Basant Panchami - Saraswati Puja
बसंत पंचमी 2020 की तारीख को लेकर बहुत से संदेह है। बहुत से लोगों को नहीं पता की बसंत पंचमी 2020 कब है । तो हम आपको बता दें कि बसंत पंचमी 29 January 2020 बुधवार मनाया जाएगा।
आज हम आपको बता रहे हैं कि बसंत पंचमी के दिन पूजा कैसे की जाती है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन को मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। कई कथाओं में से एक कथा यह भी है कि ब्रह्मा जी ने सरस्वती की रचना बसंत पंचमी के दिन की थी। जब सरस्वती प्रकट हुईं तो उनके एक हाथ में वीणा थी। ब्रह्मा जी ने उन्हें वीणा बजाने को कहा जिसके बाद संसार की हर चीज में स्वर आ गया। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती को वाणी की देवी नाम दिया। मां सरस्वती को ज्ञान, संगीत, कला की देवी भी कहा जाता है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की खास पूजा होती है। जिसकी विधि इस प्रकार है।
पूजा के दौरान भूलकर भी ना करें ये 5 काम, वरना विद्या की देवी हो जाएंगी नाराज
- बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने के लिए एक आसन बनाएं जिस पर उनकी प्रतिमा रखें।
- कलश की स्थापना करें और भगवान गणेश का नाम लेकर पूजा करें।
- पूजा शुरू करने से पहले मां सरस्वती (Saraswati) को आचमन करें और उन्हें स्नान कराएं।
- मां सरस्वती को पूजा (Saraswati Puja) में मां सरस्वती को पीले रंग के फूल चढ़ाएं, और श्रंगार करें।
- माता के चरणों में गुलाल अर्पित करें।
- माता सरस्वती को पीले फल या फिर मौसमी फलों के साथ बूंदी चढ़ाएं।
- मां सरस्वती को मालपुए और खीर का भोग लगाएं।
- मां सरस्वती ज्ञान और वाणी की देवी हैं, पूजा के समय वाद्ययंत्रों का भी पूजन करें।
- कई लोग मां सरस्वती का हवन करते हैं। अगर आप भी हवन करने की इच्छा रखते हैं तो हवन करने के साथ 'ओम श्री सरस्वत्यै नम: स्वहा" मंत्र का 108 बार जाप करें।
- मां सरस्वती वंदना मंत्र का जाप करें
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
बसंत पंचमी का त्योहार (Festival) कल यानी रविवार को मनाया जाएगा। उत्तर भारत (North
India) के कई राज्यों में बसंत पंचमी (Basant Panchami) और सरस्वती पंचमी
(Saraswati Panchami) के नाम से जानी जाने वाली ये पंचमी नौ फरवरी (9 February) यानी आज मनाई जाएगी। बसंत पंचमी का त्योहार विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती (Maa
Saraswati) को समर्पित है। बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन माता सरस्वती की आराधना
(Worship) की जाती है। शास्त्रों के मुताबिक बसंत पंचमी माघ मास (Magh Mass) की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे कुंभ में बसंत पंचमी के दिन शाही स्नान भी होगा। माता सरस्वती को ज्ञान, कला और संगीत की देवी कहा जाता है और इस दिन उनकी पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग
(Yellow Colour) का बेहद खास महत्व (Improtance) होता है। इसी दिन लोग पीले कपड़े
(Yellow Cloth) पहनकर बसंत पंचमी का स्वागत (Welcome) करते हैं।
Basant Panchami - Saraswati Pujan 2020 Date
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग और सरस्वती पूजा का महत्व
