। 

चिता सकल निवारण वाली।मुड माल को धारने वाली। 

मधु कैटभ संहारे तूनं। चण्ड मुण्ड भी मारे तूने। 

महिषासुर का शीश उतारा रक्तबीज का पिया लहू सारा। 

शुम्भ निशुम्भ का नाम मिटाया। देवराज को तख्त बिठाया। 

भीर जमी देवों पर आई। तू ही चण्डी हुई सहाई। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

खड़े वाली खण्पर वाली। तेरे दर का "चमन" सवाती। 

शारदा बन उपकार हो करती। लक्ष्मी बन भण्डार हो भरती। | 

तूहीवेष्णो तू ही बालिका, तू ही ज्वाला देवी कालिका। 

अमर सदा तेरी अमर कहानी। जय मों चण्डी आदि भवानी। 

कलह क्लेश से मुञ्चे बचाना। सगरी चिन्ता दूर॒हटाना। 

कोई दुःख न मुञ्चे सताये, कोई गम न मुञ्चे दवाये। 

गधर्वो देवो कौ माया, भूत प्रेत दैत्यों की छटाया। 

ञूठे सच्ये सपनों का उर। जाद्‌ टेन यन्त्र मन््र। 

कर्जा इगड़ा कोई बिमारी। सकट आफत विपदा भारी। 

इनसे भेय्या मुञे बचाइयो। चण्डी अपनी दया दिखाइयो। 

तेरा भरोसा तेरा सहारा। तेरे विन न कोई रखवारा। 

तेरा हर दम ध्यान धरु मे। चरणो मे प्रणाम करें भ 

मेरे ओगुण ध्यान न धरियो | चंडिका मेरी रक्षा करियो। 

इज्जत मान बनाये रखना। शत्रुओं से भी वचाय रखना। 

मेरा तेज बढ़ती रहना। अपनी दया दिखाती रहना। 

मेरे हाथ म॑ बरकत भर दो। पूर्ण मेरी आशा कर दो। 

अपना नाम जपाना मुञ्जको। दाती सुखी बनाना मुञ्जको। 

मेरे सिर पर हाथ धरो मों। "चमन" का भी कल्याण करो मौ 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

महा कालीं स्तेन 

जय शवति जय जय महाकाली । 

जय शक्ति जय जय महाकाली | 

आदि गणेश मनाऊ दाती। चरणण शीश नवाऊ दाती। 

तेरे ही गुण गाऊ दाती। तू है कष्ट मिटावन वाली। 

जय शक्ति जय जय महाकाली जय शक्ति .... 

खण्डा दाये हाथ विराजे। बाये हाथ मे खप्पर साजे। 

दारे तेरे नोबत बाजे। मुण्डन माल गले मे डाली। 

जय शक्ति जय जय महाकाली । जय शक्ति जय जय महाकाली। 

महाकाल से रक्षा करती। धन से सदा भण्डारे भरती। 

दास के दुःखो को हरती। साथ फिरे करती रखवाली। 

जय श्व्ति जय जय महाकाली। जय शक्ति ..... 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

चण्ड मुण्ड का नाश किया था। देवो को वरदान दिया था। 

रक्तबीज का रक्त पिया था। रक्तदन्ता कहलाने वाती। । 

जय शक्ति जय जय महाकाती। जय शक्ति 

भद्रकाली तू आद कवारी। मात वैष्णां सिह सवारी। 

चण्डी अम्बा जगं महतारी। चिन्तपूर्णीं ज्वाला बलशाली। 

जय शक्ति जय जय महाकाली। जय शक्ति ...... 

तीन लोक विस्तार तुम्हारा। दशो दिशाओं तेरा पसारा। 

जग सारा बोले जयकारा। जय जय उच्चय मन्दिरां वाली। 

जय शक्ति जय जय महाकाली। जय शक्ति ....... 

सभी देवता तुञ्चे ध्यावे। तेरा ही स्तोत्र गव| 

हर मुश्किल मं तुहं बुलावे। तू है विजय दिलावन वाली। 

जय शक्ति जय जय महाकाली। जय शक्ति ....... 

मेरे मन की जानो माता। मेरा दुःख पहचान माता। ` 

मेरी विनती मानो माता। दर सेन ही फरो खाती। 

जय शक्ति जय जय महाकाती। जय शक्ति ........ 

दासो का तुम ख्याल ही रखना। 

'चमन' को भी खुशहाल ही रखना । 

मय्या माला माल दही रखना।

सब कौ आस पुजाने वाली। 

जय शक्ति जय जय महाकाली। जय शक्ति ....; 

मो जगदम्बे तुम हो जगत 

त जननी मेय्य्‌। 

ये मेरे भी कष्ट निवारो तो जानू त 

दुनियां की बिगड़ी बनाई हे तू ने। | 

न्ये मेरी भी बिगड़ी संवारो तो जान्‌। 

नाश किये दैत्य देवों के कारण। 

मेरे भी शत्रु यह टारों तो जानू। 

पार किये भव-सिन्धु से लाखो। 

मुद को भी पार उतारो तो जानू। | 

न बुद्धि न बल नाही भक्ति हे मुञ्च में । 

यन्त्र यह मन्त्र व तन्त्र न आए 7. 

