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     Kartik Mahatmya Chapter-22 | कार्तिक माहात्म्य-22 - बाईसवां  अध्याय

    Kartik Mahatmya Chapter-22 | कार्तिक माहात्म्य-22 - बाईसवां  अध्याय

    नारदजी कहते हैं कि हे राजन् ! कार्तिक शुक्ला दूज को यम द्वितीया कहते हैं । इस दिन यमुना जी में स्नान करके यमराज का पूजन करते हैं । इस द्वितीया को भैया दूज भी कहते हैं । इस दिन भाई अपने घर भोजन न करे । अपनी बहन न हो तो गुरु की कन्या भी बहिन के समान होती है ! अतएव उसे ही बहिन माने । उस दिन बहिन अपने भाई तिलक करके भोजन करावे । भाई भी अपनी श्रद्धा तथा सामर्थ्यानुसार दक्षिणा दे।

    इतनी कथा सुनकर राजा पृथु ने नारद जी से पूछा कि हे नारदजी ! सब क्षेत्रों में उत्तम क्षेत्र कौन-सा है? नारदजी कहने लगे, राजन् ! सब क्षेत्रों से उत्तम गंगा तथा यमुना का संगम है, जिसमें स्नानादि करने की ब्रह्मा आदि देवता भी इच्छा करते हैं । गंगा के स्मरण मात्र से मनुष्य के अनेक पाप नष्ट हो आते हैं । गंगाजी में स्नान करने से मनुष्य के पाप नाश होकर कई कुल : परमपद को प्राप्त हो जाते हैं । गंगा स्नान की अभिलाषा करने से मनुष्य अनेक जन्म के पापों से मुक्त हो जाता है । यह समस्त संसार मायारूपी बन्धन में बंधा हुआ है, मगर गंगा इस मायारूपों बन्धन को काटने वाली है । गोदावरी, कृष्ण, रेवा, अमरवती, ताम्रपर्णी, सरयू आदि सब तीर्थ गंगा में स्थित हैं । काशी क्षेत्र भी सब क्षेत्र में उत्तम है, जहां देवता वास करते हैं । वह मनुष्य न्य हैं जो अपने कानों से काशी क्षेत्र की कथा सुनता है । जो काशी जी का सेवन करते हैं । जीवन मुक्त हो जाते हैं । यदि प्रात:काल के समय कोई काशी क्षेत्र का स्मरण करता है तो वह भी मोक्ष का प्राप्त हो जाता है ।

      2 टिप्‍पणियां:

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