Header Ads

  • Breaking News

    Kartik Mahatmya Chapter-34 | कार्तिक माहात्म्य-34 -  चौंतीसवां अध्याय

    Kartik Mahatmya Chapter-34 | कार्तिक माहात्म्य-34 -  चौंतीसवां अध्याय

    सूतजी कहते हैं कि यदि किसी उद्यापन की शक्ति न हो तो ब्राह्मणों को भोजन करा देवे। यदि ब्राह्मण न मिले तो गौ का पूजन कर ले। यदि गौ भी न मिले तो पीपल अथवा वट का पूजन करे लेवे । यह सुनकर ऋषि पूछने लगे कि महाराज ! वृक्ष तो सभी समान हैं फिर पीपल तथा वटवृक्ष को ही श्रेष्ठ क्यों माना गया है?

    तब सूतजी ने कहा-पीपल विष्णु का, वट शिव का तथा पलाश. ब्रह्मा का रूप है । फिर ऋषियों ने पूछा कि ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश (शिव) यह सब वृक्ष भाव को कैसे प्राप्त हुए? यह सुनकर सूतजी कहने लगे, हे ऋषियो! एक समय शिवजी पार्वती जी सहित एकान्त में विराजमान थे कि उस समय देवताओं द्वारा भेजे गये अग्नेिदव द्वारा उनके एकान्तवास में कुछ विघ्न उपस्थित हुआ । तब पार्वती जी ने क्रोधित होकर देवताओं को श्राप दिया कि तुम वृक्ष रूप हो जाओ।

    तब विष्णु जी गया में जाकर पीपल, शिव काशी में अक्षय वट और ब्रह्माजी पलाश रूप हो गए। तभी से पीपल और वट का पूजन होता है । तब ऋषियों ने पूछा कि रविवार को पीपल का पूजन नहीं होता और शनिवार को अवश्य होता है, इसका क्या कारण है, सो भी कृपा करके कहिये।

    सूतजी कहने लगे-हे ऋषियो ! समुद्र मंथन के समय जब चौदह रत्न समुद्र से उत्पन्न हुए, तब श्रीविष्णु भगवान ने कौस्तुभ मणि तथा लक्ष्मी जी को स्वयं ग्रहण कर लिया। जब भगवानं लक्ष्मी जी के साथ विवाह करने लगे तो लक्ष्मी जी ने कहा कि भगवान ! मेरी एक बड़ी बहिन भी है, जिसका नाम दरिद्रा है अत: पहिले उसका विवाह होना चाहिए।

    विष्णुजी ने लक्ष्मी जी के यह वचन सुनकर उनकी बड़ी बहिन ज्येष्ठा उद्दलक ऋषि को सौंप दी । ज्येष्ठा (दरिद्रा) का काला रंग तथा लाल नेत्र, बिखरे बाल । उद्दालक मुनि भगवान की आज्ञा मानकर दरिद्रा को आश्रम में ले आए । वहां आकर दरिद्र ने देखा कि आश्रम में वेद पाठ तथा हवन हो रहा है । यह देख उसने मुनि से कहा कि मैं यहां पर नहीं रह सकती । जहां पर चोरी, जारी तथा ब्राह्मणों का अपमान होता है, मैं वहीं पर रह सकती हूं।

    उसकी यह बात सुनकर उद्दालक ऋषि अति दुखित हुए और उसको वहीं पर छोड़ कर चले गये और कह गए कि मैं तेरे लिए कोई स्थान देखकर आता हूं । दरिद्रा ने बहुत देर तक ऋषि की प्रतीक्षा की, किन्तु उनके न आने पर वह रोने और चिल्लाने लगी । तब लक्ष्मीजी ने भगवान से कहा कि हे भगवान ! बहिन दरिद्रा ऋषि द्वारा त्याग किए जाने से अत्यन्त दुःख होकर रो रही है, अत: पहले आप उसे जाकर शान्त करिए । तब भगवान लक्ष्मीजी सहित वहां पर आए और कहने लगे कि तुम पीपल में निवास करो। पीपल हमारा ही अंश है। - जो कोई कार्तिक सुदी पूर्णमासी को पीपल, (ज्येष्ठा) का पूजन करेगा वह तुमको ही प्राप्त होगा और उसके यहां लक्ष्मी का वास होगा। जो शनिवार को तुम्हारा पूजन करेगा और सूत टेगा, उसके समस्त मनोरथ सिद्ध होंगे । परन्तु पुरे दिन अर्थात् रविवार को जो तुम्हारा स्पर्श करेगा वह दरिद्री ही जाएगा । इतना कहकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गये । सूतजी कहते हैं जो ई इस कथा को कहता या सुनता है उसको प्रयाग तथा बद्रीकाश्रम तीर्थ जैसा फल प्राप्त होता । और अन्त में सभी सुख भोगकर विष्णु लोक जाता है।




    2 comments:

    1. Nice blog with good content,thanks for sharing.
      For Astrological service contact Shri Durga astro center,They gives
      Best Astrologer in Chamarajanagar

      ReplyDelete
    2. it was great information and very useful

      abhiram astrology center. Best Astrologer In mississauga

      ReplyDelete

    Note: Only a member of this blog may post a comment.

    '; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();

    Post Top Ad

    Post Bottom Ad