Guru Purnima - गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के दिन गुरु की पूजा का विधान है| आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था. यह पूर्णिमा उन्हींं के सम्मान में मनाई जाती है| इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है |
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा का विधान है. दरअसल, गुरु की पूजा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उसकी कृपा से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है. गुरु की महिमा अपरंपार है| गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती. गुरु को तो भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है. इस दिन गुरु की पूजा की जाती है| पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले विद्यार्थी गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से अपने गुरु की पूजा-अर्चना करते थे| गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में आती है| इस मौसम को काफी अच्छा माना जाता है| इस दौरान न ज्यादा सर्दी होती है और न ही ज्यादा गर्मी| इस मौसम को अध्ययन के लिए उपयुक्त माना गया है| यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा से लेकर अगले चार महीनों तक साधु-संत विचार-विमर्श करते हुए ज्ञान की बातें करते हैं|
हिन्दू धर्म में गुरु को भगवान से ऊपर दर्जा दिया गया है. गुरु के जरिए ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है| ऐसे में गुरु की पूजा भी भगवान की तरह ही होनी चाहिए| गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें| फिर घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं|
इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’|
पूजा के बाद अपने गुरु या उनके फोटो की पूजा करें. अगर गुरु सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं. उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें. उन्हें भोजन कराएं. इसके बाद दक्षिणा देकर पैर छूकर विदा करें|
आषाढ़ की पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ की पूर्णिमा को चुनने के पीछे गहरा अर्थ है| अर्थ है कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह| आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों| शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं| वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं. उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है. इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी| यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है|
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