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     मकर संक्रांति 2023 कब हैं, महत्व, शुभ मुहूर्त और कथा | Makar Sankranti 2023 Date

    मकर संक्रांति को हिंदू कैलेंडर में सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है और इसका बड़ा धार्मिक महत्व है। यह महीने के अंत को शीतकालीन संक्रांति और लंबे दिनों की शुरुआत के साथ चिह्नित करता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन, सूर्य अपनी उत्तर दिशा की यात्रा शुरू करता है, जिसे उत्तरायण के रूप में जाना जाता है, और इसे आध्यात्मिक जागृति का समय माना जाता है।

    मकर संक्रांति 2023 कब हैं, महत्व, शुभ मुहूर्त और कथा- Makar Sankranti 2023 Date and Timing

    यह त्योहार भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र में, लोग गंगा, यमुना और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं और सूर्य देवता की पूजा करते हैं। आंध्र प्रदेश में पोंगल चावल और गुड़ से बने मीठे व्यंजन बनाकर मनाया जाता है और इसे संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। पंजाब में, लोहड़ी अलाव जलाकर और लोक गीत गाकर मनाई जाती है।

    मकर संक्रांति भी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है क्योंकि यह फसल के मौसम के अंत का प्रतीक है और एक भरपूर फसल के लिए जश्न मनाने और धन्यवाद देने का समय है। भारत के कई हिस्सों में, लोग अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं, और खुशी और खुशी के प्रतीक के रूप में पतंग उड़ाते हैं।


    मकर संक्रांति का क्या है महत्व जानें: Importance of Makar Sankranti

    मकर संक्रांति का हिन्दू त्योहारों में बड़ा ही महत्व है इस दिन सभी हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग पवित्र गंगा नदी में स्नान आदि कर सूर्य भगवान की पूजा करते हैं। माना जाता है की मकर संक्रांति के दिन गंगा जी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूजा करने के बाद अन्न, गुड़, तिल से बने प्रसाद का भोग लगाकर अन्न, वस्त्र आदि का दान किया जाता है। लोगों की मान्यता है की सूर्य भगवान की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।

    मकर संक्रांति 2023 शुभ मुहूर्त:- Makar Sankranti Date and Timing

    ज्योतिषचार्यों के अनुसार वर्ष 2023 में मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जायेगा।

    ज्योतिष काल गणना के अनुसार मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 7 बजकर 15 मिनट से शुरू होकर शाम के 7 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। आप इस पुण्य काल स्नान, पूजा, दान आदि कार्य कर सकते हैं।

    ज्योतिष मानते हैं की वर्ष 2023 में 14 जनवरी के दिन एक ख़ास संयोग बन रहा है। हिन्दू धर्म के पांचांग की काल गणना के अनुसार भगवान सूर्य देवता मकर राशि में प्रवेश करेंगे और एक ख़ास स्थिति के कारण बुध और शनि ग्रह पहले से ही मकर राशि में प्रवेश कर चुके हैं। जिस कारण मकर राशि वाले जातकों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ सकता है।

    Makar Sankranti History and Story (पौराणिक कथा):

    मकर संक्रांति की पौराणिक कथा: आपको बताते चलें की मकर संक्रांति के संबंध में एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। यह कथा कुछ इस प्रकार से है। मान्यता है की प्राचीन समय में सगर नाम के प्रतापी राजा थे जिनको हम भगीरथ के नाम से भी जानते हैं जो अपने परोपकार और पुण्य कर्मों के कारण तीनों लोकों के साथ चारों दिशाओं में काफी प्रसिद्ध थे। राजा सगर की इतनी प्रसिद्धि को देखते हुए देवताओं के राजा इंद्र को यह चिंता होने लगी की कहीं राजा सगर स्वर्ग पर अपना अधिकार न जमा लें और स्वर्ग के राजा ना बन जाएँ।

    जब इंद्र इन्हीं सब चिंताओं में डूबे हुए थे तो तब राजा सगर ने अपने राज्य में एक अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ में कई देशों के राजा शामिल हुए। राजा सगर ने यज्ञ में इंद्र को भी आमंत्रित किया। जब यज्ञ की पूजा समाप्त हुई और घोड़े को छोड़ा गया तो देवताओं के राजा इंद्र ने घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। जब राजा सगर को इस बात की सुचना हुई तो उन्होंने अपने सभी साठ हजार पुत्रों को घोड़े की खोज के लिए भेज दिए।


    अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को खोजते हुए जब राजा सगर के सभी पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने देखा की उनके द्वारा अश्वमेघ यज्ञ की पूजा के छोड़ा गया घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ है। यह सब देख राजा सगर ने पुत्रों ने कपिल मुनि पर घोड़ा चोरी करने का आरोप लगा दिया। अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों के कारण कपिल मुनि बहुत ही क्रोधित हो गए और अपनी तपशक्ति से श्राप देकर राजा के पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया।

    जब इस घटना के बारे राजा सगर को पता चला तो वह तुरंत ही भागकर कपिल मुनि के आश्रम पर पहुंचे। आश्रम पहुंचकर राजा सगर ने कपिल मुनि से अपने पुत्रों को जीवनदान देने की प्रार्थना करने लगे। लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ। बहुत बार निवेदन करने पर कपिल मुनि ने कहा की हे राजन आपके सभी पुत्रों के मोक्ष का एक ही रास्ता है की आप स्वर्ग में बहने वाली मोक्षदायिनी मां गंगा (Ganga) को स्वर्ग से धरती पर ले आएं। यह सुनकर राजा सगर के पोते अंशुमन ने यह प्रण लिया की जब मोक्षदायिनी मां गंगा को पृथ्वी पर नहीं लाते वह और उनके वंश का कोई भी राजा शान्ति से नहीं बैठेगा। गंगा को धरती पर उतारने के लिए राजकुमार अंशुमान कड़ी तपस्या करने लगे। लेकिन राजकुमार अंशुमन की मृत्यु के बाद राजा सगर (भगीरथ) को कड़ी तपस्या करनी पड़ी।


    अपने कठिन तप से राजा सगर (भगीरथ) ने मां गंगा को प्रसन्न कर दिया। लेकिन मां गंगा का वेग बहुत ज्यादा था। यदि मां गंगा अपने इस वेग से पृथ्वी पर उतरती तो पृथ्वी पर सब सर्वनाश हो जाता। गंगा के वेग को रोकने के लिए राजा भगीरथ अपने कठिन तप से भगवान शिव को प्रसन्न किया और भगवान शिव से गंगा के वेग को रोकने हेतु सहायता माँगी। भगीरथ से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया। जिससे गंगा का वेग कम हो गया और गंगा सामान्य रूप में पृथ्वी पर अवतरित हो गई।

    गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने के कारण ही भगवान शिव गंगाधर कहलाये। जब राजा भगीरथ मां गंगा को कपिल मुनि के आश्रम में लेकर आये तो कपिल मुनि ने राजा के सभी 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया। मान्यता है की जिस दिन राजा सागर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ उस दिन मकर संक्रांति का त्योहार था।




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