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    तुलसी जी का विवाह

    Tulsi Vivah- Tulsi Chalisa- Tulsi ji ki Aarti- तुलसी चालीसा- आरती तुलसी जी की

    तुलसी जी का विवाह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को कार्तिक स्नान कर तुलसी जी तथा सालिगराम का विवाह करते हैं । घर में तुलसी जी हों तो विवाह कर दें और ब्राह्मण से पूछ कर चीजें. मंगा लें। तुलसी जी का गमला चूने और गेरू से माण्ड लें। तुलसी जी का विवाह करायें । हाम करायें, फेरी दें। पूजा करें। एक साड़ी से मण्डप बना कर एक ब्लाऊज चढ़ायें। मण्डप के नीचे तुलसी जी से सालिग्राम जी का विवाह संस्कार करें । मिठाई भी चढ़ायें, दक्षिणा दें । तुलसी जी के साड़ी ब्लाऊज चढ़ा दें, नथ पहनाएँ, सिन्दूर लगायें, मेंहदी चूड़ी पहनाएँ तुलसी जी के विवाह का गीत गाएँ।

    तुलसी चालीसा-  Tulsi Chalisa

    जय जय तुलसी भगवती सत्वती सुखदानि । 

    नमो नमो हरि प्रेयसी श्री बृन्दा गुण खानि ॥ 

    जय नन्दिनि जग पूजिता विश्व पावनी देवि ।

    जयति पुष्प सारा सुरभि देह अमर व अम्ब ॥

    श्री हरि शीश बिराजिनी देह अमर वरअम्ब । 

    जनहित हे बृन्दावानी अब जनि करहु बिलम्ब ।।

    ॥चौपाई॥ 

    धन्य धन्य श्री तुलसी माता । महिमा आगम सदा श्रुति गाता ॥ 

    हरि के प्राणहु से तुम प्यारी। हरिहि हेतु कीन्ह्यो तप भारी ॥

    जब प्रसन्न हैं दर्शन दीन्हो । तब कर जोरि विनय असकीन्हो ॥ 

    हे भगवन्न कन्त मम होहू । दीन जानि जनि छांडहु छोहू ॥ 

    सुनि लक्ष्मी तुलसी की बानी । दीन्हो श्राप क्रोध पर आनी ॥ 

    अस अयोग्य वर मांगन हारी । होहु विटप तुम जड़ तनु धारी ॥ 

    सुनि तुलसहिं श्राप्यो तेहिं ठामा । करहु बास तुहुं नीचन धामा ॥ 

    दियो बचन हरि तब तत्काला । सुनहु सुमुखि जनिहोहु बिहाला ॥ 

    समय पाइ व्है रौ पति तोरा | पुजिहाँ आस वचन सत मोरा ॥ 

    तब गोकुल नहं गोप सुदामा । तासु भई तुलसी तू बामा ॥

    कृष्ण रास नीला के माहीं । राधे शक्यो प्रेम लखि नाहीं ॥ 

    दियो श्राप तुलसिंह तत्काला । नर लोकहिं तुम जन्महु बाला ॥ 

    भयो गोप वह दानव राजा । शंख चूड़ नामक शिर ताजा ॥ 

    तुलसी भई तासु की नारी । परम सती गुण रूप अगारी ॥ 

    अस द्वै कल्प गीत जब गयऊ । कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥ 

    वृन्दा नाम भायो तुलसी को । असुर जलन्धर नाम पति को ।

    करि अति द्वन्द्व अतुल बलधामा । लीन्हा शंकर से संग्रामा ॥ 

    जब नित सैन्य सहित शिव हारे । मरहि न तब हर हरहिं पुकारे ॥ 

    पतिव्रता कृदा थी नारी । कोउ न सके पतिंह गंहारी ॥ 

    तब जलन्धरहि भेष बनाई । बृन्दा ढिग हरि पहुँच्यो जाई ॥ 

    शिव हितलहि करिकपट प्रसंगा । कियो सतीत्व धर्म तेहि भंगा ॥ 

    भयो जलन्धर कर संहारा । सुनि बृन्दा उरशोक अपारा ॥ 

    तिहिं क्षणादियो कपट हरि टारी । लखि बृन्दा दुख गिरा उचारी ॥ 

    जलन्धरहिं जस हत्यो अभीता । सोइ रावण व्हैं हरिही सीता ॥ 

    अस प्रस्तर सम हृदय तुम्हारा । धर्म खण्डि मम पतिहिं संहारा ॥ 

    यहि कारण लहि श्राप हमारा । होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥ 

    सुनि हरि तुरतहिं वचन उचारे । दियो श्राप तुम बिना बिचारे ॥ 

    लाख्यो न निज करतूति पतीको । छलन' चह्मो जब पारवती को ॥ 

    जड़मति तुहं अस हो जड़रूपा । जगमह तुलसी विटप "अनूपा ॥ 

    धरव रूप हम शालिंग रामा ।  नदी गण्ड की बीच ललामा ॥ 

    जो तुलसी दल हमहिं चढ़इहैं । सब सुख भोगि परम पद पइहैं ।

    बिन तुलसी हरि जलत शरीरा । अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥ 

    जो तुलसीदल हरि शिर धारत । जो सहस्र घट अमृत डारत ॥ 

    तुलसी हरि मन रंजनि हारी । रोग दोष दुख भंजनि हारी ॥ 

    प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर । तुलसी राधा में नहिं अन्तर ॥ 

    व्यंजन हो छप्पनहु प्रकारा । बिनु तुलसी दल हरहिं प्यारा ॥ 

    सकल तीर्थ तुलसी तरु छाहीं । लहत मुक्ति जन संशय नाहीं ॥ 

    कवि सुन्दर इक हरि गुण गाबत । तुलसिंह निकट सहसगुण पावत ॥ 

    बसत निकट दुर्बासा धामा । जो प्रयाग ते पूर्व ललामा ॥ 

    पाठ करहिं जो नित नर नारी । होहिं सुखी भाषहिं त्रिपुरारी ॥ 

    ॥दोहा॥ 

    तुलसी चालीसा पढ़हिं तुलसी तरु गृह धारि । दीप दान करि पुत्र फल पापहि बन्ध्यहुं नारि ॥सकल दुःख दरिद्र हरि हार व्है परम प्रसन्न । अतिशय धन जन लहहि गृह बसहिं पूरणा अत्र ॥ लहि अभिमत फल जगत महं लहहिं पूर्ण सब काम । जइदल अर्पहिं तुलसी तंह सहस बसहिं हरि धाम ॥ 

    तुलसी महिमा नमा लख तुलसी सुत सुखराम । मानस चालीसा रच्यो जगं महं तुलसी दास ॥

    आरती तुलसी जी की 

    तुलसा महारानी नमो नमो । 

    हर की पटरानी नमो नमो ॥ 

    तुम तुलसी पूरण तप कीनो । 

    हरिचरण कमल की लपटानी नमो-नमो 

    तुलसा तुलसा के पत्र मंजरी कोमल । 

    बिन तुलसी हरिएकनमानी नमो-नमो ॥तुलसा० 

    सुर नर मुनि तेरा ध्यान धरत हैं । 

    आगम निगम पुराण बखन नमो-नमो ।तुलसा0










    1 टिप्पणी:

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