वामन एकादशी , जयन्ती एकादशी | Vamana Ekadashi Katha
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकाद्शी तिथि पदमा एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इस तिथि में वामन देव का पूजन अवश्य करना चाहिए|
भादों मास की एकादशी वामन एकादशी के नाम से जानी जाती है| इस दिन यज्ञोपवीत से वामन की प्रतिमा स्थापित कर, अर्ध्य दान करने से,फल, फूल चढाने, और उपवास करने से व्यक्ति का कल्याण होता है|
इस एकादशी को एक अन्य मत के अनुसार भादों मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है. एकादशी तिथि के दिन किया जाने वाला व्रत पदमा एकादशी के नाम से जाना जाता है. जबकि एक अन्य मत यह कहता है, कि एकादशी व्रत होने के कारण इस व्रत को एकाद्शी तिथि में ही किया जाना चाहिए. इस दिन वामन एकादशी व्रत किया जा सकेगा, इसका व्रत करना विशेष कल्याणकारी रहेगी|
अर्ध्य देने समय निम्न मंत्र का प्रयोग करना चाहिए|
देवेश्चराय देवाय, देव संभूति कारिणे ।
प्रभवे सर्व देवानां वामनाय नमो नम: ।।
इसकी पूजा करने का एक दूसरा विधान भी है. पूजा के बाद 52 पेडा और 52 दक्षिणा रखकर भोग लगाया जाता है. फिर एक डलिया में एक कटोरी चावल, एक कटोरी शरबत, एक कटोरी चीनी, एक कटोरी दही ब्राह्माण को दान दी जाती है. इसी दिन व्रत का उद्यापन भी करना चाहिए. उध्यापन में ब्राह्माणों को एक छाता, खडाऊँ तथा दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए. इस व्रत को करने से स्वर्ग कि प्राप्ति होती है|
वामन एकादशी व्रत फल | Benefits of Vaman Ekadashi Vrat
वामन एकाद्शी भादों की शुक्ल पक्ष की एकादशी कहलाती है. इस एकादशी को जयन्ती एकाद्शी भी कहते है. इस एकाद्शी का व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है. इस जयंती एकादशी व्रत को करने से नीच पापियों का उद्वार हो जाता है. अगर कोई व्यक्ति परिवर्तनी एकाद्शी के दिन भगवान श्री विष्णु जी कई की पूजा करता है. उसे मोक्ष कि प्राप्ति होती है.
इस एकादशी के फलों के विषय में जरा से भी संदेह नहीं है, कि जो व्यक्ति इस एकादशी के दिन वामन रुप की पूजा करता है, वह ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों की पूजा करता है. इस एकादशी का व्रत करने के बाद उसे इस संसार में कुछ भी करना शेष नहीं रहता है. वामन एकाद्शी के दिन के विषय में एक मान्यता है, कि इस दिन भगवान श्री विष्णू जी करवट बदलते है. इसी वजह से इस एकादशी को परिवर्तिनी एकाद्शी भी कहते है|
वामन एकादशी व्रत कथा | Vamana Ekadashi Vrat Katha
त्रेतायुग में बलि नाम का एक दानव था. वह भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्माणों की सेवा करने वाला था. साथ ही वह सदैव ही यज्ञ और तप आदि किया करता था. वह अपनी भक्ति के प्रभाव से स्वर्ग में इन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा. इन्द्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन न कर सके, और भगवान के पास जाकर प्रार्थना करने लगे|अन्त में भगवान श्री विष्णु ने वामन रुप धारण किया|
और राजा बलि से याजना की, हे राजन, तुम मुझे तीन पग भूमि दे दों. इससे तुम्हें तीन लोक दान का फल प्राप्त होगा. राजा बलि ने इस छोटी सी याचना को स्वीकार कर लिया. और राजा भूमि देने को तैयार हो गया. ऎसे में भगवान श्री विष्णु जी ने अपना आकार बढाया. प्रथम पग में भूमि, दूसरे पग में नभ और तीसरे पग रखने से पहले उन्होने पहूंचा की पैर कहां रखूं. इतना सुनकर राजा बलि ने अपना सिर नीचा कर लिया. और भगवान विष्णु ने तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रख दिया. ऎसे में भक्त दानव पाताल लोक चला गया|
पाताल लोक में राजा बलि ने विनीत की, तो भगवान विष्णु जी ने कहा की में तुम्हारे पास सदैव रहूंगा. तभी से भादों के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी नामक एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है. और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शय करती रहती है. इस एकाद्शी के दिन भगवान श्री विष्णु सोते हुए करवट बदलते है. इस दिन त्रिलोकी के नाथ श्री विष्णु भगवान की पूजा की जाती है. इस दिन चावल और दही सहित चांदी का दान करने का विशेष विधि-विधान है|
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