कार्तिक माहात्म्य-19- उन्नीसवां अध्याय
नारदजी कहने लगे कि राजा पृथु ! कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी से शुक्ला द्वितीय तक यमराज को प्रसन्न करने के लिए दीपक जलाना चाहिए । इससे अकाल मृत्यु आदि नहीं होती चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं । उस दिन तिल का तेल, अपामार्ग तथा दूर्वा आदि लगाकर स्नान करना चाहिए स्नान के पश्चात् दक्षिण की ओर मुख करके अपसव्य होकर जल में तिल मिलावे और तीन-तीन अंजुली से यमाय, धर्मराज, मृत्यवे अन्तकाय, कालाय, सवभूतक्षयाय, चित्रगुप्ताय इन मन्त्रों द्वारा यमराज का तर्पण करे । फिर सायंकाल ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा के मन्दिरों में दीपक जलावे । रात को श्री लक्ष्मी जी का पूजन करे । यदि कोई शस्त्र से मारा गया हो तो चतुर्दशी को उसके निमित्त भी दीपदान करे । इससे अक्षय फल प्राप्त होता है। फिर कन्या, ब्रह्मचारी तथा तपस्वियों को भोजन करावे । इससे यमपुरी को न जाकर शिवलोक की प्राप्ति होती है । गौशाला में दीपक जलावें फिर लक्ष्मीजी की स्तुति करके उनको जगावें जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री अपने पति से पहले जागती है उसी प्रकारी लक्ष्मीजी भी भगवान से बारह दिन पहले जागती रहती हैं ।
अमावस्या को दिन में बालक, वृद्ध तथा रोगियों को छोड़, अन्य कोई भोजन न करें । सायंकाल में लक्ष्मी जी का पूजन करके तब स्वयं भोजन करें । घर को फूल माला आदि से सजाकर रात्रि को सारे घर में दीपमाला करे। घर के सभी स्त्री-पुरुष नवी वस्त्र धारण करें और समस्त रात्रि नृत्य गीतानि हर्षोल्लास से बितावें । रात्रि भर दीपक जलाना चाहिए । उस रात्रि को लक्ष्मी जी सब घरों में घूमती हैं तथा जो घर अधिक सुन्दर तथा रमणीक होता है उसमें बहुत दिनों तक निवास करती हैं ।
एक प्रहर रात्रि शेष रहने पर घर का रूप कूड़ा-कर्कट सूप या पुराने पंखे पर रखकर बाहर फेंक देना चाहिए। ऐसा करने से वह घर धन-धाय से पूर्ण रहता है । दूसरे दिन गोवर्धन बनाकर बन्धु-बान्धवों सहित पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन करावें । स्वयं भी नवीन अन्न का भोजन करें। भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र का मान-मर्दन करके गोवर्धन पर्वत का पूजन इसी दिन किया था । सायंकाल के समय गौ तथा वृषभ (बैल) का पूजन करके उनसे अपने तथा परिवार के भरण-पोषण व रक्षा के लिए प्रार्थना करे । बलि और उसकी पत्नी विन्ध्यावलि की मूर्ति बना कर सायंकाल के समय पूजन करके दानादि क्रिया करने वाला परिवार सदा सुखी रहता है।
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