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     Sawan 2023: सावन माह में भगवान शिव की पूजा क्यों की जाती है?| Why is Lord Shiva worshiped in the month of Sawan in hindi?

    Sawan 2023: सावन माह में भगवान शिव की पूजा क्यों की जाती है?

    सावन मास में भगवान शिव की पूजा करने की प्रथा हिंदू धर्म में विशेष मानी जाती है। सावन का महीना हिंदू पंचांग के आठवें महीने का होता है और यह मास ज्येष्ठ मास के बाद आता है, जो करीब जून-जुलाई में पड़ता है। इस मास में विशेष तौर पर सोमवार (मंगलवार) को भगवान शिव की पूजा और व्रत करने का विशेष महत्व होता है। इस मास को भगवान शिव के अनुयायियों द्वारा भक्ति और श्रद्धा से बिताया जाता है।


    इस मास में भगवान शिव की पूजा करने के पीछे कुछ कारण हैं:

    सावन मास का माहौल: सावन का महीना मौसम के दृष्टिकोण से बहुत ही शुभ और मनोहर होता है। इस मास में जलवायु में बदलाव होता है और प्रकृति सुंदरता से भर जाती है। इस महीने में वृषभ राशि आती है जिसका स्वामी ग्रह शुक्र होता है और शिव जी के प्रिय हैं।


    सावन का महत्व: हिंदू धर्म में सावन महीने को बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन में शिवरात्रि और सावन सोमवार व्रत जैसे पर्व और व्रतों का आयोजन किया जाता है जो भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यंत धार्मिक और प्रतिष्ठित होते हैं।


    शिवरात्रि: सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा, अर्चना और व्रत करने से मनुष्य को सुख, समृद्धि, और धर्मिक उन्नति मिलती है।


    सावन सोमवार व्रत: सावन के महीने में सोमवार को भगवान शिव के विशेष दिन के रूप में माना जाता है। सोमवार को शिव जी को उपासने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें ध्यान और आत्मचिंतन के लिए अवसर मिलता है।


    इन सभी कारणों से सावन मास में भगवान शिव की पूजा और भक्ति करना हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण और पवित्र धर्मिक प्रथा बन गई है।


    श्रावण मास और भगवान् शंकर | Shravan month and Lord Shankar

    'श्रावणे पूजयेत शिवम्'अर्थात सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-आराधना और जप-तप करना विशेष रूप से फलदाई होता है. सावन के महीने में भगवान शिव जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इस महीने शिव मंदिरों में शिव भक्तों और भगवान शिव से जुड़ी पूजा-उपासना का सुंदर वातावरण बन रहता है. सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक और सावन सोमवार का व्रत रखते हुए विधिवत रूप से भोलेनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. सावन के महीने में ही कांवड़ यात्राएं निकाली जाती है. महिलाएं सावन के महीने में सोलह सोमवार का व्रत रखने का संकल्प लेती हैं. भगवान् शिव शंकर की पूजा के लिए सावन मॉस में भगवान शिवजी को गंगाजल, बेलपत्र,भांग, धतूरा आदि चीजों को चढ़ाया जाता है. इस माह में शिवजी का ध्यान करते हुए शिव चालीसा,रूद्राभिषेक और शिव आरती का अधिक महत्त्व है. लेकिन यह प्रश्न उठता है कि आखिर सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा क्यों की जाती है. चलिए जानते हैं इस सावन महीने और भगवान् शंकर से जुड़ी पौराणिक कथाएं |


    हिन्दु धर्म में सावन के महीने का विशेष महत्व है. सावन का महीना भगवान शंकर को समर्पित होता है. सावन के माह में भगवान शंकर की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त होता है. शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने सावन के महीने में माता पार्वती की तपस्या से खुश होकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. अतः ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, तथा सावन के महीने में व्रत रखने वाली लड़कियों को भगवान शिव के आशीर्वाद से मनपसंद जीवनसाथी मिलता है. श्रावण मास में सोमवार के व्रत रखने के साथ साथ पूरे महीने सात्‍व‍िक भोजन एवं सात्विक धर्म का पालन करने की परंपरा है |


    सावन महीने में भगवान् शंकर की पूजा क्यों की जाती है? | Why is Lord Shankar worshiped in the month of Sawan in hindi?

    पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है. बताया जाता है कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान् शिव के अपमान के विरोध में अपने शरीर त्याग किया था. जब देवी सती अपने दूसरे जन्म में पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया. माता पार्वती ने युवावस्था के श्रावण महीने में निराहार रह कर भगवान् शंकर का कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, कहते है तब से ही महादेव के लिए यह सावन का माह विशेष प्रिय हो गया |


    सावन महीने में शिव को जल चढ़ाना शुभ | It is auspicious to offer water to Shiva in the month of Sawan !

    एक अन्य कथा के अनुसार जब देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तो उस समय सावन मास चल रहा था, और समुद्र मंथन के बाद जो विष बाहर आया था, उससे पूरी सृष्टि खत्म हो सकती थी. अतः सृष्ट‍ि की रक्षा हेतु शंकर भगवान ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था. इसके बाद भगवान श‍िव का वर्ण नीला हो जाने के कारण उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाने लगा. विष के असर को कम करने के लिए देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया था. इसलिए सावन महीने में भगवान श‍िव को जल चढाने का अधिक महत्व है


    सावन महीने में ही भगवान राम ने किया अभिषेक | Lord Rama did consecration in the month of Sawan in hindi 

    पुराणों के अनुसार श्रावण मास में भगवान श्री राम ने भी सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया. तभी से श्रावण मास में जलाभिषेक करने की परंपरा भी चली आ रही है. शिव का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालु हरिद्वार,काशी और कई जगह से गंगाजल लेकर कांवड़ यात्रा करते हैं और अपने श्रद्धेय शिवलिंग पर जल चढ़ाते है.


