Shirdi Sai Baba ki Kahani - History of Sai Baba's Life
शिरडी के साई बाबा Shirdi Sai Baba(जन्म: 1835 , मृत्यु: 15 अक्टूबर 1918) जो एक आध्यात्मिक गुरु थे। उनके भक्त उन्हें अलग अलग नामों से पुकारते थे जैसे संत, फ़क़ीर और सतगुरु। उनके भक्त हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के थे जबकि वो स्वयं हिन्दू धर्म के थे। उनके सत्य नाम, जन्म, पता और माता पिता के बारे में कोई सूचना उपलब्द्ध नहीं है। जब उनसे उनके पूर्व जीवन के बारे में पूछा जाता था तो वे टाल-मटोल उत्तर दिया करते थे। साईं शब्द उन्हें भारत के पश्चिमी भाग में स्थित प्रांत महाराष्ट्र के शिरडी नामक कस्बे में पहुंचने के बाद ही प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने आप को एक सच्चे सद्गुरु को समर्पित कर दिया था, लोग उन्हें भगवान का अवतार ही समझते थे।
Shirdi Sai Baba: साईं बाबा का प्रारम्भिक जीवन:
साईं बाबा ने सच्चे सतगुरु या मुर्शिद की राह दिखाई और आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाया। उनके बारे में पहली जानकारी साईं सत्चरित्र किताब में शिरडी गाँव से प्राप्त होती है। साईं बाबा 16 वर्ष की उम्र में अहमदनगर जिले के शिरडी गाँव में आये थे। यहां पर उन्होंने एक नीम के पेड़ के नीचे आसन में बैठकर तपस्वी जीवन बिताना शुरू किया। जब गाँव वालो ने उन्हें देखा तो वो अचम्भे में पड गए क्योंकि इतने युवा व्यक्ति को इतनी कठोर तपस्या करते हुए उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। वो ध्यान में इतने अधिक लीन थे कि उनको सर्दी , गर्मी और बरसात का कोई एहसास ही नहीं हो रहा था।
दिन में उनके पास कोई नहीं होता था और रात को वो किसी से नहीं डरते थे |उनकी इस कठोर तपस्या से गाँववालो का ध्यान उनकी ओर खीचा चला गया और कई धार्मिक लोग नियमित रूप से उनको देखने आते थे। कुछ लोग उनको पागल कहकर उन पर पत्थर फेंकते थे। एक दिन साईं बाबा अचानक गाँव से चले गये और किसी को पता भी नहीं चला की वे खान गए। वे तीन वर्ष तक शिरडी में रहे और उसके बाद शिरडी से गायब हो गये। उसके बाद एक साल बाद वो फिर शिरडी लौटे और हमेशा के लिए वहीं बस गये।
Shirdi Sai Baba: साई बाबा का दुबारा लौटे शिरडी
1858 में साईं बाबा फिर से शिरडी लौट आये थे। इस बार उन्होंने कुछ अलग सी वेशभूषा अपनायी हुई थी जिसमे उन्होंने घुटनों तक एक कफनी बागा और एक कपड़े की टोपी पहनी हुई थी। उनके एक भक्त रामगिर बुआ ने बताया कि जब वो शिरडी आये तब उन्होंने खिलाड़ी की तरह कपड़े और कमर तक लम्बे बाल थे जिन्होंने उसे कभी नही कटवाए। उनके कपड़ो को देखकर वो सूफी संत लग रहे थे जिसे देखकर गाँव वालो ने उन्हें मुस्लिम फकीर समझा। इसी कारण एक हिन्दू गाँव होने के कारण उनका उचित सत्कार नहीं किया गया था। उनकी पोषाख से वे एक मुस्लिम फ़क़ीर लग रहे थे और लोग उन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों का गुरु मानते थे।
लगभग 5 वर्षो तक साई बाबा नीम के पेड़ के नीचे रहे और अक्सर लम्बे समय तक शिरडी के पास के जंगलो में घूमते रहते थे। लम्बे समय तक तपस्या करने के कारण साई किसी से ज्यादा बोलते नहीं थे। अंततः उन्होंने एक जर्जर मस्जिद को अपना घर बनाया और एकाकी जीवन बिताने लगे, वहाँ वे लोगो से भिक्षा मांगकर रहते थे और वहाँ उनसे मिलने रोज़ बहुत से हिन्दू और मुस्लिम भक्त आया करते थे। उस मस्जिद में उन्होंने एक धुनी जलाई जिससे निकली राख को उनसे मिलने वालो को देते थे। ऐसा माना जाता है कि उस राख में अद्भुत चिकत्सीय शक्ति थी।
संत के साथ-साथ वे एक स्थानिक हकीम की भूमिका भी निभाते थे और बीमार लोगो को अपनी धुनी से ठीक करते थे। साईबाबा अपने भक्तो को धार्मिक पाठ भी पढ़ाते थे, और हिन्दुओ को रामायण और भगवत गीता और मुस्लिमो को कुरान पढने के लिए कहते थे।
