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     मंत्रो की शक्ति 

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    मंत्र क्या है ? 

    आमतौर पर लोग मंत्रो को मात्र कुछ शब्दों की तरह देखते हैं परन्तु वो यह नहीं जानते की इन मन्त्रों की तरंगों में बहुत ताकत होती है। यह कुछ ऐसे-वैसे शब्द नहीं हैं। इन्हे हमारे ऋषि-मुनियों ने सालों की ध्यान साधना द्वारा प्राप्त किया है। मन्त्रों के श्रवण मात्र से हमारी चेतना जाग उठती है- यह महिमा है मन्त्रों की। ये मन्त्र अंतर्ज्ञान के स्तर से आये हैं, शुद्ध चेतना से आये हैं। देखिये, यदि आप बैठ कर सोचेंगे और फिर कुछ करेंगे, और कुछ शब्दों को जोड़कर उन्हें अर्थ देंगे, तो वो एक अलग बात हो जाती है। लेकिन, ऐसा कुछ जो आपके अंदर से आता है, जैसे कोई कविता, जैसे अंतर्ज्ञान, तब उसका विस्तार हो सकता है और आने वाली पीढ़ियों में उसे और अधिक जाना जा सकता है। और जब जब आप उसका विश्लेषण करेंगे, तो कोई न कोई नया अर्थ सामने आएगा और इन्ही को मन्त्र कहते हैं।

    मंत्रो के लाभ ?  Benefits of mantras

    ‘मननत त्रायते इति मन्त्रः’ - जब आप इस पर मनन करते हैं, तो आपकी ऊर्जा बढ़ती है। ऐसा कहा गया है-मन्त्रों के अर्थ ज़रूर होते हैं, लेकिन इनका अर्थ केवल हिमशिला के कोने जैसा है। अर्थ इतना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, जितना इन मन्त्रों की तरंगों को महसूस करना है।

    ब्रह्माण्ड में हर वस्तु दूसरी किसी भी वस्तु को अपनी और आकर्षित करती है। जब आप मंत्रोचारण या हवन करते हैं तों उसका वातावरण पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मन्त्रों के उच्चारण द्वारा वातावरण में सकारात्मक तरंगे फैलती है और उनका श्रवण करने से मन शांत होता है। जब हम गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं, तोह उसे प्रेम से जपिय, डर से नहीं| मंत्र जाप से देवी-देवताओं की कृपा मिलती है और सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं। स्त्री हो या पुरुष आप भी रोज बोलें ये एक मंत्र, बढ़ सकता है| 



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    ॐ मंत्र का महत्व 

    मनुष्य के शरीर में मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है। मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है। मन्त्र का जाप एक मानसिक क्रिया है। कहा जाता है कि जैसा रहेगा मन वैसा रहेगा तन। यानि यदि हम मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तो हमारा शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा। मन को स्वस्थ्य रखने के लिए मन्त्र का जाप करना आवश्यक है। ओम्(OM) तीन अक्षरों से बना है। अ, उ और म से निर्मित यह शब्द सर्व शक्तिमान है। जीवन जीने की शक्ति और संसार की चुनौतियों का सामना करने का साहस देने वाले ओम् के उच्चारण करने मात्र से विभिन्न प्रकार की समस्याओं व व्याधियों का नाश होता है। 

    कम से कम 108 बार ओम् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव रहित हो जाता है। कुछ ही दिनों पश्चात शरीर में एक नई उर्जा का संचरण होने लगता है। यदि आपको घबराहट व बैचेनी बनी रहती है तो आप प्रातःकाल ओम् का उच्चारण करने चमत्कारिक लाभ पायेंगे। ह्रदय रोगियों के लिए ओम् का उच्चारण करना अतयन्त फायदेमन्द है। 
    • ओम् के उच्चारण करने से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकल जाते है और मन तनाव रहित हो जाता है। यह ह्रदय और रक्त के प्रवाह को सन्तुलित रखता है। ओम् का उच्चारण करने से पाचन शक्ति सुदृढ़ बनी रहती है।
    • ओम् का उच्चारण करने से नींद न आने की समस्या शीघ्र ही दूर हो जाती है। मानसिक रूप से विकृत लोग ओम् का उच्चारण अवश्य करें।
    • ब्लड प्रेशर व शुगर रोगी यदि नियमित रूप से प्रातःकाल कम से कम 108 बार ओम् का उच्चारण करें तो उनका रोग नियन्त्रण में रहेगा।
    • ओम् का उच्चारण करने से प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल और नियन्त्रण स्थापित होता है। जिसके कारण हमें प्राकृतिक उर्जा मिलती रहती है।
    • ओम् का उच्चारण करने से परिस्थितियों का पूर्वानुमान होने लगता है।
    • ओम् का उच्चारण करने से आपके व्यवहार में शालीनता आयेगी जिससे आपके शत्रु भी मित्र बन जाते है।
    • ओम् का उच्चारण करने से आपके मन में निराशा के भाव उत्पन्न नहीं होते है। आत्म हत्या जैसे विचार भी मन में नहीं आते है।
    • जो बच्चे पढ़ाई में मन नहीं लगाते है या फिर उनकी स्मरण शक्ति कमजोर है। उन्हें यदि नियमित ओम् का उच्चारण कराया जाये तो उनकी स्मरण शक्ति भी अच्छी हो जायेगी और पढ़ाई में मन भी लगने लगेगा।


