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     कृष्ण भगवान की जन्म कथा- Krishna Janam Katha

    कृष्ण भगवान की जन्म कथा- Krishna Janam Katha


    भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अवतार हैं । माना जाता है की जब धरती दुष्टों के बढ़ते अत्याचारों से परेशान हों गयी तो भगवान विष्णु के पास पहुंची, भगवान् विष्णु ने धरती को आश्वासन दिया की वे पृथ्वी पर स्वयं अवतरित होंगे और उनके कष्टों  का निवारण करेंगे ।

     

    जन्माष्टमी कब और क्यों मनाई जाती है

    भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस माना जाता है। 

     

    भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था।

     

    यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।  

     

    ‘द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। 

     

    एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। 

     

    रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। 

     

    तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?’ 

     

    कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। परंतु उसने अपने पिता समेत, देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया ।

     

    इसी बीच नारद मुनि ने कंस से भेंट की और उसे और विचलित कर दिया की क्या पता कौन सी संतान उसके विनाश का कारण बने । यह सुनते ही कंस ने यह तय कर लिया की वह देवकी और वासुदेव की सभी संतानों को मार डालेगा ।

     

    वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। 

     

    उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी। 

     

    जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। 

     

    गोकुल मंडल के मुखिया नंद और उनकी पत्नी यशोदा भी उनके कष्ट से बहुत दुखी थे। देवकी और वासुदेव के सातवें पुत्र को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में  स्थानांतरित किया गया ।

     

    यह भी भगवान् विष्णु की माया थी । रोहिणी, नन्द और यशोदा के साथ ही वृंदावन में रहतीं थी । उस बच्चे को बाद में बलराम के नाम से जाना गया । बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है ।  उधर वृंदावन में यशोदा भी गर्भ से थी ।

     

    भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की पौराणिक कथा - Krishna Janam Katha

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    तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो।

     

    इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।’ 

     

    उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे।

     

    वासुदेव ने वैसा ही किया जैसा उन्हें भगवान विष्णु ने करने को कहा था । जैसे ही देवकी ने नन्हे कृष्ण को जन्म दिया, वासुदेव उन्हें एक टोकरी में रख वृंदावन के लिए निकल पढ़े ।

     

    वह दिन आलौकिक था, सारे कारागार के पहरेदार सो रहे थे । यमुना नदी में भयंकर तूफान था । ज्यूँ ही वासुदेव यमुना को पार करने लगे, नदी ने उन्हें रास्ता दे दिया ।

     

    उस तूफान और बारिश के बीच नन्हे कृष्ण की रक्षा के लिए शेषनाग भी पहुँच गए ।  वह दृश्य अत्यंत अद्भुत था । भगवान् स्वयं पृथ्वी पर आये थे, दुष्टों के दमन के लिए ।

     

    Vasudeva Carrying Baby Krishna in River Yamuna- Krishan Janmashtmi

     

    वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए। 

     

    अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।

     

    उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ 

     

    तेरा अंत अब समीप है । यह सुन कंस को बहुत गुस्सा आया और उसने वृंदावन के सभी नवजात बच्चों को मारने के लिए कई दैत्य भेजे । वृन्दावन भी उसके अत्याचारों से अछूता न रहा । कृष्ण के वध के लिए कंस ने पूतना राक्षशी को भेजा ।

     

    कंस ने कृष्ण के वध के लिए पूतना राक्षशी को भेजा । पूतना ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर लिया । वह कृष्ण को गोद में ले कर घर से थोड़ी दूर निकल आयी ।

     

    जैसे ही उसने नन्हे कृष्ण को स्तनपान कराया वह दर्द से करहाने लगी और बचाओ बचाओ चीखने लगी ।

     

    जब तक गाँव वाले वहां पहुंचे, पूतना का वध हो चूका था । नन्हे कृष्ण की उस लीला को कोई भी नहीं समझ पाया था ।

     

    उन्हें सब एक नन्हे बालक के स्वरुप में ही देखते थे । लोगों को यह कभी लगा ही नहीं की वह नन्हा सा बालक एक राक्षशी का संहार भी कर सकता है ।

     

    श्री कृष्ण बाल लीला- Shri Krishan Bal Leela

    भगवन श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन किये बिना उनके जन्म की कथा अधूरी है ।  उन्हें प्यार से माखनचोर भी कहा जाता है, मक्खन उन्हें बहुत प्रिय था और उसे चुराकर खाने से जैसे उसका स्वाद दुगना हो जाता था ।

     

