कार्तिक पूर्णिमा 2020: देव दीपावली का पर्व भी कहते है|
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही माता तुलसी वनस्पति के रूप में पृथ्वी पर प्रगट हुई थीं। पुराणों में कार्तिक मास की महत्ता के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के महत्व को भी विस्तार से वर्णन किया गया है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस बार कार्तिक पूर्णिमा 29 और 30 नवंबर 2020 (रविवार, सोमवार) को है। 29 नवंबर को दोपहर 12:30 बजे पूर्णिमा तिथि शुरू होगी और 30 नवंबर को दोपहर 02:25 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा का व्रत करने वालों के लिए रविवार को पूर्णिमा होगी जबकि स्नान-दान करने वाले सोमवार को पूर्णिमा मनाएंगे।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिरों में दीपदान करना व दीपदर्शन करना बहुत ही शुभ होता है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दि भगवान के विष्णु के साथ गौरी-महादेव का पूजन किया जाता है। साल की 12 पूर्णिमाओं में से कार्तिक, माघ और वैशाख पूर्णिमा को विशेष ही पुण्यदायी माना गया है।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि-
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रात: गंगा स्नान या पास की नदी/जलाशय में स्नान करना चाहिए।
- घर के बाहर जाना संभव न हो तो घर में ही स्नान के बाद गंगाजल छिड़क सकते हैं।
- स्नान करने के बाद भगवान विष्णु, शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए।
- कार्तिक पूर्णिमा की शाम को मंदिरों दीपक जलाना चाहिए। साथ शिव मंदिर में जाकर शिव परिवार (शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी) का दर्शन करना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था त्रिपुरासुर का अंत
इस संदर्भ में एक कथा है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य के आतंक से तीनों लोक भयभीत थे। त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए, त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा।
सभी देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा जी से इस दैत्य के अंत का उपाय पूछा, ब्रह्मा जी ने देवताओं को त्रिपुरासुर के अंत का रास्ता बताया। देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे त्रिपुरासुर को मारने के लिए प्रार्थना की। तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का निर्णय लिया। महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई।
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