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    गायत्री मंत्र और महत्व 

    माता गायत्री की प्रसन्नता के लिए गायत्री मंत्र का जाप करना सर्वश्रेष्ठ उपाय है। यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। इस मंत्र के असर से व्यक्ति में सम्मोहन शक्ति भी विकसित हो सकती है। जानिए गायत्री मंत्र के उपाय और खास बातें...
    सर्वश्रेष्ठ मंत्रों में से एक है ये मंत्र शास्त्रों में गायत्री मंत्र को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इस मंत्र के जाप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता है। गायत्री मंत्र के जाप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जाप शुरू किया जाना चाहिए। जाप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए। मंत्र जाप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जाप किया जाता है। तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले। सूर्यास्त से पूर्व मंत्र जाप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जाप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त अगर गायत्री मंत्र का जाप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। मंत्र जाप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।

        गायत्री मंत्र- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।


    गायत्री मंत्र का अर्थ: सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, परमात्मा का यह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें। इस मंंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है। इस मंत्र के जप से मिलते हैं ये 11 लाभ जैसे - उत्साह एवं सकारात्मकता मिलती है, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता दूर होती है, परमार्थ कार्यों में रुचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्न सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है। जिन लोगों को ये 10 लाभ मिलने लगते हैं, उन्हें 11वां लाभ भी मिल सकता है, वह है सम्मोहन। सम्मोहन यानी सभी लोग आपकी बात ध्यान से सुनेंगे और मानेंगे भी। मंत्र जाप से बढ़ती है आंतरिक शक्ति लगातार ध्यान करते हुए मंत्र जाप करने से आंतरिक शक्ति का विकास होता है। रोज मंत्र जाप करने वाले व्यक्ति का स्वभाव शांत जो जाता है| 


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    महामृत्युंजय मंत्र का महत्व


    शिवपूजन में कई तरह के मंत्रों का जाप किया जाता है और कार्यसिद्धि के लिए इन मंत्रों की संख्या भी अलग होती है लेकिन शिव शंभू को उनका एक मंत्र बहुत प्रिय है| 

    महामृत्युंजय मंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसका जप करने से मनुष्य मौत पर भी विजय प्राप्त कर सकता है|शास्त्रों में अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग संख्याओं में मंत्र के जप का विधान है| 

    आइए जानें, किस समस्या में इस मंत्र का कितने बार करें जाप...

    - भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है| -रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है| -पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है| - यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है| 
    इस मंत्र का करें जाप

    ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
    उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥

    अन्य मंत्र 

    गणेश मंत्र 


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    गणेश जिसका अर्थ होता है गणों का ईश्वर, हिंदू मान्यताओं के अनुसार किसी भी शुभ काम को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती हैं| गणेशजी को भगवान शिव और माँ पार्वती का छोटा पुत्र कहा जाता है| वहीं रिद्दी सिद्दी को गणेश जी की अर्धागनी और शुभ लाभ को गणेशजी का पुत्र कहा जाता हैं| इसके अलावा किसी भी मुसीबत से निकलने का कोई रास्ता ना होने पर गणेश जी की अराधना तुरंत फल देने वाली हैं| इसलिए आज हम आपको बताएंगे गणेश मंत्र जिनके जाप से कोई भी परेशानी दूर हो सकती हैं| 

    वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ।

    निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

    इस गणपति मंत्र का प्रयोग भगवान द्वारा अपनी कृपा बनाए रखने और कार्य को बिना किसी बाधा के संपन्न होने के लिए किया जाता हैं.

    ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।

    यह गणेश गायत्री मंत्र है जिसका जाप करने से व्यक्ति का भाग्य चमक जाता है और भगवान गणेश की विशेष कृपा होती हैं| 

    शिव मंत्र

    सभी देवी देवताओं में सबसे लोकप्रिय देवता भगवान शिव को माना जाता है। भगवान शिव को कल्याणकारी माना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव अपने भक्तों पर आने वाले कष्टों हरण कर लेतें। जब-जब देवताओं, ऋषि-मुनियों या फिर ब्रह्मांड में कहीं भी जीवन पर संकट आया है तमाम कष्टों के विष को भगवान शिव ने धारण किया है। भगवान शिव की आराधना बहुत ही सरल एवं बहुत ही फलदायी मानी गयी है। सोमवार को भगवान शिव की पूजा का दिन माना जाता है। यहां आपको बता रहे हैं भगवान शिव के कुछ लोकप्रिय मंत्र जिनसे आप भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं और उनकी कृपा पा सकते हैं।

    शिव मूल मंत्र

    ॐ नमः शिवाय॥

    यह भगवान शिव का मूल मंत्र हैं। मंत्रों में सबसे लोकप्रिय मंत्र भी है जिसे हिंदू धर्म में आस्था रखने वाला हर शिव उपासक जपता है। इस मंत्र की खास बात यह है कि यह बहुत ही सरल मंत्र है जिसके द्वारा कोई भी भगवान शिव की उपासना कर सकता है। इस मंत्र में भगवान शिव को नमन करते हुए उनसे स्वयं के साथ-साथ जगत के कल्याण की कामना की जाती है।

    महामृत्युंजय मंत्र

    ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
    उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

    यह माना जाता है कि इस महामृत्युंजय मंत्र के जाप से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही यदि साधक इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप कर ले तो वर्तमान अथवा भविष्य की समस्त शारीरिक व्याधियां एवं अनिष्टकारी ग्रहों के दुष्प्रभाव समाप्त किये जा सकते हैं। यह भी माना जाता है कि इस मंत्र की साधना से अटल मृत्यु को भी टाला जा सकता है। इस मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। मंत्र में कहा गया है कि जो त्रिनेत्र हैं एवं हर सांस में जो प्राण शक्ति का संचार करने वाले हैं जिसकी शक्ति समस्त जगत का पालन-पोषण कर रही है हम उन भगवान शंकर की पूजा करते हैं। उनसे प्रार्थना करते हैं कि हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्ति दें ताकि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो। जिस प्रकार ककड़ी पक जाने पर बेल के बंधन से मुक्त हो जाती है उसी प्रकार हमें भी ककड़ी की तरह इस बेल रुपी संसार से सदा के लिए मुक्त मिले एवं आपके चरणामृत का पान करते हुए देहत्याग कर आप में ही लीन हो जांए।

    इस महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये 33 अक्षर 33 देवताओं के प्रतीक हैं जिनमें 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्यठ, 1 प्रजापति एवं 1 षटकार हैं। इसलिए माना जाता है कि इस मंत्र सभी देवताओं की संपूर्ण शक्तियां विद्यमान होती हैं जिससे इसका पाठ करने वाले को दीर्घायु के साथ-साथ निरोगी एवं समृद्ध जीवन प्राप्त होता है।
    कुछ साधक इस महामृत्युंजय मंत्र में संपुट लगाकर भी इसका उच्चारण करते हैं जो निम्न है:

    ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः
    ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
    उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
    ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

    रुद्र गायत्री मंत्र

    ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
    तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

    भगवान रुद्र अर्थात शिव साक्षात महाकाल हैं। सृष्टि के अंत का कार्य इन्हीं के हाथों है। उन्हें सृष्टि का संहारकर्ता माना जाता है। सभी देवताओं सहित तमाम दानव, मानव, किन्नर सब भगवान शिव की आराधना करते हैं। लेकिन मानसिक रुप से विचलित रहने वालों को मन की शांति के लिए रुद्र गायत्री मंत्र से भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। जिन जातकों की जन्म पत्रिका अर्थात कुंडली में कालसर्प, पितृदोष एवं राहु-केतु अथवा शनि का कोप है इस मंत्र के नियमित जाप एवं नित्य शिव की आराधना से सारे दोष दूर हो जाते हैं। इस मंत्र का कोई विशेष विधि-विधान भी नहीं है। इस मंत्र को किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता हैं। अगर उपासक सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ध्यान रहे कोई भी आराधना तभी फलदायी होती है जब वो सच्चे मन से की जाती है।

