भगवान Vishnu कैसे बने Trupati Balaji : तिरुपति बालाजी कहानी
जय श्री हरि जी जय श्री भगवान विष्णु जी
आज जो कहानी/कथा आप सुनने जा रहे है । वह बहुत ही अच्छी ओर महत्वपूर्ण है । इसमें आप जानेंगे कि भगवान श्री विष्णु को तिरुपति बालाजी कैसे बनना पड़ा । आइये कहानी का रसपान करते है ।
भगवान Vishnu कैसे बने Trupati Balaji
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार धरती पर विश्व कल्याण हेतु यज्ञ का आयोजन किया गया। तब समस्या उठी कि यज्ञ का फल ब्रम्हा, विष्णु, महेश में से किसे अर्पित किया जाए।
इनमें से सर्वाधिक उपयुक्त का चयन करने हेतु ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया। भृगु ऋषि पहले ब्रम्हाजी के पास पहुंचे, उन्होने देखा कि ब्रह्मा जी उस समय विष्णु जी के भक्ति में लीन थे ।
और तत्पश्चात शंकर जी के पास पहुंचे किन्तु उनसे उनकी भेट ना हो पाई फिर महर्षि भृगु बैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु के वक्ष पर प्रहार कर दिये। भगवान विष्णु जी के वक्ष स्थल पर माँ लक्ष्मी का वास स्थान है।
भगवान विष्णु ने क्रोध करने की जगह तुरंत भृगु ऋषि के चरण पकड़ लिए और पूछने लगे कि ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी।
भगवान विष्णु ने इतना ही कहा था कि भृगु ऋषि ने दोनों हाथ जोड़ लिए और उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर ली। विष्णुजी के व्यवहार से प्रसन्न भृगु ऋषि ने यज्ञफल का सर्वाधिक उपयुक्त पात्र विष्णुजी को घोषित किया।
लेकिन इस अपमान से देवी लक्ष्मी भृगु ऋषि को दंड देना चाहती थी। भगवान विष्णु केे कुछ न कहने पर देवी लक्ष्मी नाराज हो गई।
नाराजगी इस बात से थी कि भगवान ने भृगु ऋषि को दंड क्यों नहीं दिेया। नाराजगी में देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर चली गई। फिर भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को ढूंढना शुरु किया तो पता चला कि देवी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म लिया है।
भगवान विष्णु जी ने तब धरती लोक पर श्रीनिवास के नाम से जन्म लिया और पहुंच गए पद्मावती के पास। भगवान ने पद्मावती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया
सब देवताओं ने इस विवाह में भाग लिया और भृगु ऋषि ने आकर एक ओर लक्ष्मीजी से क्षमा मांगी, लक्ष्मी जी ने भृगु ऋषि को क्षमा कर दिया।
विवाह के उपलक्ष्य में लक्ष्मीजी को भेंट करने लिये विष्णुजी ने कुबेर जी से धन उधार लिया। इस कर्ज से भगवान विष्णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती ने विवाह किया।
कुबेर जी से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज समाप्त होने तक वह ब्याज चुकाते रहेंगे। भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते।
ऐसी मान्यता है कि जब भी कोई भक्त तिरूपति बालाजी के दर्शन करने जाता है और वहाँ जाकर कुछ चढ़ाता है तो वह न केवल अपनी श्रद्धा भक्ति और प्रार्थना प्रस्तुत करता है अपितु भगवान विष्णु के ऊपर कुबेर के ऋण को चुकाने में सहायता भी करता है।
जिस नगर में यह मंदिर बना है उसका नाम तिरूपति है और नगर की जिस पहाड़ी पर मंदिर बना है उसे तिरूमला कहते हैं। तिरूमला को वैंकट पहाड़ी और शेषांचलम भी कहा जाता है।
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