Friday, June 13.

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 रामायण मनका 108 | Ramayan Manka 108

रामायण मनका 108 का पाठ करने से प्रभु राम की कृपा प्राप्त होती है | रामायण मनका 108 में संपूर्ण रामायण समाहित है।

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रामायण मनका 108 का घर के सभी सदस्य नित्यकर्म से निर्वत होकर घर में मंगलवार व शनिवार को या प्रतिदिन पाठ करने से परिवार में सुख शांति, धन धान्य, अपार प्रभु श्री राम की कृपा बनी रहती हैं |

रघुपति राघव राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥


जय रघुनन्दन जय घनश्याम ।

पतितपावन सीताराम ॥


भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे ।

दूर करो प्रभु दुःख हमारे ॥


दशरथ के घर जन्मे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१॥


विश्वामित्र मुनीश्वर आये ।

दशरथ भूप से वचन सुनाये ॥


संग में भेजे लक्ष्मण राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२॥


वन में जाय ताड़का मारी ।

चरण छुआए अहिल्या तारी ॥


ऋषियों के दुःख हरते राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३॥


जनक पुरी रघुनन्दन आए ।

नगर निवासी दर्शन पाए ॥


सीता के मन भाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४॥


रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया ।

सब राजों का मान घटाया ॥


सीता ने वर पाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥५॥


परशुराम क्रोधित हो आये ।

दुष्ट भूप मन में हरषाये ॥


जनक राय ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६॥


बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी ।

संत नहीं होते अभिमानी ॥


मीठी वाणी बोले राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७॥


लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो ।

जो कुछ दण्ड दास को दीजो ॥


धनुष तुडइय्या मैं हूं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८॥


लेकर के यह धनुष चढ़ाओ ।

अपनी शक्ती मुझे दिखाओ ॥


छूवत चाप चढ़ाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९॥


हुई उर्मिला लखन की नारी ।

श्रुति कीर्ति रिपुसूदन प्यारी ॥


हुई माण्डवी भरत के बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०॥


अवधपुरी रघुनन्दन आये ।

घर-घर नारी मंगल गाये


बारह वर्ष बिताये राम।

पतितपावन सीताराम ॥११॥


गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी ।

राज तिलक तैयारी कीनी ॥


कल को होंगे राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१२॥


कुटिल मंथरा ने बहकायी ।

कैकई ने यह बात सुनाई ॥


दे दो मेरे दो वरदान ।

पतितपावन सीताराम ॥१३॥


मेरी विनती तुम सुन लीजो ।

भरत पुत्र को गदी दीजो ॥


होत प्रात वन भेजो राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१४॥


धरनी गिरे भूप तत्काल ।

लागा दिल में सूल विशाल ॥


तब सुमंत बुलवाए राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१५॥


राम पिता को शीश नवाए ।

मुख से वचन कहा नहीं जाए॥


कैकयी वचन सुनायो राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१६॥


राजा के तुम प्राणों प्यारे ।

इनके दुःख हरोगे सारे ॥


अब तुम वन में जाओ राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१७॥


वन में चौदह वर्ष बिताओ।

रघुकुल रीति नीति अपनाओ ॥


आगे इच्छा तुम्हरी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१८॥


सुनत वचन राघव हर्षाए ।

माता जी के मन्दिर आये॥


चरण कमल में किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१९॥


माता जी मैं तो वन जाऊं ।

चौदह वर्ष बाद फिर आऊं ॥


चरण कमल देखू सुख धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥२०॥


सुनी शूल सम जब यह बानी ।

भू पर गिरी कौशिला रानी ॥


धीरज बंधा रहे श्री राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२१॥


सीताजी जब यह सुन पाई।

रंग महल से नीचे आई ॥


कौशल्या को किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम॥२२॥


