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     Durga Mantra (दुर्गा मंत्र)

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    Durga (दुर्गा) देवी का प्रमुख रूप है, जिसे हिंदू धर्म में देवी और शक्ति के रूप में भी जाना जाता है। दुर्गा का अर्थ है "दुर्गम" या "अजेय"। उन्हें देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और देवी काली के संयुक्त रूप माना जाता है। दुर्गा मंत्र सबसे प्रभावी और गुप्त मंत्र माना जाता है और सभी उपयुक्त इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति रखता है।

    यहां आप मां दुर्गा के कई मंत्र पा सकते हैं।

    सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

    सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥

     भावार्थ :

    मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

    सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥

     भावार्थ :

    हे सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

    जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि । जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! तुम्हें मेरा नमस्कार हो । देवी चामुण्डे ! तुम्हारी जय हो । सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरनेवाली देवी ! तुम्हारी जय हो । सबमें व्याप्त रहनेवाली देवी ! तुम्हारी जय हो । कालरात्रि ! तुम्हें नमस्कार हो ॥

    देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

     भावार्थ :

    हे देवी मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

    शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    शरण में आये हुए दिनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी ! तुम्हें नमस्कार है ।

    महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः । रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

     भावार्थ :

    महिषासुर का नाश करनेवाली तथा भत्तों को सुख देने वाली देवि ! तुम्हें नमस्कार है । तुम रूप दो, यश दो और काम- क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।

    दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि । दारिद्र्य दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता ॥

     भावार्थ :

    हे माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याण मयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सब का उपकार करने के लिये सदा मचलता रहता हो।

    या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में बुद्धिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    दुर्गा (दुर्गा) देवी का प्रमुख रूप है, जिसे हिंदू धर्म में देवी और शक्ति के रूप में भी जाना जाता है। दुर्गा का अर्थ है "दुर्गम" या "अजेय"। उन्हें देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और देवी काली के संयुक्त रूप माना जाता है। दुर्गा मंत्र सबसे प्रभावी और गुप्त मंत्र माना जाता है और सभी उपयुक्त इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति रखता है।

    यहां आप मां दुर्गा के कई मंत्र पा सकते हैं।

    या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में लज्जा रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में शान्ति रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धा रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

    भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में दया रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    दुर्गा (दुर्गा) देवी का प्रमुख रूप है, जिसे हिंदू धर्म में देवी और शक्ति के रूप में भी जाना जाता है। दुर्गा का अर्थ है "दुर्गम" या "अजेय"। उन्हें देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और देवी काली के संयुक्त रूप माना जाता है। दुर्गा मंत्र सबसे प्रभावी और गुप्त मंत्र माना जाता है और सभी उपयुक्त इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति रखता है।

    यहां आप मां दुर्गा के कई मंत्र पा सकते हैं।

    या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

     भावार्थ :

    जो देवी सब प्राणियों में माता रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

    इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या । भूतेषु सततं तस्यै व्याप्त्यै देव्यै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    जो जीवोंके इंद्रियवर्ग की अधिष्ठात्री देवी एवं सब प्राणियों में सदा व्याप्त रहनेवाली हैं, उन व्याप्तिदेवीको बारंबार नमस्कार है ।

    सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि । गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो । नारायणि! तुम्हे नमस्कार है ।

    चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत् । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    जो देवी चैतन्य रूप से इस सम्पूर्ण जगत को व्याप्त करके स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार ।

    देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥

     भावार्थ :

    शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवि! हम पर प्रसन्न हो होओ । सम्पूर्ण जगत की माता ! प्रसन्न होओ । विश्वेश्वरि ! विश्व की रक्षा करो । देवी ! तुम्हीं चराचर जगत की अधीश्वरी हो ।

    सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    सर्वस्वरूपा, सर्वश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गा देवी ! सब भयों से हमारी रक्षा कृ ; तुम्हे नमस्कार है ।

    र्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते । स्वर्गापवर्गदे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    बुद्धि रूप से सब लोगों में विराजमान रहनेवाली तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवी ! आपको नमस्कार है ।

    कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनि । विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    कला, काष्ठ आदि के रूप से क्रमशः परिणाम की ओर ले जाने वाली तथा विश्व का उपसंहार करने में समर्थ नारायणि ! आपको नमस्कार है ।

    शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे । प्रसीद वैष्णवीरुपे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    शंख, चक्र गदा और शार्ङ्गधनुषरूप उत्तम आयुधों को धारण करने वाली वैष्णवी शक्तिरूपा नारायणि ! आप प्रसन्न होओ । आपको नमस्कार है ।

    लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टीस्वधे ध्रुवे । महारात्रि महाऽविद्ये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    लक्ष्मी, लज्जा, महाविद्या, श्रद्धा, पुष्टि, स्वधा, ध्रुवा, महारात्रि तथा महा अविद्यारूपा नारायणि ! आपको नमस्कार है ।

    नमस्ते परमेशानि ब्रह्यरूपे सनातनी । सुरासुरजगद्वन्द्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    ब्रह्यरूपा सनातनी परमेश्वरी ! आपको नमस्कार है । देवताओं, असुरों और सम्पूर्ण विश्व द्धारा वन्दित कामेश्वरी ! आपको नमस्कार है ।

    रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः । ज्योत्स्नायै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥

     भावार्थ :

    रौद्रा को नमस्कार है । नित्या, गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है । ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है ।

    कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुर्मो नमो नमः । नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    शरणागतों का कल्याण करनेवाली वृद्धि एवं सिद्धि रूपा देवी को हम बारंबार नमस्कार करते हैं । नैर्ऋती राजाओं की लक्ष्मी तथा शर्वाणि-स्वरूपा आप जगदम्बा को बार-बार नमस्कार है ।

    दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥

     भावार्थ :

    दुर्गा, दुर्गपारा, सारा, सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा और धूम्रा देवी को सर्वदा नमस्कार है ।

    सर्वाधिष्ठानरूपायै कूटस्थायै नमो नमः । अर्धमात्रार्थभूतायै हृल्लेखायै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    समस्त संसार की एकमात्र अधिष्ठात्री तथा कूटस्थरूपा देवी को बार-बार नमस्कार है । ब्रह्मानन्दमयी अर्धमात्रात्मिका एवं हृल्लेखारूपिणी देवी को बार-बार नमस्कार है ।

    नमो देव्यै प्रकृत्यै च विधात्र्यै सततं नमः । कल्याण्यै कामदायै च वृद्धयै सिद्धयै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    प्रकृति एवं विधात्री देवी को मेरा निरन्तर नमस्कार है । कल्याणी, कामदा, वृद्धि तथा सिद्धि देवी को बार-बार नमस्कार है ।

    सच्चिदानन्दरूपिण्यै संसारारणये नमः । पञ्चकृत्यविधात्र्यै ते भुवनेश्यै नमो नमः ॥

     भावार्थ :

    सच्चिदानन्दरूपिणी तथा संसार की योनिस्वरूपा देवी को नमस्कार है । आप पंचकृत्यविधात्री तथा श्रीभुवनेश्वरी को बार-बार नमस्कार है ।

    नमो देवी महाविद्ये नमामि चरणौ तव । सदा ज्ञानप्रकाशं में देहि सर्वार्थदे शिवे ॥

     भावार्थ :

    हे देवी ! आपको नमस्कार है । हे महाविद्ये ! मैं आपके चरणों में बार-बार नमन करता हूँ । हे सर्वार्थदायिनी शिवे ! आप मुझे सदा ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान कीजिये ।

    बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे । मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

     भावार्थ :

    हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढता का नाश करें । आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

    जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला । मूढ़ता हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

     भावार्थ :

    आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं । हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

    सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते । सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ॥

     भावार्थ :

    सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है । हे सृष्टिस्वरूपिणि आपको नमस्कार है । आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

    घोररुपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि । भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ॥

     भावार्थ :

    भयानक रूपवाली, घोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली है देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें ।

    नमो देवी महाविद्ये नमामि चरणौ तव । सदा ज्ञानप्रकाशं में देहि सर्वार्थदे शिवे ॥

     भावार्थ :

    हे देवि ! आपको नमस्कार है । हे महाविद्ये ! में आपके चरणों में बार-बार नमन करता हूँ । सर्वार्थदायिनी शिवे ! आप मुझे सदा ज्ञानरूपी प्रकाश प्रदान कीजिये ।

    विद्या त्वमेव ननु बुद्धिमतां नराणां शक्तिस्त्वमेव किल शक्तिमतां सदैव । त्वं कीर्तिकान्तिकमलामलतुष्टिरूपा मुक्तिप्रदा विरतिरेव मनुष्यलोके ॥

     भावार्थ :

    आप निश्चय ही सदा से बुद्धिमान् पुरुषों की विद्या तथा शक्तिशाली पुरुषों की शक्ति हैं । आप कीर्ति, कान्ति, लक्ष्मी तथा निर्मल तुष्टिस्वरूपा हैं और इस मनुष्य लोक में आप ही मोक्ष प्रदान करने वाली विरक्तिस्वरूपा हैं ।

    दुर्गा (दुर्गा) देवी का प्रमुख रूप है, जिसे हिंदू धर्म में देवी और शक्ति के रूप में भी जाना जाता है। दुर्गा का अर्थ है "दुर्गम" या "अजेय"। उन्हें देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और देवी काली के संयुक्त रूप माना जाता है। दुर्गा मंत्र सबसे प्रभावी और गुप्त मंत्र माना जाता है और सभी उपयुक्त इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति रखता है।

    यहां आप मां दुर्गा के कई मंत्र पा सकते हैं।

    न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता | न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    हे भवानी ! पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, सेवक, स्वामी, पत्नी, विद्या, और मन - इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे देवी ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

    भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः | कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    मैं अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ, महान् दु:खोंसे भयभीत हूँ, कामी, लोभी मतवाला तथा संसार के घृणित बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानी ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

    न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् | न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    हे भवानी ! मैं न दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है, तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

    न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् | न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मात गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    न मैं पुण्य जानता हूँ न तीर्थ, न मुक्ति का पता है न लयका । हे मातः ! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है , हे भवानी ! अब केवल तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

    कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धि: कुदासः कुलाचारहीन: कदाचारलीन: | कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहनेवाला, दुर्बुद्धि, दुष्टदास, कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखनेवाले और सदा दुर्वचन बोलनेवाले हूँ, हे भवानी ! मुझ अधमकी अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

    प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् | न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्रा सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य किसी भी देवता को नहीं जानता, हे शरण देनेवाली भवानी ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

    जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥

     भावार्थ :

    जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा - इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! आपको नमस्कार है ।

    निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डिनीम् ।​ ​वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

     भावार्थ :

    शुम्भ तथा निशुम्भ का संहार करनेवाली, चण्ड तथा मुण्ड का विनाश करनेवाली, वन में तथा युद्धस्थल में पराक्रम प्रदर्शित करनेवाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ ।

    विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।​अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    हे शरण्ये ! तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओं के माध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानी ! अब केवल तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

    अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महक्षीणदीन: सदा जाड्यवक्त्रः ।​विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्ट: सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

     भावार्थ :

    हे भवानी ! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त और नष्टप्राय हूँ अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

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