Wednesday, June 11.

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पितृ पक्ष की पौराणिक कथा

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पितृ पक्ष की पौराणिक कथा के अनुसार जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी। पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।अतः वह बोली- ‘आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।’ फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया।दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई  तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था। इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भोगे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर ‘अगियारी’ दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे।थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे- ‘भोगे के घर धन हो जाए। भोगे के घर धन हो जाए।’

सांझ होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था। उन्होंने मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- ‘जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बांटकर खा लेना।’ बच्चे वहां पहुंचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं। आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई। इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया, मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृ पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं। ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया, दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया। इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए।

पितृ पक्ष की कथा समाप्त 

कैसे करे पितरों का श्राद्ध | Kaise Kare Pitru Ka Shraddh

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पितरों का यज्ञ| Pitru Paksh Puja Vidhi

अपने पितरों के लिए जो भी कार्य करें उसे श्रद्धापूर्वक करें।प्रत्येक व्यक्ति को इस पक्ष में श्राद्ध का कार्य अपनी सामर्थ्य अनुसार श्रद्धापूर्वक करना चाहिये। पितरों के लिए किए जाने वाले सभी कार्य उन्हें श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रों में तीन ऋण विशेष बताए गए हैं। देव, ऋषि और पितृ ऋण ये हैं वो तीन ऋण जो बेहद महत्व रखते हैं, श्राद्ध की क्रिया से पितरों का पितृ ऋण उतारा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है की श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते हैं। 

आपके और पितरों के बीच केवल ब्राह्मण ही आपका सेतु है:- 

शास्त्रों में वर्णन है की ब्राह्मणों के मुख से भगवान भोजन करते हैं। पितृपक्ष में अपने पितरों का विधि विधान से किया पूजन, तर्पण तथा भोजन आपके पितरों को ही प्राप्त होता है। इसीलिये ब्राह्मण ही हमारे तथा पितरों के बीच सेतु का कार्य करते हैं। हमे उनकी बेवजह आलोचना या प्रशंसा नही करके अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिये। जिससे पितृ प्रसन्न होकर आपको भौतिक समृद्धि प्रदान करते है।

आवश्यक बातों का ध्यान रखें जैसे: 

श्राद्धपक्ष में पिंडदान, तर्पण आदि योग्य और जानकार कर्मकांडी पंडितों से ही करवाना चाहिये।दूध, दही, घी गाय का हो: मृत परिजनों के श्राद्ध में दूध, दही, घी का प्रयोग किया जाता है। इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि दूध, दही, घी गाय का ही होना चाहिए। वह भी ऐसी गाय का ना हो जिसने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो। मतलब उस गाय का बच्चा कम से कम 10 दिन का हो गया हो। 

चांदी के बरतन या पेड़ की पत्तलो में भोजन 

शास्त्रों में चांदी को श्रेष्ठ धातु माना गया है। श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन चांदी के बर्तनों में करवाया जाना चाहिए। चांदी पवित्र और शुद्ध होती है। जिसमें समस्त दोषों और नकारात्मक शक्तियों को खत्म करने की ताकत होती है। यदि पितरों को भी चांदी के बर्तन में रखकर पिंड या पानी दिया जाए तो वे संतुष्ट होते हैं। चांदी की उपलब्ध न हो तो पेड़ के पत्तों से बनी की पत्तलो में भोजन परोसें। ब्राह्मणों को भोजन दोनों हाथों से परोसना चाहिए। एक हाथ से भोजन परोसने पर माना जाता है कि वह बुरी शक्तियों को प्राप्त होता है और पितर उसे ग्रहण नहीं कर पाते।


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ये हैं शास्त्रों के नियम

ब्राह्मण शांति से भोजन करें:  ब्राह्मणों को भोजन करते समय एकदम शांतचित्त होकर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन करते समय बीच-बीच में न तो बोलें और न ही भोजन के अच्छे या बुरे होने के बारे में कुछ कहें। इसका कारण यह है कि आपके पितर ब्राह्मणों के जरिए ही भोजन का अंश ग्रहण करते हैं और इस दौरान उन्हें बिलकुल शांति चाहिए। 

पितरों की तिथि को ही करें श्राद्ध | Pitru Paksh Dates
शास्त्रों के नियमों के अनुसार श्राद्ध परिजन की मृत्यु तिथि और चतुर्दशी के दिन ही किया जाना चाहिए। दो दिन श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं। श्राद्ध केवल परिजनों के साथ ही करें। उसमें पंडित को छोड़कर बाहर का कोई व्यक्ति श्राद्ध पूजा के समय उपस्थित न हो।

जौ, तिल,कुशा का महत्व
श्राद्ध पूजा के दौरान पिंड बनाने में जौ तिल का प्रयोग किया जाता है। जौ, तिल पितरों को पसंद होते हैं। कुश का प्रयोग भी श्राद्ध पूजा में होता है। ये सब चीजें अत्यंत पवित्र मानी गई है और बुरी शक्तियों को दूर रखती है।

नदी,सरोवर या जलक्षेत्र का महत्व
अक्सर हम देखते हैं कि श्राद्धकर्म नदियों, तालाबों के किनारे किया जाता है। इसका कारण यह होता है कि श्राद्ध ऐसी जगह किया जाना चाहिए जो किसी के आधिपत्य में नहीं आती है। नदियां और तालाब किसी के आधिपत्य में नहीं होते इसलिए उन स्थानों पर श्राद्ध कर्म करके उसी के जल से पितरों का तर्पण किया जाता है।

रक्त सम्बंधों का खास महत्व
अपने मृत परिजनों के श्राद्ध में बहन, उसके पति और बच्चों यानी भांजे-भांजियों को अवश्य बुलाना चाहिए। यदि वे शहर में नहीं हैं, कहीं दूर रहते हों तो बात अलग है, लेकिन शहर में ही होते हुए उन्हें आमंत्रित करना चाहिए। 

भिखारी द्वार मे आना शुभ
श्राद्ध करते समय कोई भिखारी आपके द्वार पर आ जाए तो इससे अच्छी बात और कोई नहीं हो सकती। उसे ससम्मान भोजन करवाएं। श्राद्धपूजा के बाद गरीबों, निशक्तों को भी भोजन करवाना चाहिए। 

श्राद्ध मे भोजन | Shraddh mein Bhojan
श्राद्ध में खीर सबसे आवश्यक खाद्य पदार्थ है। खीर के अलावा जिस मृत परिजन के निमित्त श्राद्ध किया जा रहा है उसकी पसंदीदा वस्तु भी बनाएं।  ब्राह्मणों के अलावा देवताओं, गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी का भी भोजन में हिस्सा होता है। इन्हें कभी न भूलें। श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र दान दें।

गया का महत्व  

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गया, जहां भगवान विष्णु स्वयं पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं| पुराणों के अनुसार पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए गया से श्रेष्ठ स्थान कोई दूसरा नहीं है। कहा जाता है कि गया में स्वयं भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं। गया तीर्थ में श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु के दर्शन करने से मनुष्य पितृ, माता और गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है। पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान के साथ श्राद्ध और तर्पण करने से पितृ, देवता, गंधर्व, यक्ष आदि अपना शुभ आशीर्वाद देते हैं, जिससे मनुष्य के समस्त पापों का अंत हो जाता है। गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किए जाने के बारे में एक प्राचीन कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है। कथा के अनुसार, गयासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया| भगवान से मिले आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया। गयासुर के अत्याचार से दुःखी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वह गयासुर से देवताओं की रक्षा करें। इस पर भगवान विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया। बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया।

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