पूत कपूत “चमन है बहु तेरे। 

माता कुमाता कभी न कहलाए। 

मेरी ठीठाई पे ध्यान न दीजो। 

किस को कहूं अपना दखड़ा सुनाके। 

चमन की ॥ि श्री दुर्गा स्तुति 


अपने ही नाम की लाज राखो। 

वरदाती न खाली फिरु दर पे आकं। 

पुत्र की परम स्नेही है माता। 

वेदो पुराणो ने समञ्ाया गा कं। 

आया शरणा मे तुम्हारी भवानी।। 

वेठा तेरे दर पे धूनी रमा के। 

ही कहो, छोड माता के दर को। 

से कहू अपनी विपतता | 

पूत॒ कपूत “चमन बहु तेरे। 

माता कमाता कभी न कहलाए। 

गोदी बिठाओ या चरणी लगाओ | 

मुञ्चे शवित्त भकत्ति का वरदान चाहिए । 

पतित हू तो क्या फिर भी बालकं हू तेरा। 

कपूत का भी माता को ध्यान चाहिषए। 

खाली फिरा न भण्डारे से कोई। 

| तो करना हमारा ही कल्याण चाहिए। 

जगत रुठे तो मुञ्ज को चिन्ता नहीं हे। 

तुञ्चे मय्या होना मेहरबान चादिए। 

तुम्हारे व भरोसे पे ही जगत जननी। 

श्लोको का यह अर्थं नादान गाये। तर 

पूत॒ कपूत चमन" ह बहु ॒तेरे। 

माता कमाता कभी न कहलाए। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

मां जगदम्न्े जीं की आरती 

आरती जग जननी मे तेरी गाऊ। वि | 

तुम बिन कौन सुने वरदाती। 

किसको जाकर विनय सुनाऊ। आरती... 

असुरों ने देवों को सताया। | 

तुमने रुप धरा महा माया। 

उसी रुप के दर्शन चार्हू। आरती... | 

रक्तबीज मधु केटभ मारे। ष्ठे 

अपने भक्तो के काज संवारे। ¬ 

भे भी तेरा दास कहाऊ। आरती....... 

आरती तेरी करु वरदाती। 

हृदय का दीपक नैनो की बाती। 

निसदिन प्रेम की जोत जगाऊ। आरती... 

ध्यानू भक्त तुमरा यश गाया। 

जिस ध्याया माता फल पाया। 

मे भी दर तेरे शीश ब्मुकाऊ। आरती... 

आरती तेरी जो कोई गावें। 

"चमन सभी सुख सम्पति पावे। 

य्या चरण कमल रज चार्हू। आरती... 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


महा लक्ष्मी स्त्रोत 

कीर्तन : जय नारायण प्राण आधार। 

जय महा लक्ष्मी भरे भण्डार। 

श्री हरि प्रभु की प्रेरणा शारदा जीभा आई | 

जग कं तारन करने सुन्दर भाव हे लाई। 

गुरुदेव प्रताप से लेखनी मे किया वास । षन 

लक्ष्मी स्तोत्र "चमन" लिखने लगा हे दास। 

प्रातः सध्या समय जो पढ़े मान विश्वास । 

उसके घर मे लक्ष्मी सदा ही करे निवास। 

जय जय महा लक्ष्मी पूर्ण कीजो काम। 

देवी तेरे चरणों मे लाख लाख प्रणाम। 

सभी लोको की जननी मातेश्वरी। 

कमल सम है नेत्र मां भुवनेश्वरी। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