मेरी चूक क्षमा कर दीजो ।

वन जाने की आज्ञा दीजो ॥


सीता को समझाते राम ।

पतितपावन सीताराम॥२३॥


मेरी सीख सिया सुन लीजो ।

सास ससुर की सेवा कीजिए ॥


मुझको भी होगा विश्राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२४॥


मेरा दोष बता प्रभु दीजो ।

संग मुझे सेवा में लीजो ॥


अर्धांगिनी तुम्हारी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२५॥


समाचार सुनि लक्ष्मण आए ।

धनुष बाण संग परम सुहाए ॥


बोले संग चलूंगा श्रीराम ।

पतितपावन सीताराम ॥२६॥


राम लखन मिथिलेशकुमारी ।

वन जाने की करी तैयारी ॥


रथ में बैठ गये सुख धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥२७॥


अवधपुरी के सब नर नारी ।

समाचार सुन व्याकुल भारी ॥


मचा अवध में अति कोहराम ।

पतितपावन सीताराम ॥२८॥


शृंगवेरपुर रघुवर आए ।

रथ को अवधपुरी लौटाए।


गंगा तट पर आए राम ।

पतितपावन सीताराम॥२९॥


केवट कहे चरण धुलवाओ ।

पीछे नौका में चढ़ जाओ


पत्थर कर दी नारी राम ।

पतितपावन सीताराम॥३०॥


लाया एक कठौता पानी ।

चरण कमल धोये सुखमानी ॥


नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३१॥


उतराई में मुदरी दीन्हीं।

केवट ने यह विनती कीन्हीं ॥


उतराई नहीं लूंगा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३२॥


तुम आए हम घाट उतारे ।

हम आयेंगे घाट तुम्हारे ॥


तब तुम पार लगाओ राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३३॥


भरद्वाज आश्रम पर आए ।

राम लखन ने शीष नवाए ॥


एक रात कीन्हां विश्राम ।

पतितपावन सीताराम॥३४॥


भाई भरत अयोध्या आए ।

कैकई को कटु वचन सुनाए।


क्यों तुमने वन भेजे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३५॥


चित्रकूट रघुनन्दन आए ।

वन को देख सिया सुख पाए॥


मिले भरत से भाई राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३६ ॥


अवधपुरी को चलिए भाई ।

ये सब कैकई की कुटिलाई ॥


तनिक दोष नहीं मेरा राम ।

पतितपावन सीताराम॥३७॥


चरण पादुका तुम ले जाओ ।

पूजा कर दर्शन फल पावो॥


भरत को कंठ लगाए राम ।

पतितपावन सीताराम॥३८॥


आगे चले राम रघुराया ।

निशाचरों को वंश मिटाया॥


ऋषियों के हुए पूरन काम ।

पतितपावन सीताराम ॥३९॥


‘अनसुइया’ की कुटिया आये ।

दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाये ॥


था मुनि अत्री का वह धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥४ ०॥


मुनिस्थान आए रघुराई ।

सूर्पनखा की नाक कटाई ॥


खरदूषन को मारे राम ।

पतितपावन सीताराम॥४१॥


पंचवटी रघुनन्द आए ।

कनक मृगा के संग में धाए॥


लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४२ ॥


रावण साधु वेष में आया ।

भूख ने मुझको बहुत सताया ॥


भिक्षा दो यह धर्म का काम ।

पतितपावन सीताराम ॥४३॥


भिक्षा लेकर सीता आई ।

हाथ पकड़ रथ में बैठाई ॥


सूनी कुटिया देखी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४४॥


धरनी गिरे राम रघुराई ।

सीता के बिन व्याकुलताई ॥


हे प्रिय सीते, चीखे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४५॥


लक्ष्मण, सीता छोड़ न आते।

जनक दुलारी को नहीं गंवाते ॥


बने बनाये विगड़े काम ।

पतितपावन सीताराम॥४६ ॥


कोमल बदन सुहासिनि सीते ।

तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते ॥


लगे चांदनी-जैसे घाम

पतितपावन सीताराम ॥४७॥


सुन री मैना, रे तोता ।

सुन मैं भी पंखो वाला होता ॥


वन वन लेता ढूँढ तमाम ।

पतितपावन सीताराम॥४८॥


श्यामा हिरनी तू ही बता दे ।

जनक नन्दनी मुझे मिला दे॥


तेरे जैसी आंखें श्याम।

पतितपावन सीताराम ॥४९॥


वन वन ढूंढ रहे रघुराई ।

जनक दुलारी कहीं न पाई॥


गिद्धराज ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५०॥


चखचख कर फल शबरी लाई ।

प्रेम सहित खाए रघुराई ॥


ऐसे मीठे नहीं हैं आम ।

पतितपावन सीताराम ॥५१॥


विप्र रूप धरि हनुमत आए।

चरण कमल में शीश नवाए॥


कन्धे पर बैठाये राम।

पतितपावन सीताराम ॥५२॥


सुग्रीव से करी मिताई ।

अपनी सारी कथा सुनाई ॥


बाली पहुंचाया निज धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५३॥


