Hartalika Teej Vrat 2020: व्रत कथा और पूजन विधि
हरियाली तीज 2020
23 जुलाई
तृतीया तिथि - गुरुवार, 23 जुलाई 2020
तृतीया तिथि प्रारंभ - 19:21 बजे (22 जुलाई 2020 ) से
तृतीया तिथि समाप्त - 17:02 बजे (23 जुलाई 2020 ) तक
तृतीया तिथि - गुरुवार, 23 जुलाई 2020
तृतीया तिथि प्रारंभ - 19:21 बजे (22 जुलाई 2020 ) से
तृतीया तिथि समाप्त - 17:02 बजे (23 जुलाई 2020 ) तक
23 जुलाई 2020 को हरतालिका तीज व्रत मनाया जाएगा| इस दिन सुहागिने अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और भगवान शंकर व मां पार्वती की पूजा करती हैं| हर साल भादों मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज व्रत का पर्व मनाया जाता है|
हरतालिका तीज के दिन सुबह की पूजा
हरतालिका तीज का व्रत 1 सितंबर को रखा जाएगा.| इस व्रत को करने के लिए मन और शरीर दोनों को शुद्ध रखिए| इस दिन भगवान शंकर को जल अभिषेक कराएं. जल अभिषेक प्रदोष काल में होगा|
इस शुभ मुहूर्त में मिट्टी से भगवान शिव और मां पार्वती को बनाकर स्थापित करें और उसकी पूजा करें. इस दिन प्रात: काल उठकर स्नान आदि करना है और निर्जल निराहार व्रत रखना है|
भगवान शंकर और मां पार्वती के सामने बैठकर हाथ में थोड़ा चावल लेकर व्रत का संकल्प लें. संकल्प इस मंत्र के साथ लें – ”उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये”’
इसके बाद आप शाम को होने वाली पूजा के लिए तैयारी करें|
इस व्रत पूजा को करने के लिए किन-किन सामानों की तैयारी होती है जानिये:
- नारियल पानी वाला
- जनेऊ दो
- पान पत्ते
- धतूरा
- बेलपत्र
- मदार का फूल
- गेंदे के फूल की माला
- गुलाब का फूल
- पंचामृत जरूर बनाएं. क्योंकि भोलेनाथ का इस दिन अभिषेक करना पड़ता है
- अगर आप मिट्टी के शिवजी बनाते हैं तो पीली मिट्टी जरूर ले आइये. अगर मिट्टी उपलब्ध नहीं है तो आप शिवजी और माता पार्वती की बनी बनाई मिट्टी की मूर्ति बाजार से लाकर स्थापित कर सकते हैं
- 5 मौसमी फल
- गुझिया का प्रसाद जरूर बनाएं
- मिस्ठान
- माता पार्वती के लिए हाथों से गहने बनाए जाते हैं, बेसन का आटा लगाकर, गले का हार, कान के बूंदे, कंगन आदि बनाया जाता है और मैदे के आटे से पैर की पायल, बिछुआ, कमरधनी आदि बनाया जाता है.
- रोली, मोली, धागा, भस्म, अगरबत्ती, दीप, व्रस्त्र, इत्र आदि जो भी पूजा का सामान होता है वह भी ले आएं.
- सुहाग की पिटारी
- ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान के लिए यथा शक्ति कोई भी वस्त्र ले आएं.
- नारियल के पत्ते, हल्दी की गांठ, आम के पत्ते, पान सुपारी, लाल कपड़ा.
- अगर घर में पूजा कर रहे हैं तो शाम से पहले यह तैयारी कर लें और पूजा के स्थान को अच्छी तरह सजा लें.
हरतालिका तीज के दिन खूब श्रृंगार करना चाहिए. 16 श्रृंगार करें
शाम की पूजा की विधि:
आप घर में ब्राह्मण द्वारा पूजा करा सकते हैं या स्वयं भी पूजा कर सकते हैं. आप खुद भी षडोपचार से पूजा कर सकते हैं.
1. सबसे पहले लाल कपड़ा बिछा दें.
2. इस पर भगवान शंकर की मूर्ति या फोटो कुछ भी रख सकते हैं.
3. इसके बाद एक परात रख लें, ताकि आप इसमें भगवान शंकर का अभिषेक कर सकें.
4. फिर सफेद चावल से अष्टकमल बनाकर उस पर दीप कलश स्थापना करें.
5. चौक पूर लें.
6. कलश के ऊपर स्वास्तिक बनाएं. उसमें जल भरकर सिक्का, हल्दी और सुपारी डाल दें.
7. अब कलश के ऊपर पान के 5 पत्तों का गुच्छा रख दें और उसके ऊपर चावल से भरी कटोरी रखें और उसके ऊपर एक दीप रख दें.
8. पान के पत्ते के ऊपर थोड़े से चावल रखकर उस पर गौर और गणेश को स्थापित कर लें.
9. इसके बाद आप पूजा शुरू कर सकते हैं.
10. सबसे पहले दीप जला दीजिए. इसके बाद गौर और गणेश की पूजा करें.