श्री विष्णु के वक्षस्थल मे बिराजे। 

कमल दलसेनेत्रकमल करम साजे। 

कमल मुख कमल नाभि प्रिय नाम तेरा। 

सदा तेरे चरणो मे प्रणाम मेरा। 

 तू सिद्धि सुधा मेघा श्रद्धा कहावे । क | 

त्‌ स्वाहा त्रिलोकी पवित्र बनावे। 

प्रभा रात्रि सध्या हे सब रुप तेरे। 

विभूति सुखो की भण्डारे मं तेरे। | 

उपासना कर्म काण्ड ओर इन्द्र जाला। 

शिल्प तकं विद्यात ही कृपाला। 

तू ही सरस्वती हदय मे ज्ञान धरती। 

महा लक्ष्मी धन से भण्डार भरती। 

सभी पाते हे सुख गुण तेरे गा कर। 

करु वन्दना मे भी सिर को ञ्युका कर। 

दोहा] व्यापक हे ससार मे घट घट तेरा वास । 

श्री विष्णु भगवान के रहो सदा ही पास। 

तुमने ही त्रिलोक को जीवन दान दिया है। 

महा लक्ष्मी तुमने सब का कल्याण किया हे। 

गृह धन धान्य सम्बन्धी सारे पुत्र ओर नारी । 

तेरी दया से जतलाते ह रिश्तेदारी। 

चमन की ओरी दुर्गा स्तुति 

शत्रु पक्ष तेरी कृपा से मिट जाते हे । 

जीव सभी लोको के सुखो को पाते हें | 

कोड रोग शरीर को आकार नहीं दबाता। 

तेरा नाम दरिद्री को धनवान बनाता। 

। मात लक्ष्मी भरो सदा मेरे भण्डारे। 

घर मं भोग सामग्री हो सुख भोग सारे। 

पत्नी पति व पुत्र सभी खुशहाल बना दो। 

कर्मं गति से आने वाले कष्ट मिटा दो। । 

वस्त्र आभूषण किसी चीज की कमी रहे न । नम 

किसी प्रकार की चिन्ता मन मे लगी रहे न। 

शुद्धि शील सच्चाई सब गुण भर देती हो। 

"चमन कृपा तुम अपनी जिस पर कर देती हो। 

दया से तेरी बिगड़ काम सुधर जाते हे । 

कृपा से तेरी "चमन" भण्डारे भर जाते हे। 

देवी जिस पर तेरी दृष्टि पड जाती हे। 

निश्चय ही उसकी सम्पत्ति बढ़ जाती हे। 

हहा] मानयोग गुणी धन्य वही हे बुद्धिमान । 

जिसने यह स्तोत्र पढ़ किया तुम्हारा ध्यान । 

विष्णु प्रिया जग जननी मौ करं तुम्हारा ध्यान । 

चमन" का अब स्वीकारियो लाख लाख प्रणाम । 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

कमल नेन महा लक्ष्मी दास पे रहो प्रसन्न। 

तेरी दया से बन सके जीवन मेरा धन्य। | 

महा लक्ष्मी स्तोत्र को पटे जो करके नेम । 

श्रद्धा ओर विश्वास हो मन मे सच्चा प्रेम । 

 मान रहित होकर पढ़ स्तोत्र यह शतवार। । 

महा लक्ष्मी उसके “चमन' भर देगी भण्डार । 

महा लक्ष्मी की मूर्तिं चोकी पर सजाए। 

मोन धार कर पटे या स्तोत्र गाए। 

धूप सुगन्धित लेकर घी की जोत जलाए। 

गंगा जल कं साथ फिर तिलक व पुष्प चढ़ाए। 

शुद्ध भाव से सुन्दर मौली की तार पहनाये । णन 

भोग लगा कर मेवे का फिर स्तोत्र गाये। = 

रेन दिवस शतवार ही पाठ पढ़ निराहार। 

लोहे को सोना करे बरकत भरे अपार। 

पच्चीस पाठ पच्चीस दिन पटे बिना अन्न खाये। 

महा लक्ष्मी उसके सभी बिगड़ भाग बनाये। 

एक पाठ नित्य पदे उठ कर प्रातः काल। 

वर्कत हाथ मे आएगी जेब से हो माला माल । 

दान पुण्य करता रहे "चमन" जो वित अनुसार । 

उसके घर से लक्ष्मी कभी न आये बाहर । 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

भोजन दे किसी विप्र को सात मास सक्रान्त। 

दक्षिणा दे प्रसन्न कर रखे निज मन शात। 

चोगा चिड़ी कबूतर को डाले हर बुधवार। 

सिमरे नाम नारायण का श्रद्धा प्रेम को धार। 

 पाठ पश्चात गगा जल को छिडके कर ध्यान | । 

ॐ श्री श्री आये नमः जपे मन्त्र करे कल्याण । 

इसी मन्त्र की नित्य ही ग्यारह माला कर ले। 

| निन्दया स्तुति त्याग समय कुछ मोन धर ले। | 

मनो कामना महा लक्ष्मी करेगी पूरी। 

कोडईं आशा फिर ना उसकी रहे अधूरी। 

सूत जी ने ऋषियों को यह समञ्माया | 

यही ऋषि पराशर ने मित्रं को बतलाया ।

यही विष्णु पुराण में वेद व्यास जी गाया। 

नारायण ने मन्त्र यही भक्ति का सिखाया। 

[दोहा] महा लक्ष्मी स्तोत्र यह लिखवाया हरि आप। 

श्रद्धा प्रेम से "चमन" जो करेगा इसका जाप। 

उस गृहस्थ के घर सदा करे लक्ष्मी वास। 

पढ़े जो स्तोत्र यह निशदिन कर विश्वास। 

कर्मो के अनुसार ही माना सब फल पाए। 

फिर भी तकदीरें बदल हरि कृपा से जाए। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

स्वास मिले अनमोल हं हरि सुमिरन मे लगाओ। 

करो पाठ निश्चय “चमन' मुंह मागा फल पाओ। 

चिन्ता न कर कोई भी रखवाला भगवान । 

महा लक्ष्मी स्तोत्र पढ़ कर कछ हाथ से दान। 

मन्त्र : श्री महां लक्ष्मी आये नमः 

श्री संतोषी मां स्रोत 

(इस स्तोत्र का पाठ हर शुक्रवार को करे) 

