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    कार्तिक माहात्म्य अध्याय -11 

    Kartik Mahatmy Chapter -11| कार्तिक माहात्म्य कथा

     एक समय नारदजी श्री व्यास जी से पूछने लगे कि हे व्यास जी! गृहस्थाश्रम सब आश्रमों से उत्तम क्योँ माना गया है? तब व्यासजी ने कहा- जैसे सब नदियां समुद्र में आश्रय पाती हैं और सब जीव माता का आश्रय पाकर ही जीवित रहते हैं| यह 6 प्रकार के : भिक्षुक, ब्रह्मचारी, सन्यासी, विद्यार्थी, गुरुपूजक, यात्री जीविका रहित ये सब गृहस्थों का ही आश्रय पाते हैं फिर व्यास जी बोले, हे नारद अब तब अति पुण्य देने वाला एक पुरातन इतिहास सुनो| 

    उत्तानपाद राजा का पुत्र उत्तम था जो बड़ा बलवान और मदिरा पीने वाला था| उसने बहुला नाम वाली स्त्री के साथ विवाह किया और राजा रानी दोनों ही अति प्रेम के साथ  रहने लगे| एक समय राजा ने वैश्या का नृत्य देखते हुए मदिरा पान किया और रानी को भी मदिरा पान के लिए कहा, परन्तु रानी ने उसका कहना नहीं माना| इस पर राजा ने क्रोधित होकर अपने अनुचरों को आज्ञा दी कि वह रानी को किसी निर्जन वन में छोड़ आए| तत्पश्चात राजा, रानी के वियोग मैं दुःखी तो हुआ मगर उसने दूसरा विवाह नहीं  किया और प्रजा की पुत्र के समान पालन करने लगा| एक दिन एक ब्रह्मण राजा के पास आकर कहने लगा कि हे राजन ! कोई मेरी स्त्री का अपहरण करके ले गया है, उसके वियोग में मैं अति दुखित हूँ, इसलिए तुम उसे ढूँढ़कर लाओ| राजा कहने लगा कि महाराज मैं नहीं जानता कि आपकी स्त्री कौन है, किधर और कहाँ ले गया है, मैंने तुम्हारी स्त्री को नहीं जानता हूँ की वह कैसे स्वभाव वाली और रूप वाली है| तब ब्रह्मण बोला कि वह यदपि कठोर वचन बोलने वाली कुरूपा, काले रंग की तथा कर्कश स्वभाव वाली है, परन्तु मैं उसकी कोई निंदा नहीं करता, क्योँकि वह मेरी पत्नी है| तब राजा कहने लगा कि जब तुम्हारी स्त्री ऐसी कुरूपा और क्रूर स्वभाव वाली है तो तुम उसे लेकर क्या करोगे, मैं अति सुन्दर और कल्याणकारी दूसरी स्त्री लेकर दे सकता हूँ| ब्राह्मण कहने लगा कि राजन मेरी स्त्री मेरे धर्म और कर्म की अर्धांगिनी है, उसकी रक्षा करना मेरा परम धर्म है| जो अपनी स्त्री की रक्षा नहीं करता, उसका कल्याण नहीं होता| जो मनुष्य ऋतुकाल के पश्चात अपनी स्त्री से भोग नहीं करता उसके पितर एक मास तब उसके रुधिर में तैरते हैं| ब्राह्मण के ऐसे वचन सुनकर राजा अपने शस्त्र लेकर रथ पर सवार हुआ और चारों और धूम फिर उस स्त्री को खोजने लगा| कुछ दूर जाकर उसने एक आश्रम देखा, जहाँ पर एक महान तेजस्वी ऋषि कुशा के आसान पर विरजामन थे| राजा को देख कर भी उस ऋषि ने राजा का कोई आदर सत्कार नहीं किया और बोला, मैं जानता हूँ तुम राजा उत्तानपाद के पुत्र हो, मगर तुम यहाँ किस कारण आये हो? राजा कहने लगा, हे मुने! ब्राह्मण के घर से कोई उसकी स्त्री हो हारकर ले गया है| मैं उसी की खोज में इधर आया हूँ, परन्तु आपने अर्ध्य आदि कुछ भी नहीं दिया और न ही किसी प्रकार का सत्कार किया, इसका कारण क्या है? ऋषि ने उतर दिया-राजन! तुम अर्ध्य योग्य होते हुए भी इस समय उसके पात्र नहीं हो, क्योँकि तुमने अपने निरपराध स्त्री को वन में त्याग दिया है| जहाँ स्त्री का यह धर्म है कि वह तन मन से अपने पति की सेवा करे तथा उसकी आज्ञा का पालन करे वहां पुरुष का भी धर्म है की वह अपनी स्त्री का यथाचित सम्मान करे| जिस घर मैं स्त्रियों का मान होता है वहां पर देवताओं का वास होता है| जहाँ स्त्रियों का अनादर होता है, वहां कभी सुख शांति नहीं रहती| इतना सुन लज्जा युक्त हो पूछने लगा कि भगवान! आप बहुत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल के जानने वाले हैं, इसलिए कृपा करके बताइए की ब्राहाण की स्त्री को कौन और कहाँ हर ले गया है? ऋषि कहने लगे कि  राजन! अदिति का पुत्र बलाक नामक राक्षस उस ब्राह्मणी को उत्पलावर्त वन में हरकर ले गया है, सो जाओ और उसको ढूँढ़कर ब्राह्मण का संयोग करो| राजा ने मुनि को प्रणाम किया और मार्ग पर जाकर उत्पलावर्त वन में जा पंहुचा| 
    Kartik Mahatmy Chapter -11| कार्तिक माहात्म्य कथा