    शांति पाठ मंत्र

    ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
    पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
    वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
    सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
    ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

    यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र के जरिये साधक ईश्वर से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। विशेषकर हिंदू संप्रदाय के लोग अपने किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्रों का मंत्रोच्चारण करते हैं। वैसे तो इस मंत्र के जरिये कुल मिलाकर जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे इसकी प्रार्थना की गई है। इसका शाब्दिक अर्थ लें तो उसके अनुसार इसमें यह गया है कि हे परमात्मा स्वरुप शांति कीजिये, वायु में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, हे परमपिता परमेश्वर शांति हो, शांति हो, शांति हो।

    कुबेर मंत्र

    ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
    धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

    धन धान्य और समृद्धि के स्वामी श्री कुबेर जी का यह 35 अक्षरी मंत्र है। इस मंत्र के विश्रवा ऋषि हैं तथा छंद बृहती है भगवान शिव के मित्र कुबेर इस मंत्र के देवता हैं। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। इस मंत्र को उनका अमोघ मंत्र कहा जाता है। माना जाता है कि तीन महीने तक इस मंत्र का 108 बार जाप करने से घर में किसी भी प्रकार धन धान्य की कमी नहीं होती। यह मंत्र सब प्रकार की सिद्धियां देने पाने के लिये कारगर है। इस मंत्र में देवता कुबेर के अलग-अलग नामों एवं उनकी विशेषताओं का जिक्र करते हुए उनसे धन-धान्य एवं समृद्धि देने की प्रार्थना की गई है। यदि बेल के वृक्ष के नीचे बैठ कर इस मन्त्र का एक लाख बार जप किया जाये तो धन-धान्य रुप समृद्धि प्राप्त होती है।

    कुबेर धन प्राप्ति मंत्र

    ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥

    धन प्राप्ति की कामना करने वाले साधकों को कुबेर जी का यह मंत्र जपना चाहिये। इसके नियमित जप से साधक को अचानक धन की प्राप्ति होती है।

    कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र

    ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

    कुबेर और मां लक्ष्मी का यह मंत्र जीवन की सभी श्रेष्ठता को देने वाला है, ऐश्वर्य, लक्षमी, दिव्यता, पद प्राप्ति, सुख सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि, अष्ट सिद्धि, नव निधि, आर्थिक विकास, सन्तान सुख उत्तम स्वास्थ्य, आयु वृद्धि, और समस्त भौतिक और परासुख देने में समर्थ है। शुक्ल पक्ष के किसी भी शुक्रवार को रात्रि में इस मंत्र की साधना शुरू करनी चाहिये।

    इन तीनों में से किसी भी एक मंत्र का जप दस हजार होने पर दशांश हवन करें या एक हजार मंत्र अधिक जपें।

    नवग्रह मंत्र 

    ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च । 
    गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः, सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ।।



    सूर्य मंत्र 

    ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ॥ 

    Sun Mantra
    Aum hraan hreen hron seh Suryay Namah

    This mantra should be chanted for 7000 times within 40 days 

    चंद्र मंत्र  

    ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः

    Moon Mantra
    Aum Shran Shrin Shron seh Chandraye Namah

    This mantra should be chanted for 11000 times within 40 days

    मंगल मंत्र 

    ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः

    Mars  Mantra

    Aum Kran Krin Kron seh Bhaumaaye Namah
    This mantra should be chanted for 10000 times within 40 days

    बुध मंत्र 

    ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ॥

    Budh Mantra

    Aum Bran Brin Bron seh Budhaye Namah
    This mantra should be chanted for 9000 times within 40 days

    गुरु मंत्र 

    ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरूवे नमः ॥

    Jupiter (Guru) Mantra

    Aum Gran Grin Gron seh Guruve Namah
    This mantra should be chanted for 19000 times within 40 days

    शुक्र मंत्र

    ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ॥

    Venus (Shukra) Mantra

    Aum Dran Drin Dron Seh Shukraye Namah
    This mantra should be chanted for 16000 times within 40 days

     शनि मंत्र 

    ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥

    Saturn (Shani) Mantra

    Aum Pram Prim Pron seh Shanicharaye Namah

    This mantra should be chanted for 23000 times within 40 days

    राहू मंत्र 

    ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः॥

    Rahu Mantra

    Aum Bhran Bhrin Bhron seh Rahve Namah
    This mantra should be chanted for 18000 times within 40 days

    केतु मंत्र 

    ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः॥

    Ketu Mantra

    Aum Sran Srin Sron seh Ketve Namah
    This mantra should be chanted for 17000 times within 40 days




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