जय गणेश जय पार्वती जय शकर अविनाशी । 

वीणा धारी सरस्वती जय अम्बे सुखराशि। 

जय मौ वेष्णो कालिका चण्डी आदि भवानी । 

जय गोरी संतोषी मौ कोमारी रानी। 


चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

सर्व सुखो की दाती मो ज्वाला जगत आधार। 

 चरण कमल मे आपके “चमन” का नमस्कार । 

करोड़ों तेरे नाम सुखधाम हे। 

सभी नामों को मय्या प्रणाम हे।| 

गृहस्थी के घर में त्रू सुखदायिनी । | 

उमा तू है ब्रह्माणी नारायणी। 

पतित को तू कर देती निर्दोष ्मो।| 

नमस्कार तुञ्जको एे सतोषी मो, सतोषी ्मो। 

जो श्रद्धा से भेय्या तेरा नाम ध्याए। 

जो संतोषी मो कह के तुञ्चको बुलाए। 

कभी भी कोई कष्ट उस पे न आए। 

कर्म फल भी उस पर न चक्कर चलाए। 

त्‌ तकदीर बिगड़ी बना देती हो। 

त्‌ संतोषी आशा पूजा देती हो। 

तेरा नाम लेते ही मोह काम सारे। 

ये अहकार ओर क्रोध भी लोभ सारे। 

जपे नाम तेरा तो मिट जाते हैँ। 

तेरे दासों के न निकट आते है। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 


जो भक्तो के मन मे डेरा लगा ले। 

तो सेवक “चमन तेरा हर सुख को पा ले। 

त्‌ सतोषी मों देषों को दूर करती। 

त्‌ निर्धन के भण्डारे भरपूर करती। 

त्‌ संतोषी दाती सिखाती सबर हे। | 

तुञ्चे मय्या हर मन की रहती खबर हे। 

जो तेरे ही गुण गाए पढ़ कर यह वाणी । 

रहे वह सुखी मय्या सतोषी रानी। 

। (दोहा) संतोषी मो अम्बिके सुखदानी वरदात। 

कामना पूरी करो मेरी नाम जपूदिनरात। 

तू छक्ति तू चण्डी महाकाली त्‌ 

तू देवी तू दुर्गा हे बलशाली तू। 

तू निर्माण कर्तां तू सहार कर्ता। 

तू सब में समाई तू पापो की हर्ता। 

तू सब को प्रिय सव पे उपकार करती। 

तू संतोषी मौ सव के भण्डार भरती। 

तू हर कार्य को सिद्ध हे करने वाली। 

महागोरी चामुण्डे दुःख हरने वाली। 

चमन की | श्री दुर्गा स्तुति 


तेरे चरणों मे सर स्जुकाता हू मेय्या। 

भै तेरी ही जय जय बुलाता हू मेय्या। 

तू पद्मा भी हे लक्ष्मी ईश्वरी हे। 

तू ही हसवाहिनी तू परमेश्वरी हे। 

तू गरुड आसनी शक्तिशाली कौमारी। 

तू दुःख शोक नाशिनी हे संकट हारी। 

तुम चचलता भय हटाती हो ्मौ।| 

तुम हर जीव को सुख पर्हचाती हो ्मौ। 

मों संतोषी तेरा प्रिय नाम हे। 

चमन का तुञ्े लाखों प्रणाम हे। 


दोहा) सतोषी माँ करो कृपा जग की पालनहार। 

सुखी रहे परिवार मेरा भरे रहे भण्डार । 

जिस पर तेरी हो कृपा रहे सदा खुशहाल । 

दुनिर्यो दुश्मन हो “चमन“ बांका न हो बाल। 

वरदाती त्‌ सरल स्वभाव संतोषी मँ नाम। 

चमन“ का तेरे चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम। 

भेय्या तेरा पाठ जो पढ़ेगा निश्चय धार । 

पूजे श्रद्धा से तुञ्चे नित्य ही शुक्रवार। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

उसके हृदय मे सदा करना आप निवास। 

एसे अपने दास की पूर्ण करना आस। | 

कमी कोड न रहे उसे मनवाछित फल पाए। 

| “चमन जो मौ संतोषी को शुक्रवार ध्याए। 

अपने नाम की लाज ए माता आप निभाओ। 

मेय्या अपने दास को सदा सुख पर्हुचाओ। 

चरण वन्दना करता हे “चमन” यह भारद्वाज । 

सुखदायिनी मौ सदा रखना सब की लाज । 

लोभ न हो मन में कभी कपट कभी न आए । 

तेरा ही हो आसरा तेरे ही गुण गाषए्। 

तब ही जानूंगा जन्म सफल हे मेरा आज 

"चमन तेरा सेवक वने छोड जगत की लाज । 

सबको सुख पर्हैचाओ मो जपे जो तेरा नाम। 

संतोषी मां “चमन का कोटि कोटि प्रणाम। 

शुक्रवार को नित्य पढे जो तेरी वाणी। 

पूरी त्‌ संतोषी मो कर उस की मन मानी । 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

