कालाष्टमी व्रत पूजा विधि- Kalashtami Vrat Vidhi - Kaal Bhairav Puja Vidhi
इस व्रत वाले दिन भगवान भैरव जी को जल का अर्घ्य देकर पूजा करे। मान्यताओ के अनुसार काल भैरव की पूजा करने से भूत-प्रेत की सभी बाधाऐ, तंत्र-मंत्र, जादू-टोने,आदि का प्रभाव खत्म होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दे काल भैरव का पूजन वाम मार्गी समुदाय के लोग तांत्रिक विधि से करते है। क्योकि उनका यह कुल देवता माना गया है।
मान्यताओ के अनुसार काल भैरव की पूजा प्रदोष काल में या फिर रात्रि के समय करना चाहिए। इस समय पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। पूजा के दौरान षोए़शोपचार विधि अपनानी चाहिए, तथा भैरव चालीसा का पाठन करना चाहिए। और रात्रि के समय जागरण करके भवगान शिवजी व माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए। काल भैरव जंयती वाले दिन रविवार या फिर मंगलवार होता है।
कालाष्टमी व्रत का महत्व- Importance of Kaal Bhairav
शिव पुराण के अनुसार इस दिन भगवान शिवजी ने रूद्र रूप धारण करके काल भैरव रूप का अवतार लिया था। जिस कारण इस अष्टमी को काल भैरव अष्टमी या कालाष्टमी कहा जाता है। और अष्टमी तिथि को कालभैरव का रूप धारण करने से हर महिने कृष्णपक्ष की अष्टमी को यह व्रत किया जाता है। भैरवजी की सवारी कुत्ता है इसी कारण इस व्रत वाले दिन काले कुत्ते की पूजा भी करते है। साथ ही जिन लोगो पर बुध व राहु से का दोष है उनको कालाष्टमी का व्रत जरूर रखना चाहिए। क्योंकि यह व्रत राहु व बुध दोष से मुक्त करता है कई स्थानों पर कालाष्टमी वाले दिन कालभैरव जयंती भी मनाई जाती है।
साथियों देवाधिदेव (देवो के देवता) महादेव भगवान शिव शंकर जी के पांचवे अवतार कालभैरव जी है जो आज भी काशी के कोतवाल कहे जाते है इनकी पूजा- अर्चना आदि करने से सभी भय दुख, दर्द दूर हो जाते है।
कालाष्टमी व्रत कथा (Kalashtami Vrat Katha in Hindi)
Kalashtami Vrat Katha in Hindi
एक बार ब्रह्मा तथा विष्णुजी और शिवजी में यह विवाद छिड़ गया की विश्व का धारण हार तथा परम तत्त्व कौन है। इस विवाद का हल निकाले के लिए वो तीनो त्रिदेव महषियों व देवताओ को बुलाया और उनके सामने यह बात रखी। की हम तीनो में से परम तत्त्व कौन है। उनकी बात सुनकर महर्षियो व देवताओ ने निर्णय लिया और कहा की परम तत्त्व कोई अव्यक्त सत्ता नही है। और तुम तीनो तो उसी विभूति से बने हुऐ हो, अत: तुम तो त्रिदेव हो। भगवान विष्णुजी तो ऋषियों की बात मान ली परन्तु ब्रह्माजी ने यह स्वीकार नहीं किया। वे अपने को ही परमतत्त्व मानते रहे।
ब्रह्माजी को इस तरह परमतत्त्व की अवज्ञा करते देख भगवान शिवजी ने क्रोंध में आकर भैरव का रूप धारण कर लिया। शिवजी के इस रूप को देखकर ब्रह्माजी का गर्व चूर-चूर हो गया । जिस दिन शिवजी ने रूद्र रूप धारण किया था उस दिन मार्गशीर्ष की दशमी अष्टमी थी। जो इसी कारण इसे कालाष्टमी में के नाम से जाना गया है।
काल भैरव जयंती वाले दिन ऐ कार्य नही करे
- इस दिन किसी भी व्यक्ति को झूठ नही बोलना चाहिए। और ना ही किसी के साथ धोख करे, क्योकि ऐसा करने से सिर्फ आपको ही हानि होगी।
- इस दिन सभी परिवार के सदस्य काल भैरव जी की तामसिक पूजा करे, तथा बटुक भैरव की पूजा करे क्योकि यह सौम्य रूप होता है।
- काल भैरव जयंती वाले दिन किसी भी पशु या पक्षी के साथ दुर्वव्हार ना करे।
काल भैरव जयंती वाले दिन क्या कार्य करे
- इस जयंती वाले दिन काल भैरव की मूर्ति के आगे सरसों के तेल का दीपक जलाकर रखना चाहिए। तथा काले तिल, उड़द व सरसों का तेल अर्पित करे। यदि आप ऐसा करते है तो काल भैरव जी आप पर प्रसन्न होते है।
- इसके अलावा बिलपत्र के पत्तो पर लाल या सफेद चंदन से उँ नम: शिवाय लिखकर भगवान शिवजी को अर्पित करे। ध्यान रहे बिलपत्र के पत्तो का मुख पूर्व व उत्तर दिश की और होना चाहिए। ऐसा करने से काल भैरव आप पर प्रसन्न होगे क्योकि वो भगवान शिव का ही एक अवतार है।
- इस दिन काले कु्त्ते को भोजन कराऐ क्योकि काला कुत्त काल भैरव का वाहन है।
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