Friday, June 13.

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Shri Kali Maa Chalisa-  श्री काली माँ चालीसा

Shri+Kali+Chalisa

हिंदी धर्म के अनुसार देवी माँ एक और रूप माना जाता है जिस हम सब मां काली के रूप में जानते है | इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि या मां काली कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति राक्षसों के संहार हेतु की गई थी। मान्यता के अनुसार काली माता बल और शक्ति की देवी हैं। माँ की आराधना कर इन्हें प्रसन्न करें।

 !! जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार,

 महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार,

अरि मद मान मिटावन हारीमुण्डमाल गल सोहत प्यारी,  

 अष्टभुजी सुखदायक मातादुष्टदलन जग में विख्याता !!


!! भाल विशाल मुकुट छवि छाजैकर में शीश शत्रु का साजै,

दूजे हाथ लिए मधु प्यालाहाथ तीसरे सोहत भाला,

 चौथे खप्पर खड्ग कर पांचेछठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे, 

 सप्तम करदमकत असि प्यारीशोभा अद्भुत मात तुम्हारी !!

!! अष्टम कर भक्तन वर दाताजग मनहरण रूप ये माता, 

भक्तन में अनुरक्त भवानीनिशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी, 

महशक्ति अति प्रबल पुनीतातू ही काली तू ही सीता, 

पतित तारिणी हे जग पालककल्याणी पापी कुल घालक !!


!! शेष सुरेश न पावत पारागौरी रूप धर्यो इक बारा ,

तुम समान दाता नहिं दूजाविधिवत करें भक्तजन पूजा, 

रूप भयंकर जब तुम धारादुष्टदलन कीन्हेहु संहारा,

 नाम अनेकन मात तुम्हारेभक्तजनों के संकट टारे !!


!! कलि के कष्ट कलेशन हरनीभव भय मोचन मंगल करनी,

महिमा अगम वेद यश गावैंनारद शारद पार न पावैं, 

भू पर भार बढ्यौ जब भारीतब तब तुम प्रकटीं महतारी, 

आदि अनादि अभय वरदाताविश्वविदित भव संकट त्राता !!

!! कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हाउसको सदा अभय वर दीन्हा, 

 ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशाकाल रूप लखि तुमरो भेषा, 

कलुआ भैंरों संग तुम्हारेअरि हित रूप भयानक धारे, 

सेवक लांगुर रहत अगारीचौसठ जोगन आज्ञाकारी !!


!! त्रेता में रघुवर हित आईदशकंधर की सैन नसाई,

खेला रण का खेल निरालाभरा मांस-मज्जा से प्याला,

रौद्र रूप लखि दानव भागेकियौ गवन भवन निज त्यागे, 

तब ऐसौ तामस चढ़ आयोस्वजन विजन को भेद भुलायो !!


!! ये बालक लखि शंकर आएराह रोक चरनन में धाए,

तब मुख जीभ निकर जो आईयही रूप प्रचलित है माई, 

बाढ्यो महिषासुर मद भारीपीड़ित किए सकल नर-नारी, 

करूण पुकार सुनी भक्तन कीपीर मिटावन हित जन-जन की !!


!! तब प्रगटी निज सैन समेतानाम पड़ा मां महिष विजेता,

 शुंभ निशुंभ हने छन माहींतुम सम जग दूसर कोउ नाहीं, 

मान मथनहारी खल दल केसदा सहायक भक्त विकल के, 

दीन विहीन करैं नित सेवापावैं मनवांछित फल मेवा !!


!! संकट में जो सुमिरन करहींउनके कष्ट मातु तुम हरहीं, 

प्रेम सहित जो कीरति गावैंभव बन्धन सों मुक्ती पावैं, 

काली चालीसा जो पढ़हींस्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं, 

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बाकेहि कारण मां कियौ विलम्बा !!


!! करहु मातु भक्तन रखवालीजयति जयति काली कंकाली,

 सेवक दीन अनाथ अनारीभक्तिभाव युति शरण तुम्हारी !!


॥ दोहा ॥

!! प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ,  

तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ !!










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