तू ही दाती अम्बिके संतोषी सुख धाम। 

चमन" का तेरे चरणो मे कोटि कोटि प्रणाम। 

"चमन की दुर्गा स्तुति का घर घर हे सम्मान | 

लिखवाई मो आप ही “चमन को दे वरदान। 

इसकं पढ़ने सुनने से सबका हे कल्याण । 

जगदम्बे मों वेष्णो “चमन' रखेगी मान। | 

श्रद्धा भक्ति शक्ति का फल पायेगा दास। 

पढ़े जो दुर्गा स्तुति “चमन' सहित विश्वास । 

मन का स्वार्थ त्याग कर, मो की जोत जलाए। 

श्रद्धा ओर विश्वास से भेट मेय्या की गाए। 

जो मिल जाए भाग्य से करे उस पे सतोष। 

कष्टो से घबरा कर, “चमन' जाने दे न होश। 

कर्म गति संतोषी मो देगी बदल जरुर । 

भक्ति मे जो कभी भी होवे न मगरुर। 

लाज मान रखेगी मो संतोषी जगतार। 

 चह ही वरदाती “चमन” हे तेरी रखवार । 

"चमन भारद्वाज! 

एक दिन वट वृक्ष के नीचे थे शंकर ध्यान म। 

सती की आवाज आई मीठी उनके कान म। 

दुनियां के मालिक मेरे अविनाशी भण्डारी हो 

देवन के महादेव हो त्रिशूल डमरु-धारी हो। 

विनय सुनकर मेरी भगवान दया तो दिखलाईए। 

भगवती की नाम माला मुञ्च को भी बतलाईए । 

इतना सुनकर मुस्कुराकर तब बोले गिरिजा पति। 

अपने नामों की ही महिमा सुनना चाहती हो सती। 

तो सुनो यह नाम तेरे जो मनुष्य भो गायेगा। 

चमन की | श्री दुर्गा स्तुति 

दुनिर्यों मे भोगेगा सुख अन्त मुक्ति पायेगा। 

| नाम जो स्तोत्र तुम्हारा मन्त्र इक सौ आठ का। | 

जो पढ़गा फल वो पाये सो दुर्गा पाठ का। 

लो सुनाता हू तुम्हं कितने पवित्र नाम है | 

जिसके पढ़ने सुनने से होते पूर्ण काम है ।

उमा इन नामो को जो भी मेरे सन्मुख गायेगा। 

मे भरु भण्डारे उसके मागेगा जो पाएगा। 

सती, साध्वी, भवप्रीता, जय भव मोचनी, भवानी जै। 

दुर्गा, आयां जय त्रियलोचनी, शुलेश्वरी महारानी जे। | 

चन्द्रघण्टा, महातपा, विचित्रा मनपिनाक धारनी जे। 

सत्यानन्द, सवरुपनी, सती भक्तन कष्टनिवारणी ज। 

चेतना, बुद्धि, चित-रुपा, चिन्ता, अहकार निवारणी जे। 

सर्वमत्र माया, भवानी, भव्या, मानुष जन्म संवारणी जे। 

तू अनन्ता, भव्या, अभव्या, देव माता, शिव प्यारी हे। 

दक्ष यज्ञ विनाशनी, तू सुर सुन्दरी दक्ष कुमारी हे। 

तू काली, महाकाली, चण्डी, ज्वाला, नेना दाती हे। 

चामुण्डा, निशुम्भ विनाशनी, दुःख दानव की घाती हे। 

कन्या कौमारी, किशोरी, महिषासुर को मार दिया। 

चण्ड मुण्ड नाशिनी, जै बाला दुष्टों का सहार किया हे। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

शस्त्र वेदज्ञाता, जगत जननी खण्डा धारती हे। 

संकट हरनी मगल करनी, तू दासो को तारती है। | 

कल्याणी, विष्णु माया, तू जलोधरी, परमेश्वरी जे। 

भद्रकाली, प्रतिपालक, शक्ति जगदम्बे जगदेश्वरी जे। 

तू नारायणी “चमन' की रक्षक वैष्णवी ब्रह्माणी तू। | 

वायु निद्रा अष्टभुजी सिहवाहनी सब सुखदानी तू। 

एन्द्री, केशी, अग्नि, मुक्ति, शिवदूती कहलाती हो। 

रुद्रमुखी, प्रोड़ा महेश्वरी, ऋद्धि सिद्धि बन जाती हो। | 

 दुर्गा जगदम्बे महामाया कन्या आध कवारी तू। 

हि अन्नपूर्णा चिन्तपूर्णी, शीतला शेर सवारी तू। 

पाटला, पाटलावति कृष्माडा पिताम्बर धारनी जे। 

कात्यायनी, जे लक्ष्मी वाराहीं भाग्य सवारनी जे। 

सर्वव्यापनी जीव जन्म दाता तू पालनहारी है। 

कर्ता धर्ता हर्ता भेय्या तेरी महिमा न्यारी हे। 

तेरे नाम अनेक ह दाती कोन पार पा सकता हे। 

तेरी दया से "चमन" भवानी गुण तेरे गा सकता हे। 

जगत माता महारानी अम्बे एक सौ आठ ये नाम। 

"चमन पढ़े सुने जो श्रद्धा से पूरे हो सब काम्‌। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