Shirdi Sai Baba
1910 के बाद साईबाबा की ख्याति मुंबई में फैलती चली गयी। इसके बाद बहुत से लोग उनके दर्शन करने आते गये क्योकि लोग उन्हें एक चमत्कारिक और शक्तिशाली अवतार मानने लगे थे । इसके बाद गाँव वालो ने उनका पहला मंदिर भिवपुरी, कर्जत में बनाया।
साईं बाबा ने “सबका मालिक एक ” का नारा दिया था जिससे हिन्दू और मुस्लिम लोगों में सदभाव बना रहे। उन्होंने अपने जीवन में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मो का अनुसरण किया। वो अक्सर कहा करते थे “मुझ पर विशवास करो , तुम्हारी प्रार्थना का उत्तर दिया जाएगा ”। वो हमेशा अपनी जुबान से “अल्लाह मालिक ” बोलते रहते थे।
साईं बाबा ने अपने पीछे ना कोई आध्यात्मिक वारिस छोड़ा और न ही कोई अनुयायी छोड़ा। इसके अलावा उन्होंने कई लोगो के अनुरोध के बावजूद किसी को दीक्षा दी। उनके कुछ अनुयायी अपने आध्यात्मिक पहचान की वजह से प्रसिद्ध हुए जिनमे सकोरी के उपासनी महाराज का नाम आता है। साईं बाबा की मृत्यु 15 अक्टूबर 1918 को शिरडी गाँव में ही हुयी। मृत्य के समय उनकी उम्र 83 वर्ष थी। साईं बाबा की मृत्यु के बाद उनके भक्त उपासनी महाराज को प्रतिदिन आरती सौपते थे जब भी वो शिरडी आते थे।
सांईंबाबा का अद्भुत चमत्कार और उनकी कृपा :
सांईंबाबा के बारे में कहा जाता है कि यदि उनके प्रति आप भक्ति की भावना से भरकर उनकी समाधि पर माथा टेकेंगे तो आपकी किसी भी प्रकार की समस्या हो, उसका तुरंत ही समाधान होगा। जब सांईंबाबा आपकी भक्ति को कबूल. कर लेते हैं, तो आपको इस बात की किसी न किसी रूप में सूचना भी दे देते हैं।
सांईंबाबा ने अपने जीवनकाल में कई ऐसे चमत्कार दिखाए जिससे कुछ लोगों ने उनको राम का अंश जाना तो कुछ ने श्याम का। सांईं के 11 वचनों के अनुसार वे आज भी अपने भक्तों की सेवा के लिए तुरंत ही उपलब्ध हो जाते है।पानी से दिया जलाना:
साईं बाबा को उनकी मस्जिद और दुसरे मन्दिरों में दिया जलाने का बहुत शौक था लेकिन तेल के लिए उनको वहां के बनियों पर आश्रित रहना पड़ता था। वो रोज शाम को दिया जलाते और बनियों से दान ले जाते। बनिये साईं बाबा को मुफ्त का तेल देकर थक गये थे और एक दिन उन्होंने साईं बाबा से माफी मांगते हुए तेल देने से मना कर दिया और कहा कि उनके पास तेल नहीं बचा है। बिना किसी विरोध के साईं बाबा वापस अपने मस्जिद में लौट गये। अब उन मिटटी के दीयों में उन्होंने पानी भरा और बाती जला दी। वो दिया मध्यरात्री तक जलता रहा। जब इसकी सूचना बनियों तक पहुंची तो वे साईं बाबा के पास विपुल क्षमायाचना के लिए पहुंचे। साईं बाबा ने उन्हें क्षमा कर दिया और कहा कि दुबारा झूठ मत बोलना। इस तरह साईं बाबा ने अपना चमत्कार दिखाते हुए पानी से दिया जला दिया।
बारिश रोकना:
एक बार राय बहादुर नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ साईं बाबा के दर्शन के लिए शिरडी आया। जैसे ही वो पत्नी बाबा के दर्शन करके वापस जाने लगे ,मूसलाधार बारिश शुरु हो गयी। जोरो से बिजलियाँ कडकने लगी और तूफ़ान चलने लगा। साईं बाबा ने प्रार्थना की “हे अल्लाह , बारिश को रोक दो , मेरे बच्चे घर जा रहे है उन्हें शांति से घर जाने दो ”। उसके बाद बारिश बंद हो गयी और वो पति-पत्नी सकुशल अपने घर पहुंच गये।
डूबती बच्ची को बचाना:
एक बार बाबु नामक व्यक्ति की तीन साल की बच्ची कुंवे में गिर गयी और वह डूब रही थी। जब गाँव वाले कुएं के पास दौड़े उन्होंने देखा बच्ची हवा में लटक रही थी जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे पकड़ रखा हो और उसे उपर तक खीच लिया।साईं बाबा को वो बच्ची बहुत प्यारी थी जो अक्सर कहा करती थी “मै बाबा की बहन हूँ ”। इस घटना के बाद गाँव वालो ने कहा “ये सब बाबा की लीला है “। इसके अलावा इस चमत्कार का ओर कोई स्पष्टीकरण नहीं हुआ था।साईं बाबा का आखरी दिन:
