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     Durga Saptashati Siddha Kunjika Stotram : सिद्ध कुंजिका स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

    Durga Saptashati Siddha Kunjika Stotram- सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित- lyrics in hindi

    शिव उवाच- (Siddha Kunjika Stotram in hindi)

    Siddha Kunjika Stotram

    शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
    येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।।१।।

    अर्थ — शिव जी बोले देवी सुनो ! मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूंगा, जिस मन्त के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है।

    न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।।२।।

    अर्थ - कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है ।

    कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
    अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दर्लभम ।।३।।

    अर्थ - केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। यह कुंजिका अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी अति दुर्लभ है ।

    गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति
    मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनोच्चाटनादिकम
    पाठमात्रेण संसिध्येत कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।।४।।

    अर्थ — हे पार्वती ! स्वयोनि की भांति इस स्तोत्र को  प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र  पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि अभिचारिक उद्देश्यों को सिद्ध करता है।

    ॥अथ मंत्र: (Siddha Kunjika Stotram)॥

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
    ॐ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्ज्वल प्रज्ज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥

    (मंत्र में आये बीजों का अर्थ जानना न संभव है, न आवश्यक और नही वांछनीय केवल जप पर्याप्त है।)

    नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
    नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।।१।।

    अर्थ — हे रुद्ररूपिणी ! तुम्हे नमस्कार। हे मधु देत्य को मारने वाली ! तुम्हे नमस्कार है। कैटभविनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारने वाली देवी ! तुम्हे नमस्कार है ।

    नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
    जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व में।।२।।

    अर्थ — शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली महादेवी ! जागो  और मेरे द्वारा जप  किये गये इस  मंत्र को सिद्ध करो।

    ऐकारी सष्टिरुपाये ह्रींकारी प्रतिपालिका
    क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते ॥३॥

    चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।४।।

    अर्थ — हे महादेवी ! मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो। ऐंकार के रूप में सृष्टिरूपिणी, ‘हीं के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली 

    क्लीं के रूप में कामरूपिणी (तथा अखिल ब्रह्माण्ड) की बीजरूपिणी देवी तुम्हे नमस्कार है। चामुंडा के रूप में तुम चण्डविनाशिनी और येकार के रूप में वर देने वाली हो ।।३-४।।



    धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वू वागधीश्वरी।
    क्रां क्रीं क्रू कालिका देवि शां शी शूं में शुभं कुरु ।।५।।

    अर्थ — ‘धां धीं धूं के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वू’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रू’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शू’ के रूप में मेरा कल्याण करो ।

    हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
    भ्रां भ्रीं भ्रूं— भैरवी भद्रे भवान्य ते नमो नमः ।।६।।

    अर्थ — ‘हुं हुं हुंकार’ स्वरूपिणी, ‘जं जं ज’ जम्भनादिनी, ‘भ्रां भी भू के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी ! तुम्हें बार बार प्रणाम ।

    अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।

    अर्थ — ‘अं कं चंटं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं ह क्ष धिजाग्रं धिजाग्रं’ इन सबको तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा।

    पां पी पूं पार्वती पूर्णा खां खी खूं खेचरी तथा । सां सी सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।

    अर्थ — ‘पां पी पूं’ के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। ‘खां खीं खू’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो। ‘सां सी सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिए सिद्ध करो।

    इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। अभक्त्ये  नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।
    यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्। न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।

    अर्थ — यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखो। हे देवी! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।

    इति श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रं Siddha Kunjika Stotram सम्पूर्णम॥


    सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के फायदे | Siddha kunjika stotram benefits

    1.देवी का यह पाठ आपको शसख्त बनती है। 
    2.सिद्ध कुंजिका स्तोत्र से आपकी मनोकामना पूर्ण होती है। 
    3.पाठ का अर्थ समझने के बाद ,सभी भक्त माता के इस मंत्र का अर्थ समझकर ,देवी को प्रसन्न करते है। 
    4. यह पाठ माता को प्रसन्न करने के लिए है। 
    5.अगर आप पूरी भक्ति के साथ माता का यह सिद्ध कुंजिका पाठ करेंगे तो माता आपकी किसी प्रकार की मनोकामना हो ,पूरा करेंगी।  
    6.अघोरी साधू इस पाठ का दुरूपयोग करते है ,तो आप सब इस सिद्ध कुंजिका का पाठ को किसी अच्छे कार्य के लिए करें। 

    सिद्ध कुंजिका स्तोत्र  विधि | Siddha Kunjika Stotram Vidhi 

    1.इस स्तोत्र का पाठ आप कभी भी कर सकते है। 
    2.सिद्ध कुंजिका पाठ करते समय शुद्धता रखें।
    3.नवरात्री के अवसर पर अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते तो केवल सिद्ध कुंजिका स्त्रोत्र का पाठ करें ,ऐसा करने से आपको दुर्गा सप्तशती पाठ के बराबर फल प्राप्त होगा।  
    4.पाठ के पहले मनोकामना का संकल्प ले तब पाठ आरम्भ करें। 
    5.आस्था के साथ Siddha Kunjika Stotram का पाठ करने से भक्त की सारी मनोकामना पूरी होगी। 




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