श्रीं चमन दगी वृतिं के यन्वरं भाव 

। ऋषि मारकन्डे के मन्त्र निराले। | 

देवी भगवत मे ऋषि ने जो डाले। 

किया उसका टीका सरल भाषा हे। | 

"चमन" का तो सर्वस्य इसी आशा मे हे। | 

जो मातेश्वरी भगवती कष्ट हर ले। 

जो श्रद्धा से इस पुस्तक का पाठ कर ले। 

मनोकामना पादी जो मन में 4 | 

महा माया सब कार्य उस के सवारे। 

सभी मुश्किलें उस की आसान कर दे।| 

दया दृष्टि से उस को धनवान कर दे। | 

उसे हर जगह भमेय्या देवे सहारा |  

पढ़े दुर्गा स्तुति जो सेवक प्यारा। 

[सदा उसकी जीभा पे हो वास तेरा। 

जिसे हर समय ही हे विश्वास तेरा। 

'चमन' की यह ५ मन्जूर करना। | 

किसी को भी चरणों से न दूर करना। 

गृहस्थ आश्रम परिवार मं सुख भोगे हर आन। 

उठते वेठते जो “चमन' करे मों का गुणगान । 

सभी कामना पूर हो, रहे न कोई चाह। 

मन की मस्ती मे “चमन” फिरे वो बे परवाह । 


श्री नव दंग स्तोत्र 

| (पहली शेल पुत्री कहलावे) 