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का बहुत महत्व है, इस दिन पीला रंग बहुत शुभ माना जाता है। पीला रंग मां सरस्वती को बहुत प्रिय भी है। पीले रंग के पीछे दो महत्वपूर्ण कराण माने जाते हैं।
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बसंत पंचमी पर पीले रंग का पहला महत्वपूर्ण कारण यह कि बसंत को ऋतुओं का माना जाता है। इस दिन सर्दियां के समाप्त होकर मौसम सुहाना होना शुरू हो जाता है और पेड़-पौधों पर नई पत्तियां, फूल-कलियां खिलने शुरू हो जता हैं। सरसों की फसल से धरती पीली नजर आने लगती है। इसी दिन लोग पीले कपड़े पहनकर बसंत पंचमी का स्वागत करते हैं।
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बसंत पंचमी पर पीले रंग का दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि मान्यता के मुताबिक बसंत पंचमी के दिन सूर्य उत्तरायण होता है। जिस कारण सूर्य की किरणे पीली दिखती है और यह इस बात का प्रतीक है कि सूर्य की तरह गंभीर और प्रखर बनना चाहिए। इन्हीं दो कारणों की वजह से बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का खास महत्व रहता है।
पूजा में करें ये चीजे शामिल, मिलेगा मनचाहा वरदान
बसंत पंचमी के दिन विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती को सफेद और पीले रंग के फूल, पीले रंग की बूंदी का पकवान, पीले रंग का वस्त्र, कलम और केसर के साथ पीले चंदन अत्यधिक प्रिय है। मां सरस्वती के भक्त पूजा के दौरान ये सभी जीचें उन्हें अर्पित करते हैं। मां सरस्वती बहुत प्रसन्न होती हैं और मनचाहा वरदान देतीं हैं।
बसंत पंचमी का महत्व
पुराणों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने माता सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि इसी दिन तुम्हारी आराधना होगी। इसके अलावा श्री कृष्ण ने एक और वरदान दिया था। वह वरदान था कि ज्ञान, कला और विद्या की देवी के रूप में पूजा संपूर्ण स्थानों पर होगी।
Saraswati Puja 2019 : सरस्वती पूजा कथा
10 फरवरी को बसंत पंचमी
(Basant Panchmi) है। इस दिन सरस्वती की पूजा (Saraswati Puja) होती है। विद्यार्थी विद्या प्राप्त करने के लिए मां सरस्वती की आराधना करते हैं। बसंत पंचमी की कथा
(Basant Panchmi Ki Katha) बहुत से लोगों को नहीं पता है। तो आज हम आपको बता रहे हैं सरस्वती पूजा की कथा
(Saraswati Puja Ki Katha) के बारे में-
सम्पूर्ण जगत की कारण भूत आदि शक्ति परमेश्वरी की अभिव्यक्ति तीन स्वरूपों में होती है- काली
(Kali), लक्ष्मी (Laxmi) और सरस्वती (Saraswati) । पूर्वकाल में जब शुम्भ और निशुम्भ ने इन्द्रादि देवताओं के सम्पूर्ण अधिकार छीन लिए, तब देवताओं ने उन दोनों दैत्यों के अत्याचारों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए जाकर देवी भगवती की अनेक प्रकार से स्तुति की।
Basant Panchami - Saraswati Pujan 2020 Date
देवताओं की प्रार्थना पर भगवती पार्वती ने प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया। पार्वती देवी के शरीर कोष से उसी समय सरस्वती देवा प्रकट हुई। पार्वती देवी के शरीर कोष से प्रकट होने के कारण ही सरस्वती देवी का एक नाम कौशिकी प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने शुम्भ, निशुम्भ तथा धूम्रलोचन आदि देव-शत्रुओंका संहार करके देवताओंका संकट दूर किया।