    क्यों और कैसे इस मास का नाम पड़ा सावन मास ? | Why and how this month got its name as Sawan month in hindi?

    माता पार्वती ने युवावस्था के सावन मास में बिना कुछ खाये पिये निराहार रहकर कठोर व्रत किया और जिसके फलस्वरूप भगवान् शंकर प्रसन्न ने माता से विवाह किया, जिसके बाद से ही देवो के देव महादेव के लिए सावन मास अत्यंत प्रिय हो गया. इस माह पूर्णमा के दिन श्रवण नक्षत्र विद्दमान रहता है. इसी कारण इस माह का नाम सावन पड़ा. सावन मास का प्रत्येक दिन शिव पूजा के लिए विशिष्ट है |


    सावन मास के लिए नक्षत्रों और चंद्रमा का महत्व | Significance of Nakshatras and Moon for Sawan month in hindi

    महत्वपूर्ण बात ये है कि हिन्दू वर्ष में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गये हैं. जैसे की पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र से संबंधित है. इसी तरह सावन महीना श्रवण नक्षत्र से संबंधित है. श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है और चन्द्रमा शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित है. जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है. गर्म सूर्य पर चन्द्रमा की ठण्डक होती है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से वर्षा होती है. जिससे विष को ग्रहण करने वाले महादेव को ठण्डक मिलती है. ये भी एक प्रमुख कारण है कि आखिर क्यों महादेव शिवजी को सावन का महीना इतना प्रिय है |


    सावन में ससुराल आते हैं महादेव | Mahadev comes to his in-laws house in Sawan in hindi 

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव सावन के महीने में अपने ससुराल गए थे, जहां उनका धूमधाम से स्वागत कर अभिषेक किया गया था. मान्यता है कि सावन के महीने में ही भगवान शिव और माता पार्वती भू लोक पर निवास करते हैं, और यदि विधि-विधान से उनका पूजन किया जाए तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं| 


    श्रावण में शिवशंकर की पूजा की सामग्री | Shivshankar's worship material in Shravan in hindi 

    श्रावण के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है. इस दौरान पूजन की शुरुआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है. अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है. अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है. इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है |


    बेलपत्र और शमीपत्र की कहानी | Story of Belpatra and Shamipatra in hindi 

    भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और शमीपत्र चढ़ाते हैं. इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी- तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं. ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है.


    आखिर सोमवार के दिन ही भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष क्यों मानी गयी है? | After all, why is Monday considered special for worshiping Lord Shiva?

    सोम अर्थात चंद्रमा जो भगवान शिव के मस्तक पर विद्यमान हैं. इसके अलावा सोम का मतलब सौम्य भी होता है. भगवान शंकर को बेहद सौम्य और शांत माना जाता है. वे अपने भक्तों की भक्ति से बड़ी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए उन्हें भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है. शिव के सहज और सरल होने के कारण भी सोमवार का दिन शिवजी का दिन माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंद्र देव ने सोमवार के दिन ही भगवान शिव की आराधना की थी, जिससे उन्हें क्षय रोग से मुक्ति मिली और वे निरोगी हो गए. इसलिए सोमवार के दिन को भगवान शिव की पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है |


    आखिर भगवान शंकर के निराकार स्वरूप शिवलिंग पर जल अथवा दूध जैसी तमाम चीजें क्यों चढ़ाई जाती हैं? | After all, why all the things like water or milk are offered on the formless form of Lord Shankar Shivling?

    भोलेनाथ एकमात्र ऐसे देवता है जो अपने भक्तों की बहुत ही सरल पूजा से भी प्रसन्न हो जाते हैं. कहा जाता है कि केवल श्रद्धा पूर्वक इन्हें दूध या गंगाजल भी अर्पित किया जाए तो यह उससे भी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामना को पूरा करते हैं. इसलिए भगवान शंकर के भक्त इन्हें प्रसन्न करने के लिए दूध, दही व गंगाजल आदि से इनका जल अभिषेक करते हैं. खास तौर पर सावन मास में देशभर के लगभग हर शिवालय में श्रद्धालु शिव शंभू के लिंग रूप यानी शिवलिंग पर दूध, दही आदि अर्पित करते देखे जाते हैं |


    समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों द्वारा किए गए मंथन से सबसे पहले विष निकला था. जो अधिक विषैला था, संपूर्ण संसार का इससे नाश हो सकता था. ऐसे में संसार को बचाने के लिए भगवान शंकर ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था. परंतु इस विष का तीखापन और ताप इतना ज्यादा था कि भगवान शंकर का कंठ नीला हो गया और उनका शरीर ताप से जलने लगा. विष इतना जहरीला था कि इसका प्रभाव भगवान शंकर की जटा में विराजमान मां गंगा पर भी पड़ने लगा. यहां तक कि उन्हें शांत करने के लिए जल की शीतलता भी कम पड़ गई. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उस वक्त समस्त देवताओं ने भगवान शंकर का जलाभिषेक करने के बाद उन्हें दूध ग्रहण करने का आग्रह किया ताकि विष का प्रभाव कम हो सके. सभी के आश्रय करने पर भगवान शंकर ने दूध ग्रहण किया तथा देवताओं ने मिलकर बाद में उनका दूध से अभिषेक किया. कहा जाता है कि इसके बाद से ही शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा प्रचलन में आई. कहा जाता है कि श्रावण मास में भोलेनाथ को जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक दूध अर्पित करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, क्योंकि श्रावण मास के साथ-साथ भगवान शंकर को दूध अति प्रिय है |

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