    वृंदावन की सभी औरतें मक्खन को कृष्ण और उनके सखाओं के डर से छुपा कर रखती थी । परंतु वो भी कम कहाँ थे , चाहे जितनी भी दूर हो मक्खन की हांड़ी  वो उसे ढूंढ ही लेते थे ।

     

    सारा वृन्दावन कृष्ण की माया में डूबा हुआ था । हर कोई प्रेम और सुख से जीवन व्यतीत कर रहा था ।

    भगवान श्री कृष्ण ने बालक रूप में कई लीलाएं रची और बढे बढे दैत्यों और दानवों का वध किया ।

     

    भगवान कृष्ण ने सोलह वर्ष की उम्र में कंस का भी वध किया और उनके पिता और अपने नाना, उग्रसेन को मथुरा का राजा घोषित किया ।

     

    श्री कृष्ण का कालिया दमन- Shri Krishan ka Kaliya Daman

     

    इसी तरह खेलते और गाय चराते चराते, कृष्ण की बांसुरी की तान सुनते हुए ही दिन गुजरने लगे । इसी बीच खेल ही खेल में एक दिन कृष्ण की गेंद यमुना में गिर गयी ।

     

    यमुना का पानी उसमे स्तिथ नाग के विष से काला हो चूका था । गेंद की तलाश में कृष्ण ने यमुना में छलांग लगा दी, यह देख उनके सभी सखा भयभीत हो उठे ।

     

    कालिया नामक उस नाग ने अपने एक सौ दस फनो से कृष्ण पर वार किया । कृष्ण ने विराट रूप धारण कर उसके फन के ऊपर मानो सारी पृथ्वी का भार रख दिया ।

     

    जब कृष्ण उसे मारने ही वाले थे तो नाग की पत्नियों ने कृष्ण से उन्हें छोड़ने की विनती की । कृष्ण के स्वरुप  को जान कालिया नाग ने भी उनसे क्षमायाचना मांगी और यह विश्वास दिलाया की वह फिर कभी किसीको भी कोई शती नहीं पहुंचाएंगे  तब कृष्ण ने उसे क्षमा कर दिया ।

     

    श्री कृष्ण के स्वरुप की अनुभूति – गोबवर्धन पर्वत

    एक घटना ऐसी भी घटी थी जिसके पश्चात सभी गाँव वालों को कृष्ण के भगवान् रूप का विश्वास हो चूका था । वह ये जान चुके थे की ये कोई साधारण बालक नहीं हैं, यह स्वयं भगवान् हैं जो इंसान के रूप में अवतरित हुए हैं । 

     

    जब गाँव वालों ने इंद्रोत्सव न मनाकर गोपोत्सव मनाने लगे, तब इंद्रदेव बहुत क्रोधित हो उठे और उन्होंने पुरे गाँव को नष्ट करने के लिए अत्यधिक वृष्टि करवा दी । चरों ओर पानी ही पानी था , जन जीवन अस्त व्यस्त हो चूका था ।

     

    गांववासी त्राहि त्राहि कर रहे थे, तब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को एक ऊँगली में उठा लिया और सभी गाँववासियों को उसके निचे शरण दी ।

     

    यह देख इंद्रदेव को भी अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी । गांववासियों ने कृष्ण को भगवान् रूप में अनुभव किया ।

     

    भगवान् श्री कृष्ण की हर लीला रोमांचक है और इस बात का विश्वास दिलाती है की जब जब दुस्टों ने अपने अत्याचारों से पृथ्वी पर सुख और शांति का विनाश किया है, तब तब ईश्वर पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं और उन्होंने दुस्टों का संहार किया है ।

     

    भगवान् श्री कृष्ण की लीला का व्याख्यान अंतरात्मा में एक परम आनंद की अनुभूति कराता है ।

     

    श्री कृष्ण की वाणी को भगवद गीता में पिरोया गया ताकि युगों युगों तक ये हमें हमारे कठिन समय में मार्ग दर्शन करे ।

     

    उनकी रची भगवद गीता, हमेशा से ही मनुष्य का मार्ग दर्शन करती आयीं हैं । गीता में व्यक्त हर बात अनमोल है, अगर मनुष्य इसका पालन करने लगे तो उसका जीवन सार्थक है ।

     

    आज भी अगर हम खुद को किसी सवाल से घिरा पाएं या हमें ये न समझ आये की क्या सही है और क्या गलत, तो हम भगवद गीता में  अपने सवालों के जवाब ढूंढ सकते हैं ।

     

    ” फल की अभिलाषा छोड़ कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है । “






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