सिंहासन सुग्रीव बिठाया ।

मन में वह अति ही हर्षाया ॥


वर्षा ऋतु आई हे राम ।

पतितपावन सीताराम॥५४॥


हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ ।

वानरपति को यूं समझाओ ॥


सीता बिन व्याकुल हैं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥५५॥


देश देश वानर भिजवाए ।

सागर के सब तट पर आए ॥


सहते भूख प्यास और घाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५६॥


सम्पाती ने पता बताया ।

सीता को रावण ले आया ॥


सागर कूद गये हनुमानजी ।

पतितपावन सीताराम ॥५७॥


कोने कोने पता लगाया ।

भगत विभीषन का घर पाया॥


हनूमान ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५८॥


अशोक वाटिका हनुमत आए ।

वृक्ष तले सीता को पाए॥


आंसू बरसे आठों याम ।

पतितपावन सीताराम ॥५९॥


रावण संग निशचरी लाके ।

सीता को बोला समझा के ॥


मेरी ओर तो देखो बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६०॥


मन्दोदरी बना दूं दासी ।

सब सेवा में लंका वासी ॥


करो भवन चलकर विश्राम ।

पतितपावन सीताराम ॥६१॥


चाहे मस्तक कटे हमारा ।

मैं देखूं न बदन तुम्हारा ॥


मेरे तन मन धन हैं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥६२॥


ऊपर से मुद्रिका गिराई ।

सीता जी ने कंठ लगाई ॥


हनूमान जी ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६३॥


मुझको भेजा है रघुराया ।

सागर कूद यहां मैं आया ॥


मैं हूं राम दास हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥६४॥


भूख लगी फल खाना चाहूँ ।

जो माता की आज्ञा पाऊँ ॥


सब के स्वामी हैं श्रीराम ।

पतितपावन सीताराम॥६५॥


सावधान होकर फल खाना ।

रखवालों को भूल न जाना ॥


निशाचरों का है यह धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६६॥


हनूमान ने वृक्ष उखाड़े ।

देख देख माली ललकारे ॥


मार-मार पहुंचाये धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६७॥


अक्षयकुमार को स्वर्ग पहुंचाया।

इन्द्रजीत फाँसी ले आया ॥


ब्रह्मफाँस से बंधे हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥६८॥


सीता को तुम लौटा दीजो ।

उन से क्षमा याचना कीजो ॥


तीन लोक के स्वामी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥६९॥


भगत विभीषण ने समझाया ।

रावण ने उसको धमकाया ॥


सनमुख देख रहे हनुमान ।

पतितपावन सीताराम॥७०॥


रुई, तेल, घृत, वसन मंगाई ।

पूँछ बाँध कर आग लगाई ॥


पूँछ घुमाई है हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥७१॥


सब लंका में आग लगाई ।

सागर में जा पूँछ बुझाई॥


हृदय कमल में राखे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७२॥


सागर कूद लौट कर आए ।

समाचार रघुवर ने पाए ॥


जो मांगा सो दिया इनाम ।

पतितपावन सीताराम ॥७३॥


वानर रीछ संग में लाए ।

लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए ॥


लगे सुखाने सागर राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७४॥


सेतू कपि नल नील बनावें ।

राम राम लिख सिला तिरावें ॥


लंका पहुंचे राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७५॥


अंगद चल लंका में आया ।

सभा बीच में पांव जमाया॥


बाली पुत्र महा बलधाम ।

पतितपावन सीताराम ॥७६॥


रावण पांव हटाने आया ।

अंगद ने फिर पांव उठाया ॥


क्षमा करें तुझको श्री राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७७॥


निशाचरों की सेना आई ।

गरज गरज कर हुई लड़ाई ॥


वानर बोले जय सिया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७८॥


इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई ।

धरनी गिरे लखन मुरझाई ॥


चिन्ता करके रोये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७९॥


जब मैं अवधपुरी से आया ।

हाय पिता ने प्राण गंवाया ॥


बन में गई चुराई बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥८०॥


भाई तुमने भी छिटकाया ।

जीवन में कुछ सुख नहीं पाया ॥


सेना में भारी कोहराम ।

पतितपावन सीताराम ॥८१॥


जो संजीवनी बूटी को लाए ।

तो भाई जीवित हो जाये ॥


बूटी लाये तब हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥८२॥