11. उन पर चावल, दूब और रोली चढ़ाएं. गणपति को दूब पसंद हैं.
12. सभी भगवानों और दीप कलश को टीका लगाएं.
13. इसके बाद षोडपचार विधि से पूजन करें
- षोडपचार विधि में सबसे पहले हाथ जोड़कर कहें कि हे प्रभु आप हमारी पूजा में जरूर आ जाएं.
- भगवान को आसान ग्रहण कराएं, फूल और जल चढ़ाएं,
- हाथ में जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए प्रभु के चरणों में अर्पित करते हैं.
- मंत्र पढ़ते हुए 3 बार आचमन करें. फिर हाथ धो लें.
- परात में पानी भरकर भगवान शंकर को स्नान कराएं और साफ वस्त्र से पोछ कर उनका श्रृंगार करें.
- मौली को वस्त्र के रूप में पहना सकते हैं.
- जनेऊ, हार, मालाएं, पगड़ी आदि चढ़ाएं.
- इत्र छिड़कें या चंदन अर्पित करें. फूल, धूप, दीप, पान के पत्ते पर फल, मिठाई, मेवे आदि चढ़ाएं.
- बेलपत्र, शमिपत्री आदि जो भी फल फूल लेकर आए हैं वह अर्पित करें.
- भोलेनाथ मां पार्वती, गौरी गणेश और कलश को लांग और इलायची भी अर्पित करें.
- इसके बाद आप हरतालिका तीज का व्रत कथा सुनें या पढ़ें.
- व्रत कथा सुनने के बाद आप हवन करें. हवन के लिए आप गाय के कंडे या आम की लकड़ी का इस्तेमाल.
- पांच बार हवन आहूति जरूर दें.
- इसके बाद आरती करें और आखिर में गलतियों की माफी जरूर मांगे.
- पूजा खत्म होने के बाद प्रदक्षिणा करें. अपने स्थान पर खड़े होकर गोल घूमें.
- रातभर जागरण करें और हर पहर में हवन करें. रातभर में पांच बार हवन किया जाता है.
- इसके बाद मां गौरी को सुहाग दें. जो वहां थाल में सिंदूर रखा गया है, उससे मां गौरी को थोड़ा सा सिंदूर लगाएं और उनसे सुहाग लेकर अपनी मांग में भरते हैं. ऐसा कुल 5 बार करते हैं. ऐसा करने से मां गौरी सदा सुहागन का वरदान देती हैं. अगर आप अविवाहित हैं तो आप मां गौरी को सिर्फ सुहाग दे दें, उनसे ले नहीं. क्योंकि आपकी शादी नहीं हुई है. इस तरह व्रत पूर्ण हो जाता है.
- इसके बाद भगवान शंकर की मूर्ति को हिलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने के बाद व्रत पूर्ण माना जाता है. इसके बाद उनकी मूर्ति को पास की नदी में विसर्जित की जाती है.
- साथ ही दीप जलाकर नदी में प्रवाहित करें. चढ़ाई गई सामग्री पंडित जी को चढ़ा दें.
हरतालिका तीज व्रत की पूजा करने के बाद व्रत कथा सुनें
पौराणिक मान्यता है कि इस कथा को भगवान शिव ने मां पार्वती को सुनाया था. माता पार्वती भगवान शंकर को ही अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं ओर इसके लिए वह कठोर तप करने लगींं. मां पार्वती ने कई वर्षों तक निराहार और निर्जल व्रत किया. एक दिन महर्षि नारद आए मां पार्वती के पिता हिमालय के घर पहुंचे और कहा कि आपकी बेटी पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं और उन्हींं का प्रस्ताव लेकर मैं आपके पास आया हूं.
यह बात सुनकर हिमालय की खुशी का ठिकाना ना रहा और उन्होंने हां कर दिया. नारद ने संदेश भगवान विष्णु को दे दिया और कहा कि महाराज हिमालय का यह प्रस्ताव अच्छा लगा और वह अपन पुत्री का विवाह आपसे कराने के लिए तैयार हो गए हैं.
यह सूचना नारद ने माता पार्वती को भी जाकर सुनाया. यह सुनकर मां पार्वती बहुत दुखी हो गईं और उन्होंने कहा कि मैं विष्णु से नहीं भगवान शिव से शादी करना चाहती हूं. उन्होंने अपनी सखियों से कहा कि वह अपने घर से दूर जाना चाहती हैं और वहां जाकर तप करना चाहती हैं. इस पर उनकी सखियों ने महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर पार्वती को जंगल में एक गुफा में छोड़ दिया.
यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. माता पार्वती ने जिस दिन शिवलिंग की स्थापना की वह हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का ही दिन था. इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.
मां पार्वती की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने मां पार्वती को मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से परेशान थे.
वह पार्वती को ढूंढ़ते हुए उसी गुफा में पहुंच गए. मां पार्वती ने ऐसा करने की पूरी वजह बताई और कहा कि भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया है. इस पर महाराज हिमालय ने भगवान विष्णु से माफी मांगी और कहा कि मेरी पुत्री को भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा है. इसके बाद ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था.
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