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    आरती: भगवान श्री कुबेर जी (Aarti: Bhagwan Shri Kuber Ji)

    Shri Kuber ji ki Aarti | श्री कुबेर जी

    ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे,
    स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
    शरण पड़े भगतों के,
    भण्डार कुबेर भरे।
    ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥

    शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,
    स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
    दैत्य दानव मानव से,
    कई-कई युद्ध लड़े ॥
    ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥

    स्वर्ण सिंहासन बैठे,
    सिर पर छत्र फिरे,
    स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
    योगिनी मंगल गावैं,
    सब जय जय कार करैं॥
    ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥

    गदा त्रिशूल हाथ में,
    शस्त्र बहुत धरे,
    स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
    दुख भय संकट मोचन,
    धनुष टंकार करें॥
    ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥

    भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,
    स्वामी व्यंजन बहुत बने।
    मोहन भोग लगावैं,
    साथ में उड़द चने॥
    ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥

    बल बुद्धि विद्या दाता,
    हम तेरी शरण पड़े,
    स्वामी हम तेरी शरण पड़े,
    अपने भक्त जनों के,
    सारे काम संवारे॥
    ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥

    मुकुट मणी की शोभा,
    मोतियन हार गले,
    स्वामी मोतियन हार गले।
    अगर कपूर की बाती,
    घी की जोत जले॥
    ॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥

    यक्ष कुबेर जी की आरती,
    जो कोई नर गावे,
    स्वामी जो कोई नर गावे ।
    कहत प्रेमपाल स्वामी,
    मनवांछित फल पावे।
    ॥ इति श्री कुबेर आरती ॥



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