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    प्रदोष व्रत कथा, पूजा विधि, उद्यापन विधि | Pradosh Vrat Katha Puja Vidhi

    Pradosh Vrat Katha Puja Vidhi, प्रदोष व्रत कथा, पूजा विधि, उद्यापन विधि



    Pradosh Vrat Katha Puja Vidhi Udyapan Vidhi in Hindi | प्रदोष व्रत भगवान शिव और पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है जो की हर माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। प्रदोष व्रत प्रदोष काल में ही किया जाता है। सूर्यास्त के बाद रात्रि के प्रथम पहर को जिसे की सांयकाल या तीसरा पहर भी कहते है, प्रदोष काल कहलाता है। हिन्दू पंचांग में एक साल में 12 महीने होता है इस तरह एक साल में 24 प्रदोष व्रत आते है। जबकि हर तीसरे साल एक अधिक मास आता है, उस साल 26 प्रदोष व्रत होते हैं।

    प्रदोष व्रत विधि | Pradosh Vrat Vidhi in Hindi

    जैसा की हमने ऊपर बताया की प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। इस दिन सूर्यास्त से पहले स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद सायंकाल में विभिन्न पुष्पों, लाल चंदन, हवन और पंचामृत द्वारा भगवान शिवजी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के समय एकाग्र रहना चाहिए और शिव-पार्वती का ध्यान करना चाहिए। मान्यता है कि एक वर्ष तक लगातार यह व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं।


    प्रदोष व्रत की पूजा के लिए सूर्यास्त के समय को शुभ माना जाता है। इस समय के दौरान ही सभी सारी पूजा पाठ किये जाते है। सूर्यास्त से एक घंटे पहले भक्तों को स्नान करके पूजा के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
    एक प्रारंभिक पूजा की जाती है जिसमे भगवान शिव को देवी पार्वती भगवान गणेश भगवान कार्तिक और नंदी के साथ पूजा जाता है। उसके बाद एक अनुष्ठान किया जाता है जिसमे भगवान शिव की पूजा की जाती है और एक पवित्र बर्तन या ‘कलाश’ में उनका आवाहन किया जाता है।
    इस अनुष्ठान के बाद भक्त प्रदोष व्रत कथा सुनते है या शिव पुराण की कहानियां सुनते हैं। महामृत्यंजय मंत्र का 108 बार जाप भी किया जाता है।

    प्रदोष व्रत का फल | Pradosh Vrat ka Phal

    प्रदोष व्रत का फल वार अनुसार अलग अलग होता है
    • सोम प्रदोष व्रत। यह सोमवार को आता है इसलिए इसे ‘सोम प्रदोष’ कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों के अन्दर सकारात्मक विचार आते है और वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते है।
    • मंगल प्रदोष या भोम प्रदोष व्रत। जब प्रदोष व्रत मंगलवार को आता है तो इसे ‘भौम प्रदोष’ कहा जाता है। इस व्रत को रखने से भक्तों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याए दूर होती है और उनके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार आता है। भोम प्रदोष व्रत जीवन में समृद्धि लाता है।
    • बुध प्रदोष या सौम्य वारा प्रदोष व्रत। सौम्य वारा प्रदोष बुधवार को आता है। इस शुभ दिन पर व्रत रखने से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती है और ज्ञान भी प्राप्त होता हैं।
    • गुरु प्रदोष व्रत। यह व्रत गुरुवार को आता है और इस उपवास को रख कर भक्त अपने सभी मौजूदा खतरों को समाप्त कर सकते हैं। इसके अलावा गुरुवार प्रदोष व्रत रखने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।
    • शुक्र प्रदोष या भृगु वारा प्रदोष व्रत। जब प्रदोष व्रत शुक्रवार को मनाया जाता है तो उसे भृगु वारा प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस व्रत को करने से जीवन से नकारात्मकता समाप्त होती है और सफलता मिलती है।
    • शनि प्रदोष व्रत। शनि प्रदोष व्रत शनिवार को आता है और सभी प्रदोष व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है वह खोये हुए धन की प्राप्ति करता है और जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
    • रवि प्रदोष या भानु वारा प्रदोष व्रत। यह रविवार को आता है और भानु वारा प्रदोष व्रत का लाभ यह है कि भक्त इस दिन उपवास को रखकर दीर्घायु और शांति प्राप्त कर सकते है।


    प्रदोष व्रत कथा | Pradosh Vrat Katha In Hindi

    प्रदोष व्रत कथा हर वार के अनुसार अलग-अलग होती है।


    प्रदोष व्रत उद्यापन विधि | Pradosh Vrat Udyapan Vidhi

    स्कंद पुराणके अनुसार व्रती को कम-से-कम 11 अथवा 26 त्रयोदशी व्रत के बाद उद्यापन करना चाहिये। उद्यापन के एक दिन पहले( यानी द्वादशी तिथि को) श्री गणेश भगवान का विधिवत षोडशोपचार विधि से पूजन करें तथा पूरी रात शिव-पार्वती और श्री गणेश जी के भजनों के साथ जागरण करें। उद्यापन के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रमों से निवृत हो जायें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को शुद्ध कर लें। पूजा स्थल पर रंगीन वस्त्रों और रंगोली से मंडप बनायें । मण्डप में एक चौकी अथवा पटरे पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। अब शिव-पार्वती की विधि-विधान से पूजा करें। भोग लगायें। उस दिन जो भी वार हो उस वार की त्रयोदशी कथा सुने अथवा सुनायें।
    अब हवन के लिये सवा किलो (1.25 किलोग्राम) आम की लकड़ी को हवन कुंड में सजायें। हवन के लिये गाय के दूध में खीर बनायें। हवन कुंड का पूजन करें । दोनों हाथ जोड़कर हवन कुण्ड को प्रणाम करें। अब अग्नि प्रज्वलित करें। तदंतर शिव-पार्वती के उद्देश्य से खीर से ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 बार आहुति दें। हवन पूर्ण होने के पश्चात् शिव जी की आरती करें । ब्राह्मणों को सामर्थ्यानुसार दान दें एवं भोजन करायें। आप अपने इच्छानुसार एक या दो या पाँच ब्राह्मणों को भोजन एवं दान करा सकते हैं। यदि भोजन कराना सम्भव ना हो तो किसी मंदिर में यथाशक्ति दान करें। इसके बाद बंधु बांधवों सहित प्रसाद ग्रहण करें एवं भोजन करें।

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