शेल पुत्री मो बेल असवार। 

करे देवता जय जय कार। 

शिव शकर की प्रिय भवानी। 

तेरी महिमा किसी न जानी। । 

पार्वली तू उमा कहलावे। 

जो तुजे सिमरे सो सुख पावे। 

ऋद्धि सिद्धि परवान करे तू। 

दया करे धनवान करे तू। 

सोमवार को शिव संग प्यारी। 

आरती तेरी जिसने उतारी। 

उसकी सगरी आस पुजा दो। 

सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो। 

घी का सुन्दर दीप जलाके। लषः 

गोला गिरी का भोग लगा के। `` 

श्रद्धा भाव से मन्त्र गाये। 

प्रेम सहित फिर शीश इ्जुकाये। 

जय गिरिराज किशोरी अम्बे। 

शिव मुख चन्द्र॒ चकोरी अम्बे। 

मनो कामना पूर्ण कर दो। 

"चमन" सदा सुख सम्पति भर दो। 

 दुर्गा चमन स्तुति 

दूसरी ब्रह्मचारिणी भन भवे 

। जे अम्बे ब्रह्मचारिणी माता। 

जे चतुराणन प्रिय सुख दाता। 

ब्रह्मा जी के मन भाती हो। 

ज्ञान सभी को सिखलाती हो। 

ब्रह्म मन्त्र हे जाप तुम्हारा। 

जिस को जपे सकल संसारा। 

६, गायत्री वेद की माता।| 

जा जन निश दिन तुम्हे ध्याता। 

कमी कोई रहने न पाए। -नेण्न जत 

कोडं भी दुःख सहने न पाए। 

उसकी विरति रहे दिकाने। 

जो तेरी महिमा को जाने। 

रुद्राक्ष की माला लेकर। 

जपे जो मन्त्र श्रद्धा देकर। 

आलस छोड करे गुणगाना। 

मा तुम उसको सुख पहुचाना। 

ब्रह्मचारिणी तेरो नाम। 

पर्णं करो सब मेरे काम। 

"चमन" तेरे चरणों का पुजारी। 

रखना लाज मेरी महतारी। 

श्री दुर्गा स्तुति 

तीसरी "चन्त्र घंटा शभ नामः 

जय मों चन्द्र घटा सुख धाम। 

पूर्ण कीजो मेरे काम। 

चन्द्र॒ समान त्‌ शीतल दाती। 

चन्द्र॒ तेज किरणों मे समाती। 

क्रोध को शान्त बनाने . वाली |

मीठे बोल सिखाने वाली। 

मन की मालक मन भाती हो। 

चन्द्र॒ घंटा तुम. वरदाती हो। 

सुन्दर भाव को लाने वाली। 

हर सकट मे बचाने वाली। 

हर बुधवार जो तुञ्े ध्याये। 

श्रद्धा सहित जो विनय सुनाये। 

मूर्तिं चन्द्र आकार बनाए। 

सन्मुख घी की जोत जलाए 

शीश युका कहे मन की बाता। 

पूर्ण आस करो जगतदाता।| 

कान्वी पुर स्थान तुम्हारा। 

करनाटिका मे मान तुम्हारा। 

नाम तेरा रदु महारानी। 

'चमनः की रक्षा करो भवानी। 

चमन की शष स्तृति 

चतध 'कूए्मांडा यखक्ामः 

कृष्माडा जे जग सुखदानी। 

मुञ्ज पर दया करो महारानी। ` 

पिगला ज्वालामुखी निराली। 

शाकम्भरी मों भोली भाली। 

लाखों नाम निराले तेरे। 

भक्त कडं मतवाले तेरे। 

भीमा पर्वत पर है डेरा, 

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा। 

सब की सुनती हो जगदम्बे |

सुख पर्हुचाती हो मौ अम्बे। 

तेरे दर्शन का म प्यासा। 

पूर्ण कर दो मेरी आशा। 

मों के मन मे ममता भारी। 

क्यो न सुनेगी अरज हमारी। 

तेरे दर पर किया हे डरा। 

दूर करो मौ संकट मेरा। 

: कारज पूरे कर दो। 

॥१। भण्डार 

व ` तेरा दास भ ही ध्याए। 

"चमन तेरे दर शीश ज्मुकाए। 

चमन की चणक श्री दुर्गा स्तुति 

पांचवीं देती सकन्धमाता 

।जे तेरी हो अस्कन्ध माता। 

पोचवा नाम तुम्हारा आता। 

सब के मन की जानन हारी। 

कि जग जननी सब की महतारी। 

तेरी जोत जलाता रहं मे| न 

हरदम तुम्हं ध्याता ररह भे। 

कई नामो से लुञ्च पुकारा। 

मुञ्े एक हे तेरा सहारा। 

कहीं पहाड़ों पर हे डरा। 

कड शहरों मे तेरा बसेरा। 

हर मन्दिर मे तेरे नजारे। 

गुण गाए तेरे भक्त प्यारे। 

भक्ति अपनी मुञ्चे दिला दो। 

शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो। 

इन्द्र आदि देवता मिल सारे। 

करे पुकार तुम्हारे द्वारे। 

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आये। 

त्‌ ही खण्डा हाथ उठाये 

को सदा बचाने आईं । 

चमन आस प आई | 

चमन की | श्री दुर्गा स्तुति 

शटीं कात्यायनीं विख्याता 

जे जे अम्बे जे कात्यायनी। 

जै जगमाता जग की महारानी। 

वेजनाथ स्थान तुम्हारा। 

व्हा वरदाती नाम पुकारा। । 

करई नाम हे करई धाम हे। 

यह स्थान भी तो सुखधाम हे। 

हर मन्दिर में जोत तुम्हारी। 

कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी। 

हर जगह उत्सव होते रहते । 

हर मन्दिर मे भक्त है कहते। 

कात्यायनी रक्षक काया की। 

ग्रन्थी काटे मोह माया की। 

ञ्ूठे मोह से छुडाने वाली। 

अपना नाम जपाने वाली। 

बृहस्पतिवार को पूजा करियो। 

ध्यान कात्यायनी का धरियो। 

हर संकट को दूर करेगी। नत 

भण्डारे भरपूर करेगी।

जो भी मों को “चमन पुकारे। 

कात्यायनी सब कष्ट निवारे। 

सातवीं क्लरात्रिं महामाया 

। कालरात्रि जे जे महाकाली। 

काल के मुंह से बचाने वाली। 

क दुष्ट सहारन नाम तुम्हारा । 

महा चण्डी तेरा अवतारा। 

पृथ्वी ओर आकाश पे सारा।

महाकाली हे तेरा पसारा। 

खडा खप्पर रखने वाली।  

