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     Kamika Ekadashi Vrat Katha -कामिका एकादशी 


    Kamika Ekadashi Vrat Katha- कामिका एकादशी

    कामिका एकादशी सावन माह के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशीको मनाई जाती है.  इस एकादशी के दिन भगवान श्री कृ्ष्ण की पूजा करने से फल मिलता है. वही फल गांअ, काशी और अन्य तीर्थ स्थानों में स्नान करने से मिलने वाले फल के समान होता है. इस एकादशी का व्रत करने के लिये प्रात: स्नान करके भगवान श्री विष्णु को भोग लगाना चाहिए. आचमन के पश्चात धूप, दीप, चन्दन आदि पदार्थों से आरती उतारनी चाहिए| 

    कामिका एकादशी व्रत महत्वकामिका एकादशी व्रत के दिन श्री हरि का पूजन करने से व्यक्ति के पितरों के भी पाप दूर होते है| उपवास करने वाला व्यक्ति पाप रूपी संसार से उभर कर, मोक्ष की ओर अग्रसर होता है. इस एकादशी के विषय में यह मान्यता है, कि जो मनुष्य़ श्रावण मास में भगवान श्रीधर की पूजा करता है, उसके द्वारा गंधर्वों और नागों की सभी की पूजा हो जाती है| लालमणी मोती, दूर्वा और मूंगे आदि से पूजा होने के बाद भी भगवानश्री विष्णु उतने संतुष्ट नहीं होते, जितने की तुलसी पत्र से पूजा होने के बाद होते है| जो व्यक्ति तुलसी पत्र से श्री केशव का पूजन करता है. उसके जन्म भर का पाप नष्ट होते है| श्रावण मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकाद्शी का नाम कामिका है| इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही यज्ञ करने समान फल प्राप्त होते है| कामिका एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, गदाधारी श्री विष्णु जी की पूजा होती है| जो मनुष्य इस एकाद्शी को धूप, दीप, नैवेद्ध आदि से भगवान श्री विष्णु जी कि पूजा करता है. उसे गंगा स्नान करने के फल से भी बडा फल मिलता है| 


    कामिका एकाद्शी व्रत विधि 

    एकादशी तिथि का व्रत दशमी तिथि से ही प्रारम्भ समझना चाहिए. एकाद्शी व्रत तभी सफल होत है, जब इस व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही किया जाता है. जिस व्यक्ति को दशमी तिथि का व्रत करना हो, उस व्यक्ति को दशमी तिथि में व्यवहार को सात्विक रखना चाहिए. सत्य बोलना और मधुर बोलना चाहिए. ऎसी कोई बात नहीं करनी चाहिए. कि जो किसी को दू:ख पहुंचाये| 


    व्रत की अवधि लम्बी होती है. इसलिये उपवासक में दृढ संकल्प का भाव होना चाहिए. एक बार व्रत शुरु करने के बाद मध्य में कदापि नहीं छोडना चाहिए| दशमी तिथि के दिन रात्रि के भोजन में मांस, जौ, शहद जैसी वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए| और एक बार भोजन करने के बाद रात्रि में दोबारा भोजन नहीं करना चाहिए| दशमी तिथि से ही क्योकि व्रत के नियम लागू होते है, इसलिये भोजन में नमक नहीं होना चाहिए| भोजन करने के बाद व्यक्ति को भूमि पर शयन करना चाहिए और पूर्ण रुप से ब्रहाचार्य का पालन करना चाहिए|  व्रत के दिन अर्थात एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए. स्नान से पहले नित्यक्रियाओं से मुक्त होना चाहिए और स्नान करने के लिये मिट्टी, तिल और कुशा का प्रयोग करना चाहिए| यह स्नान अगर किसी तीर्थ स्थान में किया जाता है, तो सबसे अधिक पुन्य देता है. विशेष परिस्थितियों में घर पर ही स्नान किया जा सकता है| स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए और भगवान श्री विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लेना चाहिए| इसके बाद भगवान का पूजन करना चाहिए पूजन करने के लिये सर्वप्रथम कुम्भ स्थापना की जाती है. कुम्भ के ऊपर भगवान श्री विष्णु जी की प्रतिमा रखी जाती है, और उसका पूजन धूप, दीप, पुष्प से किया जाता है| 

    कामिका एकादशी व्रत कथा 

    प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर जी थे. क्रोधी ठाकुर का एक ब्राह्मण से झगडा हो गया| परिणाम स्वरुप ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया| तब उन्होने एक मुनि से निवेदन किया कि हे भगवान, मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है| इस पर मुनि ने उसे कामिका एकाद्शी व्रत करने की प्रेरणा दी. ठाकुर जी ने ठिक वैसा ही किया| रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास जब वह  शयन कर रहा था. तभी उसे स्वपन आया| हे ठाकुर! तेरा पाप दूर हो गया है| अब तू ब्राह्माण की तेहरवीं करके ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो गया है| 

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