देवी भागवत में आया है कि सरस्वती देवी का प्राकट्य भगवान श्री कृष्ण की जिह्वा के अग्रभाग से हुआ। उन्होंने सरस्वती जी को भगवान् नारायण को समर्पित कर दिया। सबसे पहले भगवान् श्री कृष्ण ने ही संसार में सरस्वती जी की पूजा प्रचारित की। पूर्वकाल में भगवान् नारायण की तीन पत्नियां थीं- लक्ष्मी, गड्रा और सरस्वती। तीनों ही बड़े प्रेम से भगवान् नारायण की सेवा में रहती थीं।
एक दिन भगवान ही इच्छा से एक घटना हो गयी, जिससे गड्रा और सरस्वती को भगवान के चरणों से कुछ काल के लिये दूर हट जाना पड़ा। एक बार भगवान नारायण जब अन्त:पुर पधारे तब तीन देवियां एक स्थान पर बैठकर परस्पर प्रेमालाप कर रही थीं। भगवान् को आया देखकर तीनों देवियां उनके स्वागत के लिए खड़ी हो गयीं।
उस समय गड्रा ने विशेष प्रेमपूर्ण दृष्टि से भगवान की ओर देखा, भगवान ने भी उनकी ओर देखकर हंस दिया और बाहर चले गये। सरस्वती जी ने गड्राके इस बर्ताव को अनुचित बताकर उनके प्रति आक्षेप किया। गड्राजी ने भी कठोर शब्दों में सरस्वती जी का प्रतिवाद किया और अन्तमें दोनों देवियों ने एक-दूसरे को नदी होने का शाप दे दिया।
इतने में ही भगवान नारायण पुन: अन्त: पुर में लौट आये। तब देवियां प्रकृतिस्थ हो चुकी थीं। उन्हें अपनी भूल मालूम हुई तथा वे भगवान के चरणों से विलग होने के भय से दु:खी होकर रोने लगीं। उनकी व्याकुलता से दयार्द्र होकर भगवान ने कहा- ‘तुमलोग अपने एक अंश से नही हो ओगी, शेष अंशसे तुम्हारा निवास हमारे पास ही रहेगा।
सरस्वती एक अंशसे नही होंगी। एक अंश से इन्हें ब्रह्माजी के पास रहना पड़ेगा तथा शेष अंश से ये मेरे ही पास रहेंगी। कलियुग के पांच हजार वर्ष बीतने के बाद तुम दोनों का शाप से उद्धार हो जायगा।’ भगवान के आदेशानुसार सरस्वतीजी भारत वर्षमें अंशत: अवतीर्ण होकर ‘भारती’ कहलायीं। दूसरे अंशसे ब्रह्माजी की पत्नी होने के कारण उनकी ‘ब्रह्मी’ नामसे प्रसिद्धि हुई।
Basant Panchami - Saraswati Pujan 2020 Date सरस्वती और आदिकवि
एक समय की बात है, ब्रह्माजीने सरस्वती जी से कहा- ‘देवी! तुम किसी योग्य पुरुषके मुखमें कवित्वशक्ति होकर निवास करो।’ ब्रह्माजीकी आज्ञा मानकर सरस्वतीजी योग्यपात्रकी खोजमें निकलीं। योग्यपात्रकी खोज करते-करते उन्हें पूरा सत्ययुग बीत गया।
त्रेतायुग के आरम्भ में सरस्वतीजी घूमते-घूमते भारत वर्ष में तमसा नदी के तटपर पहुंचीं, वहां महातपस्वी वाल्मीकि निवास करते थे। महर्षि वाल्मीकि उस समय अपने आश्रम में घूम रहे थे। इतने में ही उनकी दृष्टि एक क्रौंच पक्षी पर जा पड़ी, जो उसी समय एक व्याधके बाणके घायल होकर गिरा था।
पक्षीका सारा शरीर लहूलुहान हो गया था। क्रौंची उसके पास बैठकर करुण क्रन्दन कर रही थी। दयालु महर्षिके मुखके उसी समय करुणासे द्रवीभूत होकर संसारके प्रथम महाकाव्यका पहला श्लोक निकला। यह श्लोक मां सरस्वती देवीकी कृपाका प्रथम प्रसाद था।
उन्होंने महर्षिको देखते ही उनकी असाधारण योग्यता का परिचय पा लिया था। सरस्वतीजी के कृपापात्र होकर महर्षि आदि कवि के नामसे विख्यात हुए। इसी प्रकार सरस्वती देवी अनेक प्रकारकी लीलाओं से जगत का कल्याण करती हैं। पुराणादि तथा तन्त्र ग्रन्थोंमें इनकी महिमाका विस्तृत वर्णन है।
Happy basant panchmi
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