जब बूटी का पता न पाया ।

पर्वत ही लेकर के आया ॥


काल नेम पहुँचाया धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥८३॥


भक्त भरत ने बाण चलाया ।

चोट लगी हनुमत लंगड़ाया ॥


मुख से बोले जय सिया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८४॥


बोले भरत बहुत पछताकर ।

पर्वत सहित बाण बैठाकर ॥


तुम्हें मिला दूं राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८५॥


बूटी लेकर हनुमत आया ।

लखन लाल उठ शीश नवाया ॥


हनुमत कंठ लगाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८६॥


कुम्भकरन उठकर तब आया।

एक बाण से उसे गिराया ॥


इन्द्र जीत पहुँचाया धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥८७॥


दुर्गापूजन रावण कीनो ।

नौ दिन तक आहार न लीनो ॥


आसन बैठ किया है ध्यान ।

पतितपावन सीताराम ॥८८॥


रावण का व्रत खंडित कीना ।

परम धाम पहुँचा ही दीना ॥


वानर बोले जय सिया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८९॥


सीता ने हरि दर्शन कीना ।

चिन्ता शोक सभी तज दीना ॥


हँस कर बोले राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९०॥


पहले अग्नि परीक्षा पाओ।

पीछे निकट हमारे आओ ॥


तुम हो पतिव्रता हे बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥९१॥


करी परीक्षा कंठ लगाई ।

सब वानर सेना हरषाई॥


राज्य विभीषन दीन्हा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९२॥


फिर पुष्पक विमान मंगवाया ।

सीता सहित बैठि रघुराया॥


दण्डकवन में उतरे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९३॥


ऋषिवर सुन दर्शन को आए ।

स्तुति कर मन में हर्षाये॥


तब गंगा तट आये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९४॥


नन्दी ग्राम पवनसुत आए ।

भगत भरत को वचन सुनाए ॥


लंका से आए हैं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९५॥


कहो विप्र तुम कहां से आए ।

ऐसे मीठे वचन सुनाए॥


मुझे मिला दो भैया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९६॥


अवधपुरी रघुनन्दन आये ।

मन्दिर मन्दिर मंगल छाये ॥


माताओं को किया प्रणाम ।

पतिल्पावन सीताराम ॥९७॥


भाई भरत को गले लगाया ।

सिंहासन बैठे रघुराया ॥


जग ने कहा, हैं राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९८॥


सब भूमि विप्रो को दीन्हीं ।

विप्रों ने वापस दे दीन्हीं ॥


हम तो भजन करेंगे राम ।

पतितपावन सीताराम॥९९॥


धोबी ने धोबन धमकाई ।

रामचन्द्र ने यह सुन पाई ॥


वन में सीता भेजी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१००॥


बाल्मीकि आश्रम में आई ।

लव व कुश हुए दो भाई ॥


धीर वीर ज्ञानी बलवान ।

पतितपावन सीताराम ॥१०१॥


अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम ।

सीता बिनु सब सूने काम ॥


लव कुश वहाँ लियो पहचान ।

पतितपावन सीताराम ॥१०२॥


सीता राम बिना अकुलाई ।

भूमि से यह विनय सुनाई ॥


मुझको अब दीजो विश्राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०३॥


सीता भूमी माहि समाई ।

देखकर चिन्ता की रघुराई ॥


बार-बार पछताये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०४॥


राम राज्य में सब सुख पावें ।

प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें॥


दुःख कलेश का रहा न नाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०५॥


ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता ।

राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता ॥


फिर बैकुण्ठ पधारे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०६॥


अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई ।

नर-नारी सबने गति पाई ॥


शरनागत प्रतिपालक राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०७॥


श्याम सुन्दर’ ने लीला गाई ।

मेरी विनय सुनो रघुराई ॥


भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०८॥


यह माला पूरी हुई, मनका एक सौ आठ।

मनोकामना पूर्ण हो, नित्य करे जो पाठ॥

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