अक्षय तृतीया और बांके बिहारी जी के चरण दर्शन: एक दिव्य परंपरा
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में अक्षय तृतीया एक अत्यंत पावन और शुभ तिथि मानी जाती है। यह दिन न केवल नए कार्यों की शुरुआत के लिए उपयुक्त होता है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसका गहरा महत्व है। खासकर वृंदावन में स्थित बांके बिहारी जी मंदिर में इस दिन एक अद्वितीय और दुर्लभ परंपरा निभाई जाती है — भगवान के चरणों के दर्शन।
साल में केवल एक बार दर्शन
बांके बिहारी जी के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए विशेष होता है क्योंकि पूरे वर्ष में केवल अक्षय तृतीया के दिन ही ठाकुर जी के चरण दर्शन होते हैं। सामान्य दिनों में भगवान के चरण वस्त्रों से ढके रहते हैं, जिससे केवल उनका मुखमंडल ही दर्शन के लिए खुला रहता है। लेकिन अक्षय तृतीया पर यह विशिष्ट कृपा प्राप्त होती है कि भक्त भगवान श्रीकृष्ण के पूर्ण विग्रह के दर्शन कर पाते हैं।
स्वामी हरिदास जी और चरण दर्शन की परंपरा
इस परंपरा की जड़ें स्वामी हरिदास जी के जीवन से जुड़ी हुई हैं। स्वामी जी, जो महान संत और संगीतज्ञ थे, भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त माने जाते हैं। यह माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं श्रीकृष्ण और राधा रानी उनके समक्ष बांके बिहारी रूप में प्रकट हुए थे।
कहते हैं कि जब स्वामी हरिदास जी भगवान की सेवा में लीन होते थे, तो भगवान के चरणों से स्वर्ण मुद्राएँ प्रकट होती थीं। ये मुद्राएँ किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि भगवान की सेवा और भोग के लिए प्रयुक्त होती थीं। यही कारण है कि भगवान के चरण विशेष रूप से पूज्य माने जाते हैं और केवल अक्षय तृतीया के दिन ही उन्हें दर्शनार्थ खोला जाता है।
चरणों के दर्शन का आध्यात्मिक महत्व
सनातन धर्म में चरण दर्शन को अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। भगवान के चरणों में शरणागति का भाव समाया होता है। कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे हृदय से अक्षय तृतीया पर बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन करता है, उसकी समस्त इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
वृंदावन की अलौकिक अनुभूति
इस विशेष दिन वृंदावन का वातावरण अत्यंत भक्तिमय और उल्लासपूर्ण होता है। मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। फूलों की वर्षा, मधुर कीर्तन, और घंटियों की ध्वनि से पूरा परिसर गूंज उठता है। यह अनुभूति भक्तों के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है।
निष्कर्ष
अक्षय तृतीया पर बांके बिहारी जी के चरण दर्शन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक मिलन का अवसर है। यह दिन हमें भक्ति, श्रद्धा और सेवा के वास्तविक अर्थ से परिचित कराता है। स्वामी हरिदास जी की भक्ति और भगवान की कृपा का यह अनूठा संगम हमें यह सिखाता है कि जब भक्ति सच्ची हो, तो भगवान स्वयं प्रकट होकर कृपा करते हैं।
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