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    कार्तिक माहात्म्य पाठ -5 

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    नारदजी कहने लगे कि ब्राह्मण ! कार्तिक मास का कोई सूंदर व्रत कहिए| तब कहने लगे कि हे पुत्र ! विधिवत जो परम पवित्र और पापनाशक नक्त व्रत है, वह सौभाग्यवती स्त्रियों को अवश्य करना चाहिए| नारदजी ने प्रसन्न किया कि हे ब्रह्मण ! उस व्रत की क्या विधि है और कब करना चाहिए ? ब्रह्माजी ने कहा कि हे पुत्र ! तुम्हारे स्नेह वश यह अति गुप्त कार्तिक मास का व्रत कहता हूँ, तुम सावधान होकर सुनो| अश्विन शुक्ला पूर्णमासी को प्रातः काल उठ कर शौच आदि से निवृत हो कर दन्त मंजन आदि करके नदी संगम में, नदी, सरोवर, दबे कुंड, कूप या घर में स्नान करे| व्रत के एक दिन से पहले सिर न धोवे तथा व्रत वाले दिन विधि पूर्वक स्नान पवित्र मन से विधाता का स्मरण करे तथा व्रत का संकल्प करे और यह कहे कि हे जगत के करता आप मेरे पति की रक्षा की कीजिये, मेरी संतान की वृद्धि करिए| मन्त्र पढ़कर सूर्य को प्रणाम के और सूंदर वस्त्र तथा आभूषणादि को धारण करे| दिन के समय भोजन न करे, न ही जल पीवे अर्थात भजनादि में सारा दिन बिता देवें| 


    ब्रह्माजी कहने लगे कि हे पुत्र ! सायंकाल को चांदी, तांबा या मिटटी की हमारी मूर्ति बनावे| उसको लाल वस्त्र पहनावे और विधि पूरक हमारा पूजन करे| इसके पश्चात ब्रह्मण को भोजन करावे और बुल के वृद्धों तथा वृद्धाओं को स्वादिस्ट पकवान से तृप्त करे और स्वंय भी तारों को देखकर भोजन करे| यह आश्विन शुक्ला पूर्णमासी को ब्रह्माजी का नकट व्रत होता है| यह व्रत सब प्रकार के पापों का नाश करने वाला, समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला तथा ज्ञानी पुरुषों को मुक्ति देने वाला होता है| भगवान, जप, तप तथा तीर्थ स्थान से इतने प्रसन्न होते है जितने इस व्रत से प्रसन्न होते हैं जो ब्रह्मजी के आगे इस दिन जो कपूर जलाता है उसको बड़े-बड़े वृक्षों तथा गौदान का फल मिलता है तथा उसके कई एक कुल बैकुंठ को प्राप्त होते हैं| जो केशर तथा कस्तूरी सहित कपूर अर्पण करता है उसके की वश ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं| जो स्त्री इस दिन वस्त्र का दान करती है वह कपडे के सूत्र के तारों की संख्या के बराबर करोड़ वर्ष तक बैकुंठ में वास करती है| जो गहने का दान करती है, उसको ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है| जो कोई इस कथा को पढ़ता है अथवा सुनता है| उसको भी अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है| 

    कार्तिक माहात्म्य-5 समाप्तम 

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