    वहां जाकर देखा की जैसा ब्राह्मण ने बताया था वैसा ही उसका रंग रूप देखकर राजा ने उसे पहचान लिया और कहा कि हे कल्याणी ! तुम कौन हो और विलास पुत्र की स्त्री हूँ| मैं अपने घर में अकेली सो रही थी कि वल्क नाम वाला राक्षस मुझसे हरकर यहां पर ले आया है| यहाँ लाने के बाद न तो उसने किसी बात का कष्ट दिया और न ही मेरा सतीत्व नष्ट करने की चेष्टा की इतना होने पर भी मैं यहाँ अत्यंत दुःखी हूँ| राजा ने कहा कि हे ब्राह्मणी यह राक्षस कहाँ गया हैं? मुझको तुम्हारे पति ने ढूंढ़ने के लिए भेजा है| ब्राह्मणी ने कहाँ की वह इस वन में अमुक स्थान में गया है| तब राजा ने ब्राह्मणी के बताये हुए स्थान पर जाकर राजा को देखा| राजा को देखर वह राक्षस उसके पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा की राजन! मुझे क्या आज्ञा है? राजा ने कहा कि हे निशाचर ! तू इस ब्राह्मणी को क्योँ लाया है? राक्षस कहने लगा कि राजन! इस ब्राह्मणी का पति राक्षसों को मारने का मन्त्र जानता है| अतएव जब हम यंत्र का अन्न ग्रहण करने के लिए जाते हैं तो वह हमको वहां से भगा देता है, क्योँकि सब यज्ञों का वही आचार्य बनता हैं| इसी कारण उस ब्राह्मण को दुखी करने के लिए मैं उसकी स्त्री को हर लाया हूँ| क्योँकि बिना स्त्री के पुरुष कर्म का अधिकारी नहीं होता| यह सुनकर राजा ने विचार किया कि यह राक्षस भी हमारी ही निंदा करता है मुनि ने भी हमको अर्ध्य योग्य नहीं समझा| राजा अपने में में ऐसा विचार ही रहा था कि राक्षस कहने लगा कि राजन, मैं आपकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करूंगा| इतना कह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया राजा ने कहा कि हे निशाचर ! तुम इस ब्राह्मणी को इसके घर छोड़ आओ और जब हम यद् करें तब हमारे पास आ जाना| राजा की आज्ञा पाते ही वह राक्षस उस ब्राह्मणी को उसके घर छोड़ने चला गया| तब राजा सोचने लगा कि मैंने अपनी निर्दोष स्त्री को घर से निकाल दिया , अब ऐसा कौन-सा पुण्य कर्म करूँ जिससे यह पाप दूर हो| तब राजा पुनः उन्ही मुनि के पास गया और उनसे अपना कर्तव्य पूछा-मुनि ने कहा हे राजन तुम्हारी स्त्री को शतपात नाम के नाग ने वन में घूमते हुए देखा तो वह उसको पाताल लोक में ले गया| उस नाम की नंदा नाम वाली एक कन्या है उसने अपने घर में उसको छिपा रखा है| यह सुन राजा वहां से अपने घर आया और ब्राह्मण को स्त्री सहित अपने घर में देखकर बहुत प्रसन्न हुआ| तत्पश्चात राजा ने बालक नामक राक्षस को यद् किया तो वह तुरंत ही राजा के पास आकर उपस्थित हो गया| बालक को देख राजा ने उसे पाताल लोक से अपनी स्त्री को लाने का आदेश दिया| उसके बाद वह राक्षस पाताल लोक गया और वहां से राजा की स्त्री को लाकर राजा को सौंप दी| इसके बाद राजा और रानी बड़े प्रेम से रहने लगे| 

    2 टिप्‍पणियां:

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