साईं बाबा बहुत कमजोर हो गये थे। रोज की तरह भक्त उनके दर्शन के लिए आ रहे थे। साईं बाबा उन्हें प्रसाद और उड़ी दे रहे थे भक्त बाबा से ज्ञान भी प्राप्त कर रहे थे पर किसी भक्त ने नही सोचा की आज बाबा के शरीर का अंतिम दिन होगा। सुबह की 11 बज गए थे। दोपहर की आरती का समय हो गया था और उसकी तैयारियां चल रही थी कोई देविक प्रकाश बाबा के शरीर में समां गया। आरती शुरू हुई और बाबा साईं का चेहरा हर बार बदलता हुआ प्रतीत हुआ। बाबा ने पल पल में सभी देवी देवताओ के रूप के दर्शन अपने भक्तो को कराये वे राम शिव कृष्णा वितल मारुती मक्का मदीना जीसस क्राइस्ट के रूप दिखे आरती पूर्ण हुई। बाबा साईं ने अपने भक्तो को कहा की अब आप मुझे अकेला छोड़ दे।सभी वहा से चले गये साईं बाबा के तब एक जानलेवा खांसी चालू हो गयी और खून की उलटी हुई। तात्या बाबा का एक भक्त तो मरण के करीब था वो अब ठीक हो गया उसे पता भी न चला की वो किस चमत्कार से ठीक हुआ है वह बाबा को धन्यवाद देने बाबा के निवास आने लगा पर बाबा का सांसारिक शरीर तो येही रह गया था। साईं बाबा ने कहा था की मरने का बाद उनके शरीर को बुट्टी वाडा में रख दिया जाए वो अपनेभक्तों की हमेशा सहयता करते रहेगें।
Shirdi Sai Baba: साईं बाबा के भक्त और मन्दिर:
शिरडी साईं बाबा आंदोलन 19वी सदी में शुरू हुआ जब वो शिरडी रहते थे। एक स्थानीय खंडोबा पुजारी म्हाल्सप्ति उनका पहला भक्त था। 19 वी सदी तक साईं बाबा के अनुयायी केवल शिरडी और आस पास के गाँवों तक ही सिमित थे। साईं बाबा का पहला मन्दिर भिवपुरी में स्तिथ है। शिरडी साईं बाबा के मंदिर में प्रतिदिन 2000 श्रुधालू आते है और त्योहारों के दिनों में ये संख्या एक लाख तक पहुच जाती है। शिरडी साईं बाबा को विशेषत : महराष्ट्र , उडीसा . आंध्रप्रदेश , कर्नाटक , तमिलनाडु और गुजरात में पूजा जाता है शिरडी साईं बाबा के भक्त पुरे विश्व में फैले हुए है।
Sai Baba ke Chamktari kahaniya kewal aap ke liye... Sai aapne bhakto par kirpa banaye rakhe. Jai Sai Ram, Om Sai Ram, Shridi ke Sai kripa kare
जवाब देंहटाएंAn empty stomach paves no way of learning new things in life. And it is in schools that children learn the in and outs of life apart from the academic syllabus.
जवाब देंहटाएंmadhusudan naidu
madhusudan naidu muddenahalli
It is good to see people working hard to create smiles on the faces of needy people.
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Learning is an ever-evolving process. Each and every instance shapes our life in one way or the other.
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Swami established schools with the divine motive of enhancing the learning of students in terms of mutual respect and cooperation.
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The schools established with the blessings of Bhagwan Sri Sathya Sai Baba provides education to rural children absolutely free of cost. You should take a glance at our other initiatives as well.
जवाब देंहटाएंmadhusudan naidu
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Many schools have been established under the enlightenment of Swami to help children understand human values along with attaining academic excellence.
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