श्री सालासर बालाजी की आरती
चैत सुदी पूनम को जन्मे, अंजनी पवन ख़ुशी मन में |
प्रकट भय सुर वानर तन में, विदित यस विक्रम त्रिभुवन में |
दूध पीवत स्तन मात के, नजर गई नभ ओर |
तब जननी की गोद से पहुंचे, उदयाचल पर भोर |
अरुण फल लखि रवि मुख डाला || कृपा कर० || १ ||
तिमिर भूमण्डल में छाई, चिबुक पर इन्द्र बज बाए |
तभी से हनुमत कहलाए, द्वय हनुमान नाम पाये |
उस अवसर में रुक गयो, पवन सर्व उन्चास |
इधर हो गयो अन्धकार, उत रुक्यो विश्व को श्वास |
भये ब्रह्मादिक बेहाला || कृपा कर || २ ||
देव सब आये तुम्हारे आगे, सकल मिल विनय करन लागे |
पवन कू भी लाए सागे, क्रोध सब पवन तना भागे |
सभी देवता वर दियो, अरज करी कर जोड़ |
सुनके सबकी अरज गरज, लखि दिया रवि को छोड़ |
हो गया जगमें उजियाला || कृपा कर || ३ ||
रहे सुग्रीव पास जाई, आ गये बनमें रघुराई |
हरिरावणसीतामाई, विकलफिरतेदोनों भाई |
विप्ररूप धरि राम को, कहा आप सब हाल |
कपि पति से करवाई मित्रता, मार दिया कपि बाल |
दुःख सुग्रीव तना टाला || कृपा कर || ४ ||
आज्ञा ले रघुपति की धाया, लंक में सिन्धु लाँघ आया |
हाल सीता का लख पाया, मुद्रिका दे बनफल खाया |
बन विध्वंस दशकंध सुत, वध कर लंक जलाया |
चूड़ामणि सन्देश त्रिया का, दिया राम को आय |
हुए खुश त्रिभुवन भूपाला || कृपा कर || ५ ||
जोड़ कपि दल रघुवर चाला, कटक हित सिन्धु बांध डाला |
युद्ध रच दीन्हा विकराला, कियो राक्षस कुल पैमाला |
लक्ष्मण को शक्ति लगी, लायौ गिरी उठाय |
देई संजीवन लखन जियाये, रघुवर हर्ष सवाय |
गरब सब रावन का गाला || कृपा कर || ६ ||
रची अहिरावन ने माया, सोवते राम लखन लाया |
बने वहाँ देवी की काया, करने को अपना चित चाया |
अहिरावन रावन हत्यौ, फेर हाथ को हाथ ||
मन्त्र विभीषण पाय आप को |हो गयो लंका नाथ |
खुल गया करमा का ताला || कृपा कर || ७ ||
अयोध्या राम राज्य कीना, आपको दास बना लीना |
अतुल बल घृत सिन्दूर दीना, लसत तन रूप रंग भीना |
चिरंजीव प्रभु ने कियो, जग में दियो पुजाय |
जो कोई निश्चय कर के ध्यावै, ताकी करो सहाय |
कष्ट सब भक्तन का टाला || कृपा कर || ८ ||
भक्तजन चरण कमल सेवे, जात आय सालासर देवे |
ध्वजा नारियल भोग देवे, मनोरथ सिद्धि कर लेवे |
कारज सारो भक्त के, सदा करो कल्यान |
विप्र निवासी लक्ष्मणगढ़ के बालकृष्ण धर ध्यान |
नाम की जपे सदा माला, कृपा कर सालासर || ९ ||
कोई टिप्पणी नहीं