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     रोहिणी व्रत कथा- Rohini Vrat Katha

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    जैन समुदाय पवित्र पर्व है रोहिणी व्रत (rohini vrat), जिसको अन्य धर्म के लोग भी बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। यह व्रत महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। मान्यता है कि माता रोहिणी देवी की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट और दरिद्रता दूर हो जाती है। वैसे तो यह व्रत हर महीने आता है, क्योंकि अंतरिक्ष में स्थित 27 नक्षत्रों में रोहिणी भी एक नक्षत्र है। 

    व्रत कथा 

    चंपापुरी नामक नगर में एक राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति, 7 पुत्रों और एक पुत्री रोहिणी के साथ रहते थे। एक बार राजा ने निमित्तज्ञानी से पूछा कि उनकी पुत्री का विवाह किसके साथ होगा? इस पर ज्ञानी ने कहा कि आपकी पुत्री का विवाह हस्तिानपुर के राजकुमार अशोक के साथ होगा। ज्ञानी की बात सुनकर राजा ने रोहिणी के स्वयंवर का आयोजन किया और जिसमें रोहिणी ने राजकुमार अशोक को अपना पति चुना और उसके साथ विवाह संपन्न हुआ। एक समय हस्तिनापुर के वन में श्रीचारण नामक मुनिराज से मिलने अशोक अपन परिवार संग गए। उन्होंने मुनिराज से कहा कि उनकी पत्नी काफी शांत रहती है इसका कारण क्या है? इस पर मुनिराज ने बताया कि पौराणिक काल में हस्तिनापुर नगर में वस्तुपाल नाम का राजा रहता ता और उसका धनमित्र नाम का दोस्त था। धनमित्र के घर एक कन्या का जन्म हुआ, जिसके शरीर से हमेशा दुर्गंध आती थी। इसलिए उसका नाम दुर्गंधा रख दिया गया। धनमित्र अपनी पुत्री को लेकर हमेशा चिंतित रहता था।

    एक दिन उसके नगर में अमृतसेन मुनिराज आए। धनमित्र अपनी पुत्री को लेकर मुनिराज के पास गया और पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। मुनिराज ने बताया कि राजा भूपाल गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राज्य करते थे। उनकी पत्नी सिंधुमती थी जिसको अपनी सुंदरता पर काफी घंमड था। एक बार राजा-रानी वन भ्रमण करने के लिए निकले, तभी वहां राजा ने मुनिराज को देखा और पत्नी के पास जाकर मुनिराज के भोजन की व्यवस्था करने को कहा। इस पर सिंधुमती ने पति की आज्ञा को मानते हुए हामीभर दी लेकिन मन में काफी क्रोधित हुई और क्रोधवश उसने मुनिराज को कड़वी तुम्बिका भोजन में परोस दी, जिसे खाकर मुनिराज की मृत्यु हो गई।

    जब राजा को यह बात पता चली तो उन्होने रानी को महल से निष्कासित कर दिया। इस पाप की वजह से रानी के कोढ़ उत्पन्न हो गया और रानी काफी वेदना का सामना करते हुए मृत्युलोक को प्राप्त हो गई। रानी सिंधुमती मरणोपरान्त नर्क में पहुंची और उसने अत्यंत दुख भोगा और पशु योनि में जन्मी और फिर तेरे घर में दुर्गंधा कन्या बनकर पैदा हुई। 

    मुनिराज की पूरी बात सुनकर धनमित्र ने पूछा कि इस पातक को दूर करने के लिए कोई उपाय बताएं। तब मुनिराज ने बताया कि सम्यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत का पालन करों यानि की प्रत्येक माह की रोहिणी नक्षत्र वाले दिन रोहिणी देवी का व्रत रखो और आहार त्यागकर, धर्म, पूजा औऱ दान में समय बिताओ, लेकिन इस व्रत को 5 वर्ष और 5 मास तक ही करें। 

    धनमित्र और उसकी कन्या दुर्गंधा ने विधिपूर्वक व्रत किया और मृत्यु के पश्चात वह स्वर्ग पहुंची और तत्पश्चात देवी हुई और राजकुमार अशोक की रानी रोहिणी बनी। 

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