दुष्टो का लह चखने वाली। 

कलक्ता स्थान तुम्हारा। 

सब जगह देखू तेरा नजारा । 

सभी देवता सब नर नारी। 

गावे स्तुति सभी तुम्हारी। 

रक्तदन्ता ओर अन्न पूरणा। 

कृपा करे तो कोई भी दुःख ना। 

न कोई चिन्ता रहे विमारी। 

न कोड गम न संकट भारी। 

उस पर कभी कष्ट न आवे। 

महाकाली मो जिसे बचावे। 

त्‌ भी “चमन प्रेम से कह। 

कालरात्रि मो तेरी जय। 

चमन की श्री दुर्गा स्तुति 

आठवी महागोरी जगजाया 

जे महागौरी जगत की माया 

जै उमा भवानी जय महामाया 

हरिद्वार कनखल के पासा। 

महागोरी तेरा वर्ह निवासा। 

चन्द्रकली ओर ममता अम्बे। 

जे शक्ति जे जै मों जगदम्बे। 

भीमा देवी विमला माता। 

कोशकी देवी जग विख्याता। 

हिमाचल के घर गोरी रुप तेरा| जनन 

महाकाली दुर्गा हे स्वरूप तेरा। 

सती “सतः हवन कुंड मे था जलाया। 

उसी धुए ने रुप काली बनाया। 

बना धर्म सिह जो सवारी मे आया। 

तो शकर ने त्रिशूल अपना दिखाया। 

तभी मों ने महागोरी नाम पाया। 

शरण तेरी आने वाले का संकट मिटाया। 

शनिवार को तेरी पूजा जो करता। 

भीबिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता। 

"चमन" बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। 

महागोरी मा तेरी हरदम ही जय हो। 

चमन  नाता श्री दुर्गा स्तुति 

 नी सिचि दात्री जगजानि 

जे सिद्धि दात्रीर्मौ तू सिद्धि की दाता। 

त्‌ भक्तो की रक्षक तू दासो की माता। 

नि तेरा नाम लेते ही मिलती हे सिद्धि। 

तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि। | 

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। 

जभी हाथ सेवक कं सिर धरती हो तुम। 

तेरी पूजाम तो न कोई विधि हे। 

त्‌ जगदम्बे दाती तरू सर्वं सिद्धि हे। 

रविवार को तेरा व करे जो। 

तरी मूर्ति को ही मन में धरे जो। 

त्‌ सब काज उसके करती हो पूरे। 

कभी काम उसके रहे न | 

तुम्हारी दया_ ओर बु यह माया। 

रखे जिसके सिर पर भेय्या अपनी छाया। 

सर्वसिद्धि दाती वह है भाग्यशाली । 

जो हे तेरे दर का ही अम्बे सवाली। 

हिमाचल है पर्वत जर्हौ वास तेरा। 

महा नन्दा मन्दिर मं है वास तेरा। 

मुख्ये आसरा हे तुम्हारा ही माता। 

भचमन” हे सवाली तू जिसकी दाता। 

चमन की | _ श्री दुर्गा सतुति 

अन्नपूर्णा  भगवतीं स्तेज 

| जगत जगदीश्वरी माँ जगदम्बे आशा पूर्ण करती रहो। 

अन्नपूर्णा दाती हो तुम सदा भण्डार भरती रहो। 

दारे तेरे आया सवाली कभी निराश जावे ना। 

भक्ति शक्ति दे माँ अम्बे तेरे ही गुण गावे मौ 

तू हे दाती दिला दी जाने, चिन्तपूर्णीं कहलाती हो। | 

चिन्ता दूर करो मो मेरी, सब को सुख पर्हुचाती हो। 

तेरी माया का भरमाया, मे हू दास निमानार्मो। 

शरण तेरी मेय्या मे आया, आशा पूरी करनार्मो। 

ज्वाला हो तुम मों जगदम्बे, उज्जवल मेरा भविष्य करो | 

बदल दो दाती किस्मत मेरी, उल्टं लेख भी सीधे करो। 

तुम बिन कोड नही मो मेरा, शरण तुम्हारी आया हू। 

काम कोई भी सिद्ध न होवे, कई यत्न कर हारार्ह। 

बरकत भर दो हाथ मे मेरे, कृपा इतनी करना मो । 

अन्नपूर्णा मो जगदम्बे, भण्डारे सदा ही भरना मो। 

चमन की श्रीदुर्गा स्तुति 

मेरे परिवार की रक्षा करना, कर्ज न कोई सर पर रहे। 

एसी कृपा करो तुम दाती, व्यापार मेरा भी बढता रहे। । 

दया तेरी जिस पर हो मेय्या, कभी निराश जाये ना। 

। बिगड़ काम भी बन जाते हे।, शरण तेरी जो आये मौँ। 

रक्षक वन रक्षा हो करती, दास के संकट दूर करो। 

शरण तेरी "चमन मौ आया, अन्नपूर्णाभण्डारे भरो | 

पुस्तकं वितरण करने का पुण्य सब से अधिक 

माना गया हे। श्रद्धा पूर्वक पाठ करने वाले 

का फल प्रत्यक्ष रुप से कछ भाग पुस्तके 

वितरण करने वाले को अवश्य मिलता हे। 

बृज भारद्ाज भाता जीं की प्रसिद्व भेटं 

। मेरी दाती रखी मेन्‌ चरणा दे कोल। 

मेरी दाती तेरे जया कोड न होर। 

सब था ठोकरा खा मे आया। 

किसे नही दाती मेनं अपनाया। 

8 > मिली न किधरे वी ठोर-मेरी मेय्या 

सब दे दिलां दी मौ त्‌ जाने। 

आये तेरे दर आशा पुजाने। 

बनी क्यों मात कठोर-मेरी मेय्या...... 

जगत वी वाली तू मो अम्बे। चनेन 

सब ते कृपा कर जगदम्बे ~ 

ओगन न साडे टटोल-मेरी मेय्या...... 

मन मन्दिर मों जोत हे तेरी। 

श्वास श्वास जपे जगदम्बे मेरी 

मञ्जदार विच न छोड-मेरी मेय्या...... 

मोह ममता दल दल विच फसया। 

कर्म कोड “चमन कर न सकया। 

पई मां अज तेरी लोड-मेरी मय्या... 

चमन नादान मेय्या दर तेरे आया। 

॥ सब कछ छड मोह तेरे नाल पाया। 

खाली न दर तों मोड-मेरी मेय्या...... 


Listen Sampoorna Durga Path in Hindi





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